‘जर्सी’ देखने के पहले दिमाग़ में सवाल था कि 3 साल पहले जिस जर्सी को बेस्ट तेलुगू फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है। जिस जर्सी में नानी की परफॉरमेंस ने अब तक लोगों को अपना दीवाना बना रखा हो, उसे गौतम तिन्नुरी दोबारा से कैसे पेश करेंगे? क्या वो कहानी बदलेंगे, क्या वो सीन्स बदलेंगे ? क्योंकि एक ऑर्टिस्ट के लिए एक मास्टर पीस बनाकर, उसे दोबारा बनाना. बहुत टेढ़ी ख़ीर होती है।
शाहिद ने जानबूझ कर ये चुनौती ली थी और ऐसा वो पहले भी अर्जुन रेड्डी का हिंदी रीमेक – कबीर सिंह में कर चुके हैं। उस वक्त भी शाहिद ने उसी डायरेक्टर के साथ, उसी कहानी को लेकर एक नई लकीर खींच दी थी। यकीन मानिए इस बार शाहिद ने दोबारा वैसा ही कारनामा कर दिखाया है। जर्सी को 2019 वाली जर्सी के चश्में से देखिएगा, तो भी पाइएगा कि इस बार जर्सी थोड़ी और फिट है।
कहानी वही हैं, किरदार वही हैं, सिचुएशन भी वही है…बस शहर बदल गया है, जुबां बदल गई है और एक्टर्स बदल गए हैं। नहीं बदला है तो जर्सी का जोश, उम्र को हराकर ज़िंदगी में जीत का जज़्बा।
अर्जुन तलवार, एक शानदार क्रिकेटर है। उसकी ज़िंदगी की हर खुशी क्रिकेट में है। रणजी क्रिकेट में अर्जुन के रिकॉर्ड्स की धूम है और विद्या उसे बेइंतहा प्यार करती है, घर वालों के खिलाफ़ जाकर विद्या,अर्जुन से शादी करती है। लेकिन एक दिन, इंडियन क्रिकेट टीम में शामिल ना होने के गुस्से में अर्जुन क्रिकेट छोड़ देता है। उसकी ज़िंदगी उसके बेटे किट्टू के इर्द-गिर्द सिमट जाती है। 26 साल की उम्र में क्रिकेट छोड़ने के बाद अर्जुन, ज़िंदगी में लूज़र बन जाता है। बेटा किट्टू जब अर्जुन से अपने बर्थडे पर इंडियन क्रिकेट टीम की जर्सी मांगता है, तो इस जर्सी के लिए 500 रूपए अर्जुन जुटा नहीं पाता । तानों, बेइज्ज़ती और अपने बेटे की निगाहों में दोबारा उठने के लिए अर्जुन के पास सिर्फ़ एक रास्ता होता है, दोबारा क्रिकेट के मैदान में कदम रखना और इंडियन क्रिकेट टीम के लिए खेलना । 36 साल की उम्र क्रिकेट दोबारा शुरु करना आसान नहीं है। इसके लिए अर्जुन को कई चक्रव्यूह तोड़ने हैं, अपनी बीवी विद्या की नाउम्मीदी को तोड़ना है। और इनके बीच ऐसा राज़ है, जो अर्जुन ने खुद से भी छिपा कर रखा है।
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ये पूरी कहानी 2019 में हुई जर्सी की है। गौतम तिन्नौरी ने अपनी कहानी को इस बार और कसा है। हिंदी ऑडियंस के हिसाब से कुछ सीन्स कांटे-छांटे हैं, कुछ सीन्स को आगे-पीछे किया है। सिद्धार्थ और गरिमा की डायलॉग्स ने इसे और तीर जैसा बना दिया है, जो सीधे दिल पर जाकर असर करते हैं।
जर्सी के असल हीरो गौतम तिन्नौरी है, जिन्होने जर्सी के जुनून को एक कतरा भी कम नहीं होने दिया है। एक पिता और पति के संघर्ष को गौतम ने ऐसा दिखाया है, कि थियेटर में बैठकर आप अर्जुन की मजबूरी पर मुठ्ठियां भींचते हैं और उसके जज़्बे को पर मन ही मन थैंक्यू बोलते हैं। अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी, क्रिकेट के मैदान से लेकर, अर्जुन के आशियाने तक शानदार है। इस मामले में ये जर्सी, पुरानी जर्सी पर भारी है। सचेत-परंपरा के गाने जर्सी की जान हैं, आपके दिल और दिमाग़ पर ये गाने थियेटर से निकलने के बाद भी चढ़े रहेंगे।
जर्सी पूरी तरह से शाहिद की फिल्म है और फिल्म देखकर हर एक लम्हे में अहसास होता है कि शाहिद ने अर्जुन बनने के लिए खुद को भट्टी में झोंक दिया है। मायूसी और बेबसी शाहिद के अहसास शाहिद के चेहरे और हाव-भाव से होते हैं, जैसे दिल पर गहरा असर करते हैं। क्रिकेट की पिच पर आकर अर्जुन के किरदार में शाहिद की बल्लेबाज़ी देखकर, आप उसे महसूस करते हैं। शाहिद ने साबित किया है कि कामयाबी तुक्के से नहीं मिलती, इसके लिए जो लगन चाहिए, वो उनमें हैं।
विद्या के किरदार में म्रुणाल की ये बेस्ट परफॉरमेंस है। अर्जुन से प्यार के लिए विद्या की दीवानगी, अर्जुन की नाउम्मीदी पर विद्या की उलझन, झल्लाना और फिर एक मजबूत बीवी की तरह खड़ा होना, म्रुणाल ने शाहिद का बराबरी से साथ दिया है।
फिल्म की सबसे बड़ी हाईलाइट है कोच माधव शर्मा के किरदार में पंकज कपूर को देखना। शाहिद के साथ पंकज कपूर की केमिस्ट्री देखकर आप मुस्कुराते रहेंगे। पंकज कपूर के एक्टिंग की तारीफ़ करना सूरज को दिया दिखाने जैसा है। अर्जुन के बेटे किट्टू के किरदार में चाइल्ड आर्टिस्ट रोनित कामरा कमाल के लगे हैं। शाहिद के साथ उनकी केमिस्ट्री आपका दिल छू लेगी।
जर्सी कोई क्रिकेट फिल्म नही है, जहां आप बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी देखने जाएंगे तो बात नहीं बनेगी। जर्सी उम्मीदों की कहानी है, हार ना मानने कहानी, मुश्किलों और उम्र को पीछे छोड़कर ज़िंदगी पर जीत की कहानी और उस मामले में ये फिल्म मस्ट वाच है।
जर्सी को साढ़े तीन स्टार।
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