भरोसा रेगिस्तान की तरह होता है, जहां धूल-अंधड़ और रेत उड़ती है। पानी और हरियाली की तलाश आपको बहुत दूर तक ले जाती है। बहुत बार इसमें हिम्मत टूटती है, हार मानने का ख़्याल भी आता है। लेकिन ईरादा अगर मजबूत हो, भरोसा अगर कायम हो, तो रेगिस्तान में पानी फूटता है, हरियाली मिलती है।
हर्षवर्धन पर अनिल कपूर का भरोसा, थार से जाकर पूरा हुआ है। नेटफ्लिक्स पर थार रिलीज़ हुई है, जिसे अनिल कपूर की प्रोडक्शन कंपनी ने ही बनाया है। बाप-बेटे यानि अनिल कपूर और हर्षवर्धन कपूर पहली बार साथ आए हैं। एक ऐसी कहानी के साथ, जहां रोमांस की गुंजाइश नहीं, डायलॉगबाज़ी की स्कोप नहीं… ये थार सिर्फ़ और कहानी और परफॉरमेंस से सजी है।
थार कहानी है राजस्थान के सरहद से सटे हुए एक गांव महोबा की। और कहानी है 1985 की। सरहद के पास से अफीम की तस्करी के साथ हथियारों की खेप भी पाकिस्तान से होते हुए हिंदुस्तान की सरहद तक पहुंचती थी। छोटे से कस्बे में, इंस्पेक्टर बनकर पूरी उम्र गुज़ार चुके सुरेखा सिंह को महोबा और उसके आस-पास के इलाकों में हुए मर्डर केस में ऐसा कुछ नज़र आता है, जो उसे अपने करियर का सबसे बड़ा केस लगता है। और साथ ही अफीम के स्मगलर्स के तार, पाकिस्तान से जुड़ते हैं। सुरेखा की निगाह इलाके में नए-नए सिद्धार्थ पर घूमती है, जो दिल्ली का एक एंटीक डीलर है और महोबा में काम के लिए पढ़े-लिखे मजदूर तलाश रहा है। मगर सिद्धार्थ की आंख़ें कुछ और चुगली कर रही हैं।
सुरेखा सिंह का तजुर्बा कहता है कि महोबा में हुए क़त्ल का, ड्रग्स की तस्करी से कोई लेना देना नही है। इसके पीछे गब्बर नहीं, ठाकुर, जय-वीरू या फिर बसंती का हाथ है।
फिर इस कहानी में एंट्री होती है चेतना की, जिसके पति पन्ना को सिद्धार्थ तलाशता हुआ महोबा आया है। यहां एक और कहानी शुरु होती है। पन्ना को बच्चा नहीं हो रहा है, उसका पति उस बांझ कहता है, मारता है। एंट्री होती है चेतना की पड़ोसी और उसकी दोस्त गौरी की, जो एक दूधमुंहे बच्चे की मां है, लेकिन बेधड़क है। पन्ना, उसके दोस्त कंवर और धन्ना को काम के बहाने सिद्धार्थ, महोबा के ही एक उजाड़ पड़े किले में लेकर जाता है और कैद करके टॉर्चर करता है।
दूसरी ओर सिद्धार्थ, पन्ना की पत्नी चेतना के करीब आता है। इन सबके बीच इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह और सिद्धार्थ का सामना होता है। सुरेखा सिंह की डाकुओ के नकाब के पीछे छिपे ड्रग्स स्मगलर्स की भिड़ंत होती है। इसमें हवलदार भूरे की मौत भी हो जाती है। लेकिन ये समझ नहीं आता कि आख़िर सिद्धार्थ, इन तीन मजदूरों को इतना क्यों तड़पा रहा है, उन्हे मौत से भी बदतर सज़ा क्यों दे रहा है ? और आख़िर में जाकर जब इस राज़ से पर्दा उठता है, तो झटका सा लगता है।
थार की कहानी, रेगिस्तान के रेत जैसी है…. जिस पर, हर बार लगता है कि थोड़ी दूर पर पानी है… लेकिन पास पहुंचने पर वो मिराज़ जैसा होता है. यानि पानी का धोखा। राज शांडिल्य की लिखी कहानी और उस पर अनुराग कश्यप के लिखे डायलॉग्स शुरु से ही थार का मूड सेट कर देत हैं। थार, एक मायने में हिंदी सिनेमा को नियो-वेस्टर्न अंदाज़ देने का तरीका है। रेत, घोड़े, लोकेशन, कपड़े, क्लासिक एरा, टूटी दीवारें, स्याह चेहरे, डीम लाइटिंग और फिर स्टोरी का फॉर्मेट भी वैसे ही रखना। श्रेया देव दूबे के कैमरे ने थार को इतना खूबसूरत दिखाया है, कि उन्हे स्पेशल क्रेडिट दिया जाना चाहिए।
परफॉरमेंस पर आइए, तो अनिल कपूर पहली बार एक राजस्थानी पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में हैं। उनका मिजाज़, उनकी उलझन, उनकी ज़ुबान सब कुछ परफेक्ट है। हर्षवर्धन कपूर, बिल्कुल सही डायरेक्शन में हैं। सिद्धार्थ के रोल में हर्षवर्धन ने आंख़ों से बातें की हैं। यहां से हर्षवर्धन के एक्टिंग करियर का रास्ता खुलता है। चेतना के किरदार में फातिमा सना शेख, शानदार है। उनका, लुक, कास्ट्यूम, एक्सप्रेशन्स और खड़ी राजस्थानी बोली एक्यूरेट है। हवलदार भूरे के किरदार में सतीश कौशिक परफेक्शन के बिल्कुल करीब हैं। अनिल कपूर के साथ उनकी केमिस्ट्री लाजवाब है। पन्ना के किरदार में जितेन्द्र जोशी की कास्टिंग बिल्कुल सही है। मगर, अगर थार में किसी ने वाकई रंग जमाया है, तो वो है मुक्ति मोहन…. गौरी के किरदार में मुक्ति को देखकर लगता है – भई वाह…। अपने किरदार जैसी ही कमाल मुक्ति का ये एक्टिंग डेब्यू ही साबित करने के लिए काफ़ी है कि ये उनका सफ़र शानदार रहने वाला है।
थार देखिए, थियेटर जाने की भी ज़रूरत नही है। नेटफ्लिक्स पर फिल्म स्ट्रीम हो रही है और वीकेंड शुरु हो चुका है।
थार को 3.5 स्टार।