Do Aur Do Pyaar Movie Review: (Ashwini Kumar) ‘प्यार का ढाई अक्षर होता है’, जो चाहते सब हैं, पाते खुशकिस्मत हैं। ये सबक हिंदी सिनेमा की लव स्टोरीज में 90 फीसदी मौकों पर हैप्पी एंडिंग वाला होता है। वहीं 10 पसेंट मौकों पर सैड क्लाइमेक्स होता है। लेकिन, कितनी ही लव स्टोरीज ऐसी होती हैं, जो परदे के हीरो-हीरोइन के डायलॉगबाजी से ज्यादा वो दिखाए, जो होता है… वो समझाए, जिसकी जरूरत है। मॉर्डन रॉम-कॉम यानि रोमांटिक कॉमेडी वाली स्टोरीज या फोर्स्ड कॉमेडी से भरी होती है, या तो अन-रियलिस्टिक होती है।
मगर ‘दो और दो प्यार’ इस मामले में बिल्कुल रियलिस्टिक है, इसकी कॉमेडी में आपको बाहर से लाए चुटकुलों से ठहाका नहीं लगवाया जाता, बल्कि सिचुएशन आपको उलझाती है। कुछ झटके देती है, और मुस्कुराने का मौका देती है… वो भी एक मॉर्डन व स्टोरी वाले फॉर्मेट के साथ।
क्या है फिल्म की कहानी
दो और दो प्यार, यूं तो काव्या गणेशन और ओनिर बनर्जी की कहानी है… काव्या डेंटिस्ट है, ओनिर एक ढुलकती सी कॉर्क कंपनी चलाने वाला बिजनेसमैन। दोनो की शादी को 12 साल हो चुके हैं, दोनो एक दूसरे के साथ यूं हो चुके हैं, जैसे घर में खाली दीवारें हों… जिनसे बातें भी नहीं हो सकतीं। काव्या एक एनआरआई फोटोग्रॉफर में अपना प्यार तलाश रही है, और ओनिर एक स्ट्रग्लर एक्ट्रेस नोरा के साथ खुशियां तलाश रहा है।
लेकिन एक दूसरे को वो अब तक बता नहीं पाए हैं कि वो किसी और रिश्ते में हैं, बस मौका तलाश रहे हैं कि डाइवोर्स के फैसले के बारे में, वो एक-दूसरे को बता सकें। मगर कहानी एक ऐसा टर्न लेती हैं जो दोनों की जिंदगी बदल देता है। परिवार में एक हादसे के चलते ओनिर और काव्या को वहां जाना पड़ता है, जहां 15 साल पहले उनके प्यार की शुरुआत हुई थी और 3 साल की कोर्ट-शिप के बाद, दोनो ने भागकर शादी की थी।
यहां उन्हे एहसास होता है कि दोनो ने जिंदगी की दौड़ में एक दूसरे को देखना, बातें करना, लड़ना, नाचना सब क्यों छोड़ दिया? अब तक जिस रिश्ते से दोनो भाग रहे थे, उस रिश्ते के लिए अपने नए पार्टनर से भागने लगते हैं। लेकिन दो और दो प्यार की कहानी इसके आगे की भी है… जो बताती है कि हर कहानी की हैप्पी एडिंग नहीं होती, लेकिन मुस्कुरा आप फिर भी सकते हैं।
क्यों देखें फिल्म
दो और दो प्यार की सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये पति और पत्नी को उनके फैसलों, उनकी गलतियों, उनके एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के लिए जज नहीं करती। नए दौर में बिखरते रिश्तों को दोबारा से बस एक बार पलट कर देख लेने भर की बात कहती है। ना इस कहानी में विज़ुअल इफेक्ट्स की भरभार है, ना ज़बरदस्ती के ठुंसे-गए डायलॉग्स… बस है, तो ज़्यादातर बिना कुछ बोले, बहुत कुछ कह देने और सुन लेने का अहसास।
सिनेमैटोग्राफी है कमाल
डायरेक्टर शीर्षा गुहा ठाकुरता की ये पहली फिल्म है, लेकिन इससे पहले उन्होने बहुत सारी ऐड फिल्में बनाई हैं, वो तर्जुबा – दो और दो प्यार में दिखता है। मुंबई की बारिश से लेकर ऊंटी के नज़ारों तक फिल्म की सिनेमैटोग्राफी कमाल हैं और सबसे खूबसूरत हैं फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर, जो आपको अपने साथ लिए-लिए चलता है। जज़्बाती है दिल और तू है कहां दोनो गाने फिल्म की कहानी को उसके क्रिसेंडो तक लेकर जाते हैं।
किसकी एक्टिंग ने जीता दिल
अब आइए परफॉरमेंस पर बात कर लेते हैं। फिल्म में कई बार ओनिर और काव्या की बात-चीत के दौरान काव्या बताती है कि वो 40 की नहीं 38 की है, उम्र को ऐसे गले से लगाना – विद्या को खूब सूट कर रहा है। काव्या के किरदार में सेंथिल राममुर्ति के साथ के साथ उनका फिर से ज़िंदगी को जी-लेने का अंदाज दिल छूता है। प्रतीक के साथ फिर से अपने बचपने और जवानी को जीने को बेचैन अहसास, इस कमाल की एक्ट्रेस की काबिलियत का पक्का सुबूत है। प्रतीक गांधी ने ओनिर के किरदार से फिर से साबित कर दिया है, कि हुनर उनमें कूट-कूट कर भरा है।
ज़िम्मेदारियों और रिश्तों की पहेली के बीच उलझे उनके किरदार का अपनी बीवी के सामने बेटे के नीचे ज़मीन पर बैठकर बिखर जाना, बताता है कि प्रतीक को अच्छी कहानी और डायरेक्टर का साथ मिले, तो वो हर बार कमाल करेंगे। स्ट्रगलर एक्ट्रेस नोरा के किरदार में ईलियाना डीक्रूज़ ने भी सधे हुए वक्त में बहुत कमाल की परफॉरमेंस दी है और सेंथिल राममूर्ति ने इस कहानी में अपने छोर को बखूबी संभाला है।
फिल्म को साढ़े तीन स्टार।