अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विदेशी फिल्मों पर 100% आयात शुल्क लगाने की अनाउंसमेंट कर दी है। इस फैसले ने ग्लोबल सिनेमा इंडस्ट्री को चौंका दिया है। उन्होंने ट्रुथ सोशल पर कहा कि हॉलीवुड ‘तेजी से मर रहा है’, और विदेशी प्रोडक्शन इसका एक बड़ा कारण है। अब किसी भी विदेशी देश में बनी फिल्मों पर अमेरिका में रिलीज के लिए भारी शुल्क लगेगा।
भारतीय सिनेमा के लिए खतरे की घंटी?
अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय दर्शक रह रहे हैं। ऐसे में ट्रंप का यह फैसला सीधे तौर पर भारतीय फिल्मों की कमाई और दर्शकों की पहुंच को प्रभावित कर सकता है। कोविड के बाद पहले से ही इंडियन इंडस्ट्री स्ट्रगल कर रही है। इसी बीच अब यह ट्रंप ट्रैरिफ का फैसला एक नई चुनौती बनकर सामने आई है। डोनाल्ड ट्रंप का ‘ट्रंप टैक्स’ न केवल बॉलीवुड के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी है। अब जरूरत है कि भारतीय सरकार और फिल्म इंडस्ट्री मिलकर ठोस रणनीति बनाए ताकि ग्लोबल नीतियों के असर को सीमित किया जा सके।
ट्रेड एक्सपर्ट अतुल मोहन ने क्या कहा?
ट्रेड एक्सपर्ट अतुल मोहन का कहना है कि भारतीय फिल्में अमेरिका में 10 से 100 करोड़ रुपये तक कमा लेती हैं। लेकिन 100% टैरिफ लगने से टिकट की कीमतों में बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। उन्होंने कहा, “अगर कोई फिल्म देखना चाहता है, तो वो हजार रुपये भी देगा, लेकिन जिसे दिलचस्पी नहीं है, वह सौ रुपये का भी टिकट नहीं लेगा।”
फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री की चेतावनी
विवेक अग्निहोत्री ने ट्रंप के इस फैसले को ‘विनाशकारी’ करार देते हुए भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से इस मुद्दे पर एकजुट होने की अपील की है। उन्होंने कहा कि अगर अभी एकजुट होकर इस खतरे का सामना नहीं किया गया, तो बॉलीवुड पूरी तरह से बिखर सकता है।
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शेखर कपूर ने हॉलीवुड पर उठाए सवाल
शेखर कपूर ने ट्रंप की नीति पर बात करते हुए कहा कि हॉलीवुड की 75% से अधिक कमाई अमेरिका के बाहर से होती है। ऐसे में टैरिफ लगाने का असर खुद हॉलीवुड पर पड़ेगा। इसके साथ ही पॉसिबल है कि यह उसे अमेरिका से बाहर जाने के लिए प्रेरित करे, जो ट्रंप की नीति के बिल्कुल विपरीत है।
सरकार को चाहिए रणनीतिक
प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष शिबाशीष सरकार ने भी ट्रंप के इस फैसले पर प्रतिक्रिया दी है। उनका मानना है कि भारत सरकार को अभी इस फैसले का विरोध करने की बजाय स्थिति को अच्छे से परखना चाहिए। उन्होंने इसे अमेरिका द्वारा डॉलर से बाहर निकलने का प्रयास करने को बताया है।
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