क्रिकेट हिंदुस्तान को जोड़ता है। इसके खिलाड़ी किसी स्टार की तरह होते हैं, और बदन पर अगर टीम इंडिया की जर्सी हो, तो फिर पूछिए ही मत। वैसे भी पिछले कुछ साल से सिनेमा क्रिकेट की इस दीवानगी को बॉक्स ऑफिस पर कैश करानी की कोशिशों में जुटा है। लेकिन मैदान में क्रिकेट का रोमांच, टीवी पर क्रिकेट देखना और थियेटर में जाकर क्रिकेट देखने में फर्क है। 83 जैसी शानदार फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पानी तक नहीं मांगा। इन हालात में एक ऐसी फिल्म आई है, जिसकी कैप्टन वर्ल्ड कप तो नहीं जीत पाई, लेकिन दिल जीते हैं। इंडियन महिला क्रिकेट टीम की कैप्टन मिताली की कहानी में एक मोड़ है, जहां सीआईआई के ऑफिसर वुमेन क्रिकेट टीम के सामने ही, ऑफिस में काम करने वाली कर्मचारी से सवाल पूछते हैं कि क्या वो पांच महिला क्रिकेट खिलाड़ियों के नाम बता सकते हैं। 5 से होते हुए ये सवाल 1 खिलाड़ी के नाम तक पहुंचता है, लेकिन वो कर्मचारी सवाल का जवाब नहीं दे पाता।
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मिताली राज ने जेंटलमैन्स गेम कहे जाने वाले क्रिकेट की दुनिया में अपनी एक नई लकीर खींची है। भारत में महिला क्रिकेट को शोहरत दिलाई है, रन और रिकॉर्ड तो पूछिए ही मत। मिताली का सबसे बड़ा जादू ये है कि हिंदुस्तान में घर-घर में बैट और बॉल पकड़कर खेलने वाले लड़कों के साथ-साथ अब लड़कियों ने भी इस खेल में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी है। हांलाकि मंज़िल अभी बहुत दूर है।
शाबाश मिथु, मिताली राज की कहानी है, जो शुरु होती है – हैदराबाद के एक तमिल परिवार से। इस घर का बेटा मिथुन, क्रिकेटर बनना चाहता है, फैमिली उसके इस सपने के लिए मदद भी करती है। लेकिन मौका मिलता है बेटी मिताली को, जो भरतनाट्यम सीखती है। क्रिकेट, उसने अपनी दोस्त नूरी से सीखा है। फिल्म के शुरुआती 35 मिनट कमाल के हैं, जहां नूरी और मिताली की दोस्ती, उनके क्रिकेट खेलने की टेक्निक… कपड़े धोने वाले पाटे को बैट बनाकर, पत्थरों को फिल्डर बनाकर खेलने का जुनून दिखाया है। दिलचस्प पहलू ये है भी है कि जब मिताली पाटे वाले बैट से गेद मार नहीं पाती, तो नूरी उसे भरतनाट्यम के सबक से ही सिखाती है कि ‘यतो हस्त: ततो दृष्टि, यतो दृष्टि ततो मन:, यतो मन: ततो भाव:, यतो भाव: ततो रस:’। बच्चियों की ये दोस्ती, उनकी ये दीवानगी देखकर आप उसमें खो जाते हैं, फिर एंट्री होती है क्रिकेट कोच संपत सर की, जो मिथुन की जगह मिथु को ट्रेनिंग कराने का बीड़ा उठाते हैं, उसे संवारते हैं। जुते में कील ठोंककर, लेग वर्क की ट्रेनिंग देते हैं। साथ ही संपत सर का सबक कि मैदान में हर दुख चोटा है, बस खेल बडा है, तो खेलो… इस फिल्म का सार है।
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फिर शुरु होता है क्रिकेट टीम में मिताली की जगह बनाने का सिलसिला, जिसमें पूरी टीम से मुलाकात होती है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि देश की महिला क्रिकेट टीम, जो एक लोहार, एक चाय वाले, एक मछुआरे और एक चमड़ा बनाने वाले की बेटी की जुनून से बनी, उसके पास अपने नाम की जर्सी तक नहीं हुआ करती थी। ट्रेन से रिजर्वेशन कराकर मैच खेलने जाने वाली टीम, जब इंटरनेशनल मैच खेलने जाती तो एयरपोर्ट पर उनसे, उनके बैग का वज़न कम करने के लिए लाइन से हटा दिया जाता है। आपका दिल तब और कचोटता है, कि जब इंडियन मेन्स क्रिकेट टीम एयरपोर्ट पर पहुंचती है, तो इंडिया-इंडिया और तालियों से उनका स्वागत करने वाले लोग, अपनी महिला क्रिकेट को पहचान तक नहीं पाती। मिताली के आती है, तो उसे पूर्व क्रिकेट कप्तान सुकुमारी की जलन भी झेलनी होती है, लेकिन टीम जीतना शुरु करती है। मगर हालात नहीं बदलते, मिताली हारकर क्रिकेट छोडऩे का फैसला करती है। वुमेन इन ब्लू का सपना शुरु होने के पहले ही बिखरने की कगार पर आ जाता है, और फिर आता है वुमेन क्रिकेट वर्ल्ड कप का न्यौता। मिताली को समझ आता है कि क्रिकेट ही उसकी ज़िंदगी है, ये टीम एक बाद दोबार खड़ी होती है और फाइनल्स तक पहुंचती है। मगर एक लंबी लड़ाई के बाद भी फाइनल हार जाती है।
उदास टीम, जब इंडिया वापस पहुंचती है, तो उनका स्वागत भी इंडिया-इंडिया के नारों से होता है। एयरपोर्ट पर मिताली के पास पीएम मोदी का फोन आता है कि वुमेन इन ब्लू फाइनल भले ही हार गई हो, लेकिन उन्होने देश का दिल जीता है।
ज़ाहिर है इस कहानी में ज़ज़्बात है, वुमेन पॉवर है, देश को जोड़ने का दम है, एक्शन, इमोशन और ड्रामा सब है। लेकिन मुश्किल ये है कि शाबाश मिथु का स्क्रीन प्ले बहुत कमज़ोर है। नेशनल अवॉर्ड विनर डायरेक्टर सृजीत मुखर्जी ने फिल्म को बांधने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन सेकेंड हॉफ़ जहां वर्ल्ड कप की शुरुआत होती है, वहां वो ओरिजिनल मैच की फुटेज से काम चलाने के चक्कर में चूक गए हैं। जिस टीम को अपनी फिल्म सृजीत से शुरु की, वो टीम, ग्राउंड पर मैच खेलती नज़र नहीं आती, तो लगता है कि कुछ बड़ी चूक हुई है। लेकिन बावजूद लड़खड़ाए सेकेंड हॉफ़ के इस फिल्म की नीयत इतनी साफ़ है कि ये असर छोड़ ही देती है।
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परफॉरमेंस पर आइएगा, तो तापसी का कोई सानी नहीं। अपने किरदार को लेकर तापसी हमेशा ईमानदार रहती है और मिताली के किरदार में भी ये ईमानदारी झलकती है। कोच संपत बने विजयराज, ऐसे रोल्स में क्या खूब जंचते हैं। लेकिन तालियां बजनी चाहिए छोटी मिताली बनी इनायत और तेज तर्रार लेकिन नन्ही कस्तूरी के किरदार में जगनाम के लिए, कमाल की परफॉरमेंस। परफेक्ट वुमेन टीम बनाने के लिए कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाब़ड़ा के लिए तारीफ़ तो बनती है।
शाबाश मिथु देखिए, इस फिल्म की नीयत के लिए। अपने घर की बच्चियों को दिखाइए, कि सपने देखें और उसे पूरा करने के लिए वो पूरा ज़ोर भी लगाएं।
शाबाश मिथु को 3 स्टार।
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