Sharma Ji Ki Beti Review/Ashwani Kumar: आयुष्मान खुराना की पत्नी… ना, ये बोलना बंद कीजिए – ताहिरा कश्यप अब डायरेक्टर हो चुकी हैं और ‘शर्मा जी की बेटी’, ताहिरा की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म है और जब एक औरत औरतों की कहानी सुनाती है, तो यकीन मानिए वो सच्चाई और अहसास से भरी होती है।
लापता लेडीज
इसी साल डायरेक्टर किरण राव की लापता लेडीज ने बहुत सिंपल सी कहानी कह, लापता लेडीज के साथ पूरी देश को झिंझोड़ दिया। वो क्रांतिकारी फिल्म नहीं है, लेकिन आम जिंदगी में औरतों की उम्मीद, सपनों और हौसले की बात करती है, ताहिर की फिल्म भी समझ लीजिए कि दूसरों की उम्मीदों को पूरा करती, लापता लेडीज के खुद को पा लेने की कहानी है। जैसे औरतों और लड़कियों का एक ग्रुप हो, जो एक-दूसरे को ग्रुप हग यानि गले लगा रहा हो, कि वो कितनी स्पेशल हैं।
पहली कहानी
शर्मा जी की कहानी एक टीनेजर स्वाति शर्मा से शुरु होती है, जो 8वीं में पढ़ती है और अपने आपको एबनॉर्मल मानती है क्योंकि अपनी क्लास में वो अकेली लड़की है, जिसके पीरियड्स नहीं आए हैं। उसकी मां, ज्योति, जो कि एक कोचिंग क्लासेज में पढ़ाती है और टीनेज बच्ची की समझ के साथ खुद को सुलझाने की कोशिश कर रही है, वो बार-बार बताती है कि ऐसा होता है, लेकिन नई उम्र के बच्चों और पैरेंट्स के बीच समझ की जो दीवार होती है, उसे तोड़ना इतना भी आसान नहीं होता। इन सबके साथ बेटी और पत्नी के बीच, एक समझदार, केरयिंग हस्बैंड भी है – सुधीर, जो बीवी को जानबूझ कर थोड़े ताने मारता है, लेकिन पत्नी के सेल्फ रिस्पेक्ट पर उंगली उठाने वाले को-वर्कस से टकरा जाता है।
दूसरी कहानी
कहानियों के गुच्छे में अगली कहानी है किरण शर्मा की, जो अपने पति विनोद के साथ बस एक साल पहले ही मुंबई आई है। पति काम में बिजी है, बेटी अपने स्कूल में। किरण, पड़ोसियों से, पति से, बेटी, यहां तक की सब्जी का ठेला लगाने वाले से भी कुछ वक्त चुराना चाहती है, मगर सब के सब एक अंधी दौड़ में लगे है। इस बीच किरण को पता चलता कि विनोद के साथ उसके रिश्ते की डोर टूट गई है। बिना रोए, इल्जाम लगाए, किरण को अपनी जिंदगी को संभालना है। ये दूसरी कहानी जिस मोड़ पर आकर खत्म होती है, आपको अहसास होगा कि जिंदगी और रिश्ते कितने मैच्योर होने चाहिए। दूसरी ओर किरण अपनी टीनेज बेटी गुरवीन को उसकी सेक्सुएलिटी के लिए झिड़कती नहीं, बल्कि प्यार से गले लगाकर जिंदगी को जीने का मंत्र दे देती है।
तीसरी कहानी
फिर तनवी शर्मा की कहानी, जो क्रिकेट की पिच और ब्वॉयफ्रेंड के उम्मीदों के बीच फंसी है। उसे चुनना है कि उसके गर्लिश बनकर, अपने एक्टर ब्वॉयफ्रेंड के साथ रिश्ते में जाना है, या फिर अपने सपने को चुनना है। वो भी तब, जब पूरी दुनिया उसे समझा रही है कि रोहन, उसे छोड़ना नहीं साथ लेकर चलना चाहता है और वो कितनी लकी है। लेकिन क्या तनवी सच में लकी है?
डायरेक्शन
ताहिरा अपनी पहली फिल्म में एक ही बिल्डिंग में रहने वाली शर्मा जी की बेटियों की जिंदगी में तांकती-झांकती हैं और इन कहानियों को एक ऐसे मोड़ पर लेकर आती हैं, जहां आगे का रास्ता बिल्कुल साफ नजर आता है। इनमें से हर किरदार में अपनी खामियां और किसी भी कहानी में किरदार उसे छिपाता नहीं है। राइटिंग और डायरेक्शन की खूबी ये है कि कोई भी कहानी आपको क्लास रूम की तरह नहीं लगती, जहां ज्ञान दिया जा रहा है। ये कहानी जिंदगी जैसी है, जो बस जिए जा रही हैं।
एक और बात ताहिरा ने अपने डायरेक्टोरियल डेब्यू में किसी स्टार को नहीं, बल्कि कलाकारों को चुना है। साक्षी तंवर को, स्क्रीन पर जिनका ठहराव और समझ आपको बांध लेता है। दिव्या दत्ता को, जो चुलबुली है, लेकिन उतनी ही इंटेंस भी। सैयामी खेर को, जो इंस्पायरिंग क्रिकेटर हैं। इस किरदार के लिए सैयामी की कास्टिंग बिल्कुल परफेक्ट है। स्वाति शर्मा और गुरवीन के टीनेज कैरेक्टर के लिए वंशिका और अश्रिता की कास्टिंग तो कमाल की है, दोनों ने एक लम्हे के लिए आपको निराश नहीं किया है।
पहली कोशिश हुई कामयाब
ये अच्छा है कि ऐसी फिल्में, जो शायद बिग स्क्रीन या थिएटर पर क्राउड पुलर ना हों, लेकिन जिंदगी का सबक सिखाती हैं। वो ओटीटी के जरिए घर-घर तक पहुंच रही हैं। ताहिरा की ये पहली कोशिश कामयाब है।
‘शर्मा जी की बेटी’ को 3 स्टार।
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