Thursday, 4 September, 2025
TrendingBigg Boss 19

---विज्ञापन---

वो एक्टर जिसने गांव में की खेती, होटल में आधी रात तक किया काम; आज हैं नेशनल अवार्ड विनर

पंकज त्रिपाठी एक छोटे से गांव से निकलकर, होटल में काम करने से लेकर फिल्मी दुनिया के सितारे बने। लेकिन उनका ये सफर संघर्षों, परेशानियों और उतर-चढ़ाव से भरा हुआ था। आपको बताते हैं कि उनका ये सफर कैसा रहा।

Pankaj Tripathi birthday special: गांव के खेतों से लेकर होटल की रसोई तक और फिर बड़े पर्दे की चमकदार दुनिया तक, पंकज त्रिपाठी का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। सादगी और संघर्ष से भरी उनकी जिंदगी ने उन्हें आज नेशनल अवॉर्ड विनिंग एक्टर बना दिया है। आइए जानते हैं, किस तरह एक किसान का बेटा मेहनत और हिम्मत के दम पर हिंदी सिनेमा का सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गया।

यह भी पढ़ें: कपूर खानदान का बेटा हो गया मधुबाला के प्यार में पागल, शादी के नाम पर भड़क गई थी मां..

गांव से पटना तक, थिएटर का जुनून और जेल में खुद की खोज

बिहार के  गोपालगंज जिले के बेलसंड गांव में जन्मे पंकज त्रिपाठी ने ठीक वैसे ही शुरुआत की जैसे कोई आम किसान का बेटा करता है। बचपन में दो-तीन स्कूल-लेवल नाटकों में उन्होंने लड़कियों का किरदार निभाया तब एक्टिंग के पीछे उनका दिल नहीं गूंजता था। लेकिन जब उन्होंने 12वीं में ‘अंधा कुआँ’ नाटक देखा और एक कलाकार ने उन्हें रुला दिया, तो उनके अंदर कुछ जाग उठा। तब से पटना में थिएटर के प्रति दीवानगी का सफर शुरू हुआ। वो साइकिल से तमाशों को देखने जाते और 1996 तक खुद कलाकार बन गए। कॉलेज में छात्र राजनीति से जुड़े, ABVP में एक्टिविटी की और एक छात्र आंदोलन के दौरान जेल तक चले गए। जेल में जहां उनके बॉस थिएटर, किताबें और लोग कुछ भी नहीं थे तब उस सात दिन की तन्हाई ने उन्हें अंदर से बदल दिया। उस दौरान उन्होंने खुद को, अपने अंदर छुपा एक्टर और हिंदी साहित्य में अपनी रुचि को समझा।

रात को होटल, दिन में थिएटर कैसे पकड़ी NSD की राह

एक थिएटर कलाकार बनने के लिए उन्होंने रात को पटना के होटल की रसोई में काम किया और सुबह-दोपहर में थिएटर के रिहर्सल किए , चंद घंटों की नींद के बीच यह दोहरी जिंदगी वे दो साल तक बिताते रहे। इसके बाद पता चला कि NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) में दाखिले के लिए ग्रेजुएट होना जरूरी है। तभी उन्होंने हिंदी साहित्य में ग्रेजुएशन शुरू किया, दिन में पढ़ाई और अभिनय, रात में होटल का काम करते हुए ये वक्त गुजारा। तीन अत्तेम्प्ट्स के बाद NSD में उनका सिलेक्शन हुआ, जहां उन्हें स्टाइपेंड के रूप में थोड़े पैसे भी मिलने लगे।

मुंबई की जर्नी 

2004 में पंकज त्रिपाठी मुंबई आए, तब उनके पास सिर्फ ₹46,000 थे और आंखों में बड़े सपने। दिसंबर 25 तक उनकी जेब में केवल 10 रूपए बचे थे। उस दिन उनकी पत्नी का जन्मदिन भी था मगर वो उनके लिए कोई केक कोई गिफ्ट नहीं खरीद पाए। शुरुआती 10 साल उन्होंने छोटे-छोटे रोल करके गुजारे जिंदगी बसर करना उनके लिए पहले जरूरी था, कला बाद में! फिर 2012 में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उन्हें जबरदस्त ब्रेक मिला और साथ में मिली पहचान। इसके बाद ‘फुकरे’, ‘निल बट्टे सन्नाटा’, ‘बरेली की बर्फी’ जैसी कई फिल्मों में काम किया। National Film Award स्पेशल मेंशन उन्हें ‘Newton’ फिल्म के लिए मिला। अपने एक्टिंग को लेकर वे कहते हैं ‘मैं खेती करने वाले की तरह हूं, बीज बो दिए हैं, अब फसल का इंतजार है, बेताब नहीं हूं।’

यह भी पढ़ें: शादीशुदा एक्टर के प्यार में पड़ी, तलाक के बाद झेला मेंटल ट्रॉमा; 80’s की इस हसीना को पहचाना क्या?


First published on: Sep 04, 2025 10:27 AM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.