Bhakshak Review: पॉपुलर ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्क्लिस पर भक्षक स्ट्रीम हो रही है। इसे फिल्म की तरह देखिएगा तो पचा नहीं पाइएगा। वो अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं। फिल्म बहुत (Bhakshak Review) डिस्टर्बिंग है। डिस्टर्बिंग माने बरदाश्त नहीं कर पाइएगा, क्योंकि ये फिल्म हमसे, आपसे, सिस्टम से, सोए हुए लोगों से सवाल पूछने का जिगरा रखती है और आईना दिखाती है कि अपनी-अपनी ज़िंदगी अपनी-अपनी सुरक्षा और सुविधा के मुताबिक हम किसी के दर्द को महसूस करना भूल गए हैं।
दुष्कर्म और अत्याचार की पोल खोलती भक्षक
भक्षक देखकर थोड़ा गुस्सा इसके मेकर्स पर भी आता है कि मुज्जफरपुर को मुन्नवरपुर और (Bhakshak Review)असल अपराधी का नाम और जात छिपाने की ज़रूरत थी। उसे बंसी साहू करने से एक नज़र में वो भी बच रहे हैं लीगल लफड़ों से, लेकिन बावजूद इसके 2 घंटे 15 मिनट की भक्षक, बिहार के मुज्जफ़रनगर में एक बालिका सेल्टर होम में छोटी-छोटी बच्चियों के साथ हुए दुष्कर्म और अत्याचार की पोल खोलती है।
सिस्टम और सरकार के खिलाफ लड़ाई
भक्षक की कहानी मुन्नवरपुर में एक यूट्यूब चैनल चलाने वाली वैशाली सिंह से शुरु होती है, जो ऐसी पत्रकारिता करने में यकीन रखती है, जो वाकई बदलाव ला सके। मगर, ना तो उसके चैनल को व्यूवर्स और ना ही कोई ढंग की खबर मिल रही है। मगर दिन एक इन्फॉर्मर वैशाली सिंह को सरकार की वो ऑडिट रिपोर्ट देता है, जिसमें शेल्टर होम की लड़की के साथ हो रहे अत्याचार की कहानी दर्ज है। दो महीने से सरकार और सिस्टम इस रिपोर्ट को दबाए बैठे है, क्योंकि इसके तार हर किसी से जुड़े हैं। वैशाली इस लड़ाई को लड़ने का फैसला अपने इकलौते कैमरा-मैन भास्कर के साथ लड़ने निकल पड़ती है। जिसके खिलाफ उसकी बहन, पति, जीजा और पूरा सिस्टम है।
शाहरुख़ ख़ान भी कांप गए
पुलकित और ज्योत्सना की ये कहानी, जैसे वो नंगा सच है… जिसे कहने और सुनने की हिम्मत कोई बिरला ही उठाता है। जब ये कहानी रेड चिलीज़ पहुंची, तो शाहरुख़ ख़ान भी कांप गए, और मिनटों में ये कहानी कहने की ज़िम्मेदारी उठा ली, बावजूद इसके कि इसमें पठान, जवान जैसा कमर्शियल मसाला नहीं था।
अनाथ बच्चियों के साथ अत्याचार
शेल्टर होम के अंधेरे कमरों में घुटती-सिसकती-डरती बच्चियों को देखकर आप कलेजा मुंह को आ जाता है। अनाथ बच्चियों के साथ इतना अत्याचार, और वो भी उनके हाथों, जिन्हे उनकी जिंदगी संवारने की ज़िम्मेदारी दी गई हो देखकर पेट मे ऐंठन होने लगती है।
कैसी है पुलकित की फिल्म
डायरेक्टर पुलकित ने इस फिल्म में कोई मसाला नहीं डाला है। लोकल न्यूज़पेपर के साथ शेल्टर होम चलाने वाले, चाइल्ड वेलफेर डिपार्टमेंट के अधिकारी, समाज कल्याण विभाग के मंत्री तक इस केस की कालिख़ पहुंची। लेकिन जब आप उन्हे आख़िर में फिर से बच्चों की ठेकेदारी और ज़िम्मेदारी का भाषण देते देखते हैं, तो लगता है कि हम वाकई भक्षक हो गए हैं।
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डरते, छिपते और सिर्फ़…
वैशाली सिंह के किरदार में जब उसका पति, उसे रात को भूखे होने का ताना मारता है, बहन और जीजा जब चाहते हैं कि वो इस ख़तरनाक केस को छोड़कर अपना परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोचे, तो लगता है कि यही तो हम हैं। डरते, छिपते और सिर्फ़ अपने बारे में सोचते।
वैशाली सिंह के किरदार में भूमि पेडनेकर
इस कहानी में वैशाली सिंह के किरदार में भूमि पेडनेकर के तेवर वापस आ गए हैं। इस दमदार एक्ट्रेस को किरदार और साथ अच्छा मिल जाए, तो वो क्या कर सकती है… वो भक्षक से दिखता है। भास्कर के किरदार में संजय मिश्रा, मायूसी और उम्मीद एक साथ दिखा देते हैं, ये उनके जैसा मंझा हुआ कलाकार ही कर सकता है। खबरी बने दुर्गेश कुमार का काम बेहद शानदार है। भक्षक बंसी के किरदार में आदित्य श्रीवास्तव को देखकर आप सिहर जाते हैं। अगर एंटरटेनमेंट के शौकीन हैं और चाहते हैं कि दिल और दिमाग़ पर ज़्यादा ज़ोर ना पड़े, तो भक्षक से दूर रहिए। क्योंकि ये फिल्म, ये कहानी, इसके किरदार आपको चुनौती देते हैं।