Blackout Review: (Ashwani Kumar) इस साल ही जनवरी में डायरेक्टर श्रीराम राघवन की कैटरीना कैफ और विजय सेतुपति स्टारर एक फिल्म आई थी जिसका नाम था ‘मैरी क्रिसमस’ (Merry Christmas)। इस फिल्म में एक ही रात में क्राइम, थ्रिल, सस्पेंस में फंसे एक शख़्स को दिखाया जाता है जिसे क्रिटिक्स की ओर से भरपूर प्यार मिला। हालांकि ये मूवी थिएटर पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। लेकिन ओटीटी पर आई तो लोगों ने खूब पसंद किया और वो छा गई।
ऐसे में ये कहना गलत न होगा कि इंटरनेशनल फॉर्मेट वाली इन फिल्मों को ओटीटी पर खूब व्यूअरशिप मिलती है। जियो सिनेमा पर रिलीज हो रही – ‘ब्लैकआउट’ (Blackout) भी कुछ-कुछ ऐसी ही फिल्म है, जिसमें थ्रिल के साथ कॉमेडी है। इस फिल्म के डायलॉग्स की तरह ही, एक्टर्स की भर भरकर एंट्री होती है जिससे प्रोड्यूसर सबके पैसे – गेस्ट अपीयरेंस बताकर काट ले।
कैसी है ब्लैकआउट की कहानी
ब्लैकआउट की कहानी की बात करें तो इसमें लेनी डिसूज़ा, ने एक क्राइम रिपोर्टर का रोल प्ले किया है। चेहरे बदल-बदल कर स्टिंग ऑपरेशन करके करप्शन की पोल खोलता है और अपनी बीवी रौशनी पर जान छिड़कता है। लेकिन एक रात पुणे शहर की बड़ी ज्वेलरी शॉप को लूटने के लिए, लुटेरों ने जब पूरे शहर की बिजली गुल कर दी।
फिर लेनी डिसूजा की ज़िंदगी की वो रात शुरू हुई, जिसमें उसे मौका-धोखा, दोस्त-दुश्मन, दौलत-बेबसी, गैंगस्टर-पुलिस, गुड लक और बैड लक एक साथ नसीब होता है। एक्सीडेंट में उसे लूटा हुआ खजाना, और बेवड़ा गैंगस्टर – असगर दोनों मिलता है। ठीक-ठाक नाम के दो इन्फ्लूएंसर चोर और खूबसूरत अबला – श्रुति मिलती है जो उसके लिए बवाल बनकर आए हैं। और साथ में डिटेक्टिव अरविंद, जो लेनी की ज़िंदगी में लेनी की देनी करने आया है।
अच्छी कॉमेडी और कॉमिक सिचुएशन आई पसंद
2 घंटे की इस कहानी में सब कुछ इतनी तेजी से हो रहा है, कि आपको मजा आता है। कॉमिक सिचुएशन है.. चोरी का माल खरीदने वाले सईद चचा की दुकान पर सिचुएशनल कॉमेडी अच्छी है। लेकिन कहानी शुरू से थोड़ा ओवर ड्रामेटिक लगती है, जिसमें किरदार नेचुरल नहीं लगते। सिचुएशन, कैरेक्टर इन सब में से रियलिज्म गायब है। इसलिए आप किसी भी सिचुएशन पर चौंकते नहीं है। अब ये राइटर-डायरेक्टर देवांग शशिन भावसार का ट्रीटमेंट है, जिसमें उन्होंने कैरेक्टर्स और सिचुएशन को कॉमिक बनाने के लिए इसमें ओवर-ड्रामेटिक बने की कोशिश करते हैं।
ये बात फिल्म को आपसे कनेक्ट नहीं होने देती। मतलब बेवफाई पर आपको दर्द नहीं होता, इमोशन्स पर आप तक वो फीलिंग्स नहीं पहुंचती, और थ्रिल-सस्पेंस पर आप वैसे रिएक्ट नहीं करते। लेकिन कहानी में कॉमिक टोन है, सिचुएशन नहीं। हां फिल्म का ट्रीटमेंट शानदार है, स्लीक है। फास्ट पेस स्टोरी, आपको बांधे नहीं रखती, तो उतरने भी नहीं देती। बैक टू बैक अलग-अलग कैरेक्टर की एंट्री मज़ेदार है, थोड़ा सस्पेंस बना रहता है। बैकग्राउंड स्कोर भी ये इंट्रेस्ट बनाए रखता है।
कैसी रही सभी की एक्टिंग
हां, विक्रांत मैसी को लैनी डिसूजा के इस ड्रैमेटिक परफॉर्मेंस में देखना, थोड़ा अटपटा सा लगता है। हालांकि विक्रांत एक्टर कमाल के हैं, उन्होने कोशिश भी अच्छी की है। लेकिन लाउट परफॉर्म के तौर पर उन्हें देखकर आपके पेट में थोड़ी गुड़गड़ तो होगी।
सुनील ग्रोवर एक शराबी अंडरवर्ल्ड डॉन के कैरेक्टर में अच्छे लगे हैं। जिशु सेन गुप्ता को डायरेक्टर अच्छे से इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं। मौनी रॉय खूबसूरत लगी हैं, और अपने छोटे से रोल में स्क्रीन को चमका जाती हैं। बाकी कैरेक्टर्स फास्ट गेस्ट-अपीयरेंस वाले मोड में हैं, तो आप उनके बारे में कोई राय बताइए… उससे पहले उनका स्क्रीन टाइम ख़त्म हो जाता है।
ब्लैकआउट को 3 स्टार।
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