Munjya Review: (Navin Singh Bhardwaj) बॉलीवुड में पारंपरिक लोक कथाओं के चलन का अगर जिक्र हों तो ऋषभ शेट्टी की फिल्म कन्तरा और तुम्बाड को लोग अब तक भूल नहीं पाए हैं। लोक कथा की कहानी को ऑडियंस ने इतना पसंद किया कि अब maddock films और दिनेश विजान भी ले कर आये हैं अपनी सुपरनैचुरल यूनिवर्स की ब्रांड न्यू कहानी मुंज्या’ (Munjya)। अब इसे सुपरनैचुरल यूनिवर्स क्यों कहा जा रहा हैं इस बात की जानकारी हम आपको आगे चल कर बतायेंगे। चलिए ‘जानते हैं कि आखिर कैसी है दिनेश विजान, अमर कौशिक और आदित्य सरपोतदार की फिल्म मुंज्या। देखने से पहले पढ़िए E24 का रिव्यू।
जानें कैसी है फिल्म की कहानी
बात कहानी की करें तो इसकी शुरुआत पुणे से होती है हैं जहां बिट्टू (अभय वर्मा) अपनी मां (मोना सिंह) और दादी के साथ उनका पार्लर चला रहा होता है। बिट्टू को अपने बचपन की दोस्त बेला (शरवरी) से प्यार है। उमर में थोड़ी बड़ी होने के कारण वो अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाता है। बिट्टू के कजिन की सगाई के सिलसिले में सबको उनके गांव कोंकण जाना पड़ता है जहां बिट्टू को पता चलता है कि उनके पिता का निधन गांव के स्थानीय ब्रह्मराक्षस मुंजा के वजह से होता है। बिट्टू चिंटू कवाडी (मुंजा का निवास स्थान) जाता है जहां मुंजा, बिट्टू के पीछे पड़ जाता है और उसके साथ पुणे तक आ जाता है।
अब बात करते हैं मुंजा की कहानी की, दरअसल मुंजा बिट्टू की दादी का सगा भाई होता है। मुंजा को तंत्र मंत्र में काफ़ी रुचि होती है और उसे गांव की लड़की मुन्नी से प्यार होता है। मुन्नी की शादी किसी और से होते देख मुंजा बर्दाश्त नहीं कर पाता और वो काला जादू कर और अपनी ही बहन की बली चढ़ा कर मुन्नी को वापस पाना चाहता है. इसी दौरान अपनी बहन से हाथापाई के दौरान मुंजा मारा जाता है। जिसके बाद वो अपने ही लोगों को परेशान करता है।
ताकि वो मुन्नी से दोबारा शादी कर पाये। इधर मुन्नी की ही पोती है बेला और पुणे में जवान मुन्नी जैसी दिखने वाली बेला पर मुंजा का दिल आ जाता है और अब वो उस से शादी करना चाहता है। तो क्या बिट्टू अपनी बेला को मुंजा के हवाले कर देगा या अपने प्यार को पाने के लिए मुंजा को ख़ुद से दूर करेगा, ये जानने के लिए आपको अपने नज़दीकी सिनेमाघर का रुख करना पड़ेगा।
डायरेक्शन, म्यूजिक और राइटिंग
मुंजा की कमान दिनेश विजान ने ली है। अब क्योंकि कहानी कोंकण की हैं इसलिए दिनेश ने आदित्य को यें दारोमदार दे कर अच्छा काम किया है। पूरे 121 मिनट की फिल्म को आदित्य ने अच्छे तरीके से डायरेक्ट किया है। कोंकण की डिटेलिंग और लोककथा को फिल्म के शुरुआत में अच्छे से दर्शाया गया है। हालांकि डायरेक्टर बीच में कंफ्यूज करने लगे कि आख़िर इस फ़िल्म का असली जॉनर क्या है। राइटिंग और एडिटिंग के मामले में राइटर योगेश चन्देकर और एडिटर मोनीषा बलदवा थोड़े ढीले पड़ गये हैं।
फ़िल्म को क्रिस्प रखने के बजाए थोड़ा लंबा कर दिया गया हैं। क्लाइमेक्स में मुंज्या के साथ हो रहे सीक्वेंस को खींचा गया है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर काफी ग्रिपिंग हैं। ये बैकग्राउंड एक्टर ही हैं जो आपको आपके कुर्सी से बांधे रखेगा जिसको मूवी के पॉजिटिव पॉइंट में गिना जाना चाहिए। इसका पूरा श्रेय जाता हैं सचिन-जिगर की जोड़ी को।
एक्टिंग
मुंजा में मुख्य 4 कलाकार, अभय वर्मा, मोना सिंह, शरवरी और ख़ुद मुंजा। फ़िल्में के लीड एक्टर के रूप में अभय वर्मा ने पूरी फ़िल्म को अपने कंधे पर उठा रखा है। पूरी फिल्म को अभय ने मासूमियत के साथ निभाया है। फिल्म में उनके एक्सप्रेशन और एक्टिंग कमाल की है। शरवरी जब जब पर्दे पर नज़र आयी तो छा गईं। बंटी और बबली के बाद शरवरी को एक नये अन्दाज में देखना किसी ट्रीट से कम नहीं। बिट्टू की मां के किरदार में मोना सिंह ने कमाल का काम किया है।
उनकी कॉमिक टाइमिंग के वजह से आप हंसने पर मजबूर हो जाएंगे। फ़िल्म के शुरुआत में मुंज्या के किरदार को निभाने वाले बच्चे ने भी कमाल का काम किया है। फिल्म में आपको एक प्रीस्ट के किरदार में नज़र आयेंगे सत्यराज, जी हां ये वही सत्यराज हैं जिन्होंने फ़िल्म बाहुबली में कटप्पा का किरदार निभाया था। सत्यराज का कॉमेडी वाला अन्दाज़ तारीफ के काबिल है।
क्यों देखें
फिल्म में हॉरर सुपरनेचुरल कॉमेडी है इसे बच्चों के साथ भी देखा जा सकती है। फिल्म को अगर भूतिया फिल्म सोच कर देखने जाएंगे तो निराश होंगे क्योंकि फिल्म में कई जगह आपको कॉमेडी भी देखने को मिलेगी। हां अगर कोई खास ऑप्शन न होने पर आप फिल्म देखने जा रहे हैं तो ठीक है। हां इस बात को जरूर ध्यान रखिएगा कि फिल्म के क्रेडिट्स से साथ ही मत उठिएगा क्योंकि असली मजा तो मुंजा के खत्म होने के बाद ही आएगा।
फ़िल्म को मिलते है – साढ़े तीन स्टार।
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