Hira Mandi – The Diamond Bazaar Review: (अश्वनी कुमार) ड़े-बड़े दावों की हवा निकलना क्या होता है? वो हीरामंडी – द डायमंड बाजार से सीखें। 200 करोड़ की वेब सीरीज, भंसाली का ओटीटी डेब्यू, सितारों की लंबी चौड़ी फौज और नेटफ्लिक्स का सबसे एंबिशियस शो…फर्स्ट लुक से फर्स्ट टीजर, फिर बैक टू बैक दो गाने, ट्रेलर लॉन्च तक सब किया गया। अक्सर ऐसा होता है कि आप को अपने बच्चों की खामी नजर नहीं आती, या फिर आप उसे देखकर भी नजर अंदाज करते हैं। हीरा मंडी के मामले में संजय लीला भंसाली के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। 14 साल से हीरा मंडी को बनाने का सपना देखने वाले भंसाली ने इसे बनाया भी कुछ ऐसे ही।
जिसमें तमाम शान-ओ-शौकत, बड़े-बड़े महलों जैसे सेट… तवायफों की महफिलों के लिए फव्वारे से सजे शीश महल, मोमबत्तियों से सजे शानदार झूमर, जमीं से छत तक खंबे की नक्काशियां ऐसी कि मुगलिया महल भी शर्माने लगे। हीरा मंडी की तवायफों के लिबास ऐसे शाही खानदान की शहजादियों को भी नसीब ना हों और जन्नत-ए-फिरदौस जैसे इत्र की खुशबू सब कुछ ऐसा है कि आपको मदहोश कर दे। लेकिन अफसोस इन सबको पिरोने वाली कहानी के 40 से 50 मिनट वाले 8 एपिसोड में गुमशुदा हैं।
नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई हीरा मंडी
लाहौर के शाही महल के पीछे के इस मोहल्ले में जहां अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान से लड़कियों को लाकर उन्हे गाना और नाचना सिखाया जाता और फिर तवायफों के उस मोहल्ले में शाही महल और नवाब आकर अपना दिल बहलाते। अंग्रेजों का दौर आया, तो हीरा मंडी को बाजार-ए-हुस्न नाम मिला और इस मोहल्ले को रेड लाइट एरिया का दर्जा। मोइन बेग ने 14 साल पहले, 14 पन्नों की ये कहानी भंसाली को दी, और तब से इसे बनाने की बहुत नाकाम कोशिशें हुई, जब तक नेटफ्लिक्स ने इसे मेगा सीरीज के तौर पर अप्रूवल नहीं दे दिया।
कहानी कसना भूल गए भंसाली
भंसाली ने इस कहानी में नजाकत जोड़ी, नफासत जोड़ी, शायरी जोड़ी, नाच-गाना, सेट सब जोड़ दिया। मगर इन सब के बीच कहानी को कसना भूल गए। हीरा मंडी की कहानी दो तवायफ बहनों रेहाना और मल्लिका से शुरू होती है, जहां बड़ी बहन रेहाना शाही महल की सरपरस्त बनकर, मल्लिका से उसकी औलाद छीन लेती है। वहीं मल्लिका, रेहाना से उसकी जिंदगी, शाही महल और उसकी हुजूर वाली गद्दी छीन लेती है। बहनों के बीच हुजूर बनने की ये अदावत अगली पीढ़ी की फरीदन और आलम बेग तक पहुंचती और झुलसाती है।
इस कहानी में लज्जो की रुस्वा मोहब्बत, बिब्बो की वतन परस्ती, रेहना की बेटी फरीदन का अपनी विरासत को फिर से पाने की साजिश दिखाई गई है। वहीं मल्लिका की बेटी आलम की इश्क़ के लिए बगावत और क्लाइमेक्स तक पहुंचते-पहुंचते नवाबों की बेवफाई और अंग्रेजों की बदसलूकी से होते हुए…आजादी के तराने पर सब कुछ कुर्बान कर देने वाले जज्बे को पिरोने की कोशिश की गई है। लेकिन ये सारे ट्रैक, जो एक थाली में अलग-अलग पकवान की तरह सजे होने चाहिए थे, वो आपस में मिलकर रसोई में बची हुई सब्जियों से बनी खिचड़ी जैसी हो जाती है।
कंहा हुए बोर
लज्जो और जोरावर की बेवफाई वाले ट्रैक में जिस सरप्राइज एलिमेंट को भंसाली परोसना चाहते थे। उस जुल्फिकार को पहले बाप-बेटे यानि अध्ययन सुमन को उम्रदराज होकर शेखर सुमन के तौर पर दिखाकर भंसाली ने पहले एपिसोड में ही खोल दिया। ये तो अच्छा हुआ कि ट्रैक सेकेंड एपिसोड में ही खत्म हो गया, वरना और फजीहत होती। रेहाना और फरीदन… यानि मां के कत्ल के लिए बेटी के बदले वाली कहानी, जिसे हीरा मंडी के सबसे बड़े हाईलाइट के तौर पर पेश किया गया।
भंसाली ने उसे भी दो-चार सीन्स से ज्यादा जगह नहीं दी। उसकी वजह शायद भांजी शर्मिन सहगल के किरदार आलमबेग के ट्रैक को ज्यादा जगह देना रहा हो। लेकिन इसके चलते सीरीज और भी कमजोर हुई। आलमबेग और ताजदार की मोहब्बत का ट्रैक में शायरी भले ही कितनी जोड़ दी गई हो, लेकिन रुमानियत सिरे से गायब रही है।
बिब्बो जान ने लूटी महफिल
इस पूरी सीरीज में जो कहानी सबसे ज्यादा असर करती है, वो है बिब्बो जान की, मुल्क के लिए बिब्बो की बगावत वाला ट्रैक दिलचस्प है, लेकिन उसकी बैकग्राउंड स्टोरी 8 एपिसोड से पूरी तरह से मिसिंग है। पूरी सीरीज देखते वक्त आपको अहसास होता है कि ये सेट तो संजय लीला भंसाली का है।
लेकिन कहानी कहने का ढंग बताता है कि भंसाली की स्टोरी टेलिंग वाला अंदाज़ इससे मिसिंग है। सातवें और आठवें एपिसोड में जाकर, लगता है कि भंसाली ने कहानी को अपने कब्जे में लेकर, उसे अंग्रेजों के खिलाफत की ओर मोड़ा। तब कहीं कहानी संभलने की कोशिश करती है, लेकिन पहले 6 एपिसोड तक बात इतनी बिगड़ चुकी है कि मामला संभल ही नहीं पाता।
सिनेमैटोग्राफी रही शानदार
हां, हीरा मंडी के मुजरे के दौरान जरूर आपको भंसाली की क्राफ्टमैन शिप का नजारा दिखता है। ‘सकल बन’ और ‘हम लेकर रहेंगे आजादी’, इस सीरीज के सबसे दमदार ट्रैक हैं। अलग गाने के तौर पर भले ही कितनी ही हुई हो, लेकिन सीरीज के दौरान वो बेअसर रहा है। शानदार सिनेमैटोग्राफी और बेहतरीन सेट हीरा मंडी की सबसे बड़ी खासियत हैं। लेकिन छोटी स्क्रीन वाले ओटीटी फॉर्मेट पर इसका रंग उतना निखरकर सामने नहीं आता।
किसने जीता दिल
परफॉरमेंस के तौर पर मल्लिका जान के किरदार में मनीषा कोइराला, हीरा मंडी की जान हैं। जब तक मनीषा फ्रेम में होती हैं, तब तक आप स्क्रीन देखते हैं और फिर नजरें भटकने लगती हैं। बिब्बो जान बनी अदिति राव हैदरी का ट्रैक भी अच्छा है और परफॉरमेंस भी। लज्जो बनी। रेहाना और फरीदन के मां-बेटी वाले डबल रोल के बाद भी सोनाक्षी के किरदार में उतना दम नहीं था, कि वो अपना असर छोड़ सके। ऋचा चड्ढा के पास छोटे से रोल में करने और दिखाने के लिए ज्यादा मौका था नहीं। आलमबेग बनी शरमीन सहगल को मौका प्लेट में सजाकर मिला, लेकिन हीरा मंडी में वो चमक नहीं पाईं।
सबसे अटपटे किरदार की शिकार हुईं संजीदा शेख, ख्वाबगाह पाने के लिए साजिशें बुनने वाली छोटी बहन वहीदा बनना उनके लिए शायद सबसे बड़ी मिस-कास्टिंग का सुबूत है। वहीं हीरामंडी के मेल एक्टर्स तो पूरी तरह से जाया हो गए। शेखर सुमन के पास 8 एपिसोड की सीरीज में 4 सीन हैं, अध्ययन सुमन बाप-बेटे के डबल रोल करने के बाद भी बेअसरदार रहें। 14 साल बाद भंसाली के साथ अपने कमबैक की आस लगाए फरदीन खान के पास करने के लिए शो में कुछ रहा ही नहीं।
क्यों देखें क्यों न देखें हीरा मंडी
हालांकि वेब सीरीज को लेकर लोगों में बज बना हुआ है, लेकिन कहीं न कहीं सीरीज की कहानी में कुछ कमी दिखाई दी है। अगर आपके पास कुछ खास ऑप्शन नहीं है तो आप हीरा मंडी देख सकते हैं, लेकिन कोई ऑप्शन नहीं है तो देख ही लें। ये हमारा ओपिनियन है, जब आप देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि कहानी कैसी है।
हीरा मंडी: द रॉयल बाजार को 2 स्टार।
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