Friday, 15 November, 2024

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Freedom at Midnight: देश को कैसे मिला पहला PM? सरदार पटेल और नेहरू में महात्मा गांधी ने चुनी अपनी पसंद

Freedom at Midnight: सीरीज 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में प्रधानमंत्री के बनने की कहानी को अलग नजरिये से दिखाया गया है। इस सीरीज को सोनी लिव ऐप पर देख सकते हैं।

Freedom at Midnight
Freedom at Midnight
Movie name:Freedom At Midnight
Director:Nikkhil Advani
Movie Casts:Sidhant Gupta, Chirag Vohra, Rajendra Chawla, Luke McGibney, Cordelia Bugeja, Arif Zakaria, Ira Dubey, Malishka Mendonsa, K C Shankar, Rajesh Kumar, Pawan Chopra, Anuvab Pal, Khurshed J Lawyer, Shreya Nair, Urvashi Dubey, Andrew Cullum

Freedom at Midnight: (Ashwini Kumar) बचपन में स्कूल की किताबें, बड़े होने पर पॉलिटिकल मुद्दे और उसके बड़े होने पर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने भारत की आजादी, देश के बंटवारे और इस पर महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना की कहानियों को, उनकी सोच, उनके काम को अलग-अलग लेंस से सीरीज ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में दिखाया गया है। या यूं कहें कि ऐसे दिखाया कि जैसे अलग-अलग वक्त की सरकारों को सूट करता रहा। आजादी के 77 साल बाद तक हम भारत के इतिहास का सबसे जरूरी, खून से सना, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के डूबा चैप्टर ऐसे सुनते और समझते हैं, जैसे हमें समझाया जाता रहा हो। ऐसे में सोनी लिव की सीरीज ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ Larry Collins और Dominique Lapierre की 1975 में लिखी इसी नाम की किताब पर है, जो हिंदुस्तान की आजादी और उसके बंटवारे की घटनाओं के लिए पब्लिक डोमेन में सबसे क्रेडिबल दस्तावेज माना जाता है। ये गौर करने वाली बात है कि इस किताब के लिखे जाने के 49 साल बाद तक इसके लिखे जाने के अंदाज और थोड़ा ब्रिटिशर्स की ओर झुके हुई इमेज के अलावा फैक्ट्स की तरफ चैलेंज नहीं किया जा सकता है।

रोंगटे खड़े कर देगी आजादी के पहले की कहानी

डायरेक्टर निखिल आडवाणी ने 7 एपिसोड वाले इस सीरीज की शुरुआत आजादी मिलने के चंद महीने पहले लॉर्ड माउंटबेटन को इंडिया के वायसराय बनने की जिम्मेदारी मिलने से होती है। एडविना माउंटबेटन के साथ तब इंग्लैंड के प्राइम मिनिस्टर क्लिमेंट एटली और किंग जॉर्ज V ( किंग जॉर्ज 5) के इन इंस्ट्रक्शन पर के बिना बंटवारे के यूनाइटेड इंडिया में ट्रांसफर ऑफ पावर, 30 जून 1948 तक किसी भी हालत में करवाना है, वो तब के वायसराय हाउस और आज के प्रेसिडेंट हाउस में आते हैं। उस वक्त देश की हालात, इंडियन नेशनल कांग्रेस, अकाली दल, और फिर मुस्लिम लीग की फैसलों को लेकर देश में लगी आग से आपका सामना होता है। साल 1937 में देश में हुए चुनावों के बाद मुस्लिम लीग को सरकार में शामिल न करने पर भड़के हुए मोहम्मद अली जिन्ना, धीरे-धीरे भारत के मुस्लिमों में एक अलग मुल्क की आग भड़काते हैं। साल 1947 तक देश को ऐसे हालात में लाकर खड़ा कर देते हैं, जहां नोआखली से लेकर बिहार और पंजाब में भड़के दंगों को झुलसते देश को दिखाया जाता है।

‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के सीजन 2 का फैंस को इंतजार

‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के इन सात एपिसोड में वल्लभ भाई पटेल के कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने और फिर महात्मा गांधी के कहने पर  पटेल को अपना नॉमिनेशन वापस लेकर, पंडित नेहरू के नाम को आगे करने के हैरान कर देने वाले फैसले। इस फैसले से लेकर शांति के लिए जिन्ना को प्रधानमंत्री पद के लिए चुनने पर बापू के आदेश को न मानने वाले  पटेल और नेहरू के फैसले तक की कहानी दिखाई गई है। यकीन मानिए, फ्रीडम एट मिडनाइट को देखकर आपके कई मिथ टूटेंगे। कई हंगामे देखने को मिलेंगे इसके साथ देश की आजादी में शामिल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के तमाम नेताओं के बारे में जो हवा भरी गई है, वो गुब्बारा भी फुटेगा। 7वें एपिसोड तक ये कहानी 3 जून 1947 तक पहुंचती है जहां देश की आजादी का प्लान, देश के बंटवारे से होकर गुजरता है और अकाली दल  मुस्लिम लीग कांग्रेस के प्रेसिडेंट ऑल इंडिया रेडियो से देश को बताते हैं कि उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन के इस प्लान को मान लिया है। यहां से ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के सीजन 2 का इंतजार शुरू होता है।

एडविना माउंटबेटन और पंडित नेहरू की दोस्ती 

निखिल आडवाणी और उनके राइटर्स ने मिलकर  जिस तरह से  Larry Collins और Dominique Lapierre की कहानी को एडॉप्ट किया है, उसमें पूरी कोशिश की गई है कि पॉप राइटिंग वाला मसाला कम और सबसे जरूरी इंसीडेंट्स को इस सीरीज में शामिल किया जाए। महात्मा गांधी जब पहली बार वायसराय हाउस में कदम रखते हैं तो लार्ड और लेडी माउंटबेटन की हड़बड़ाहट बताती है कि सफेद धोती में लिपटे, एक लाठी हाथ में लेकर चलते बापू की शख्सियत में कितना दम था। ये बताती है कि खुद को महात्मा गांधी और नेहरू के बराबर की हैसियत दिलाने की चाह में मोहम्मद अली जिन्ना ने कैसे भारत में हिंदू सिख और मुस्लिमों के खून से पाकिस्तान की बुनियाद रखी। इस सीरीज में एडविना माउंटबेटन और पंडित नेहरू की दोस्ती की एक छोटी सी झलक भी है साथ ही नेहरू की सोच पर सरदार पटेल के यकीन की मुहर भी है।

दिलचस्प हैं सीरीज के डायलॉग 

कहानी को दिलचस्प बनाने के लिए निखिल आडवाणी के डायलॉग राइटर्स ने पूरी ताकत लगा दी है। नेहरू, जिन्ना, पटेल और बापू के डायलॉग  सलीम जावेद वाले तेवर के साथ लिखे गए हैं, जैसे ‘हिंदुस्तान का बंटवारा होने से पहले मेरे शरीर का बंटवारा होगा या फिर आम आदमी वो बदलाव ला सकता है, जो सरकार सालों में नहीं ला सकती।’ और ये खूबी आपको इस सीरीज से और जोड़कर रखेगी। सेट डिजाइन, कॉस्ट्यूम पर इतनी बारीकी से काम किया गया है कि आपको लगेगा कि आप वाकई आजादी के पहले के दौर में पहुंच गए हैं। इस सीरीज में एडिटिंग ऐसी है कि 40 से 44 मिनट के 7 एपिसोड आपको बांधे  रखते हैं।

‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ कास्ट

निखिल आडवाणी ने  ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के लिए जो कास्ट चुनी है वो अपने आप में इस शो की सबसे बड़ी हाईलाइट है। 35 साल के सिद्धांत गुप्ता को 55-56 साल के पंडित नेहरू के तौर पर कास्ट करना खुद तलवार की धार पर चलने जैसा फैसला था। इसके साथ सिद्धांत ने जिस खूबी के साथ ये किरदार निभाया है आप इस एक्टर के मुरीद हो जाएंगे। स्कैम 1992 से सबकी निगाह में आए  चिराग वोहरा ने महात्मा गांधी के किरदार में खुद को रंग लिया और सरदार पटेल के किरदार में राजेन्द्र चावला ने अपनी अदाकारी का लोहा मनवा दिया। जिन्ना के कैरेक्टर में आरिफ जकारिया को देखकर आप पलकें झपकना भूल जाएंगे। जिन्ना की बहन फातिमा के किरदार में इरा दूबे भी क्या खूब जमी हैं। लॉर्ड माउंटबेटन बने Luke Mc Gibney और एडविना बनी Cordelia Bugeja ने भी अपने किरदारों की कमान खूब थामे रखी है। ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ बनाने को सोचना भी एक आग से खेलने जितनी खतरनाक कोशिश थी और निखिल आडवाणी ने न सिर्फ ये खेल बखूबी खेला है बल्कि इतिहास के पन्नों से एक बेहद जरूरी कहानी सामने लाकर रख दी है। बेसब्री से इसके सेकंड सीजन का इंतजार रहेगा।

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First published on: Nov 15, 2024 03:33 PM

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