Pippa Movie Review / Ashwani Kumar : पिप्पा – यानि 1971 में इस्तेमाल हुआ PT-76 टैंक, जो जमीन के साथ पानी पर भी चल सकता है और दुश्मनों के परखच्चे उड़ा सकता है। इसे तब पंजाबी साथियों ने प्यार से पिप्पा बुलाना शुरु किया। इन पिप्पा टैंक्स ने, पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश की आजादी के लिए गरीबपुर में हुई जंग में अपना अहम रोल निभाया। वैसे पिप्पा की कहानी, सिर्फ टैंक तक सिमटी नहीं है। इसमें लेफ्टीनेंट बल्ली यानि बलराम सिंह मेहता, जो मिजाज से बेफिक्रे, आदतन – सीनियर्स की नाफरमानी करने वाले नौजवान है, जो रशियन के साथ ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज के दौरान – इन-सबऑर्डिनेशन करते हुए पिप्पा को गहरे पानी में उतार देता है।
क्रॉस कनेक्शन की वजह (Pippa Movie Review)
वैसे भी 1971 की लड़ाई पर फिल्में आती रही हैं और आती रहेंगी, लेकिन पिप्पा के साथ यही मुश्किल हो गई। दरअसल पिप्पा को आनन-फानन में प्राइम वीडियो पर रिलीज करने का फैसला, इसके पोस्ट प्रोडक्शन में बरती गई लापरवाही की वजह दिखता है। विक्की कौशल की सैम बहादुर की रिलीज पिप्पा की परेशानी बन गई… क्योंकि सैम बहादुर वाला रिफरेंस, पिप्पा के साथ क्रॉस कनेक्शन की वजह बन गया है।
दूसरे देश को दिलाया हक
पिप्पा में बहुत कुछ खास है, जैसे ये एक वॉर फिल्म है। इसका टाइटल किसी वॉर रिफरेंस या किसी वॉर हीरो के नाम पर नहीं, बल्कि एक वॉर टैंक के नाम पर है। ये फिल्म बताती है कि पूरे इतिहास में ये पहली लड़ाई थी, जो अपने हक-अपनी ज़मीन और अपने फायदे के लिए नहीं, बल्कि दूसरे देश को उसका हक दिलाने के लिए भारत ने लड़ी।
बीच में आता है थ्रिल (Pippa Movie Review)
बांग्लादेश के आज़ादी की इस लड़ाई में पाकिस्तान ने किस तरह वहां के लोगों पर ज़ुल्म किए, पिप्पा उसकी तस्वीर दिखाने की कोशिश करती है। और हां, इस फिल्म के लिए असल और आख़िरी PT-76 टैंक को ठीक कराकर शूटिंग की गई, जो शूटिंग के दौरान ही पानी में डूब गया। ये सारी पिप्पा की ख़ूबियां है। मगर, रुकिए – कोशिश और नतीजे में फर्क होता है। क्या पिप्पा यानि PT-76 टैंक्स की खूबियां डायरेक्टर राजा कृष्णा मेनन दिखा नहीं पाएं, हां पिप्पा को पानी पर तैरते देखकर थोड़ा थ्रिल आता है, लेकिन इसके बाद वो चैप्टर ख़त्म।
वॉर सीन्स, फिल्म में बहुत ज़्यादा फ्लैट लगते हैं। VFX का काम लगता है, बस एन केन प्रकारेण निपटा दिया गया है। बांग्लादेश के विस्थापितों का दर्द भी सिर्फ़ तस्वीरों जैसा है, जिससे आप बस अंदाज़ा लगाने का काम कर सकते हैं, महसूस नहीं कर सकतें।
ईशान खट्टर की शख़्सियत में फौजियों वाली बात नहीं
ए.आर. रहमान का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को उपर उठाने की कोशिश करता है लेकिन ईशान खट्टर की शख़्सियत में फौजियों वाली बात नज़र ही नहीं आती, हांलाकि उन्होने कोशिश बहुत की है। लेकिन कास्टिंग के मामले में सिर्फ़ ईशान ही नहीं, बल्कि उनके बड़े भाई और मेजर राम बने प्रियांशु पैन्युली के साथ भी यही दिक्कत है। दोनो के एक्सप्रेशन्स शानदार हैं, लेकिन इन किरदारों के लिए कद-काठी और रौब इनमें मिसिंग है। मृणाल ठाकुर के किरदार को ज़्यादा निखरने का मौका नहीं मिला है।
पिप्पा एक कमाल कॉन्सेप्ट है, जिसे लिखा भी अच्छे से गया है… लेकिन इसका फाइनल प्रोडक्ट उम्मीदों पर पिप्पा की तरह तैरता नहीं, बल्कि पानी फेर देता है।