वक्त लगता है ऐसा सोचने में कि विक्रांत रोणा जैसी दुनिया बनाई कैसे जाए ? उसके लिए बड़ी टीम चाहिए, बड़ा प्रोड्यूसर चाहिए, बड़ा स्टार चाहिए, बड़ी हीरोइन चाहिए और फिर उसे बड़ा प्रमोशन चाहिए। ये सब विक्रांत रोणा को मिला है, फिल्म रिलीज़ के ऐन पहले बड़े-बड़े डायरेक्टर, बड़े-बड़े एक्टर्स ने किच्चा सुदीप के विज़न की तारीफ़ करते हुए कहा कि विक्रांत रोणा के विज़ुअल्स यानि तस्वीरें और वीडियो अच्छे दिख रहे हैं। उन्होने सच भी कहा कि वीडियो तो वाकई अच्छा दिख रहा है, लेकिन किसी ने नहीं कहा कि कहानी अच्छी और फिल्म अच्छी। क्योंकि वो लोग आपको पूरा सच बताना नहीं चाहते थे। आधा सच, झूठ से भी ज़्यादा ख़तरनाक होता है।
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विक्रांत रोणा के साथ कन्नड़ा फिल्मों के बादशाह किच्चा सुदीप ने एक पैन इंडिया स्टार बनने का सपना पाला। इस फिल्म को जब उन्होने 3D में बनाने का फैसला किया, तो आधी से ज़्यादा फिल्म शूट हो चुकी थी। बेचारे डायरेक्टर और प्रोड्यूसर का पूरा वक्त तो ये सोचने और करने में ही निकल गया कि 2D को 3D बनाने में कितनी मुश्किल होगी और खर्चा कितना आएगा। फिर ये पैन इंडिया स्टार और पैन इंडिया फिल्म कहलाने का जो रोग है ना, वो ख़ास तौर पर साउथ स्टार्स को बहुत जोर से लगा है। सबको केजीएफ़ का यश, बाहूबली का प्रभास और RRR का राम चरण, जूनियर एनटीआर बनना है। इसी के चलते विक्रांत रोणा के कन्नड़ के साथ-साथ 4 और वर्ज़न आधी-अधूरी तैयारी के साथ बने हैं, जो तमिल, तेलुगू, मलयालम और हिंदी है। वैसे बताया जा रहा है कि इसका एक अंग्रेजी डब्ड वर्ज़न भी तैयार किया गया है।
इसको एक लाइन में समझिए कि रायता फैला तो दिया है, समेटा कैसा जाए ? फिल्म को सिर्फ़ एक लैग्वेज़ यानि कन्नड़ में शूट किया गया है, बाकी सारे वर्ज़न की डबिंग करके काम चला लिया गया है। विक्रांत रोणा के हिंदी वर्ज़न के गानों तक पर ढंग से काम नहीं किया गया, मतलब थियेटर में जब भी ये गाने बजेंगे, तो आप दोराहे पर खड़े होंगे कि बेहतरीन इफेक्ट्स वाले विज़ुअल्स देखें या गानों के टॉर्चर से बचने के लिए लू ब्रेक के लिए चले जाएं।
विक्रांत रोणा की कहानी देखकर समझना और फिर उसे समझा पाना एक चुनौती है, जो इसके डायरेक्टर अनूप भंडारी ने भी बहुत कोशिश की, इसे खुद समझने और समझा पाने की, लेकिन वो नाकाम रहें।
बच्चों के कहानियों की किताब से शुरु हुई ये कहानी, कोमारोट्टू गांव की है। अब ये गांव दुनिया के कौन से हिस्से में बना है, जहां जंगल के बीच-बीचो, जब एक मां-बेटी कार से जा रहे थे, वहां बेटी को एक ब्रह्मराक्षस मार देता है। इस फिक्शनल कोमारोट्टू गांव में बड़े-बड़े घर हैं, महल जैसे मंदिर हैं, बड़े-बड़े झरने हैं और बड़ा जंगल हैं, बस बिजली नहीं है। हां, इमोशनल गाने में दिवाली पर लगने वाली छोटे बल्ब वाली बिजली की लड़ियां दिख जाती हैं। लड़की का मर्डर होता है, तो गांव के एक जमींदार जनार्दन का भाई अपनी बेटी पन्ना की शादी कराने वापस लौटता है। पता चलता है कि उनके पुश्तैनी घर में भूत है। फिर एक मर्डर हो जाता है, वो भी गांव में पोस्टेड पुलिस इंस्पेक्टर का है। इसके 24 घंटे के अंदर ही अंदर एक दूसरा पुलिस इंस्पेक्टर गांव पहुंचता है, नाम – विक्रांत रोणा। हैवी ड्यूटी एक्शन और फुल ऑन स्वैग के साथ विक्रांत रोना की एंट्री वैसे तो फिल्म में एक नहीं, बल्कि तीन-चार बार होती है। बस समझ ये नहीं आता कि वो अचानक एक जगह से दूसरी जगह गायब होकर कैसे पहुंच जाते हैं। खैर छोड़िए, कनन्ड़ा फिल्मों के बादशाह हैं, इतना तो कर ही सकते हैं।
मगर पेंच ये हैं कि विक्रांत रोणा के साथ उनकी एक 8-9 साल की बच्ची गीतांजली रोणा भी होती है, जो अपने इंस्पेक्टर डैडी के साथ पूरी इन्वेस्टीगेशन और ख़तरनाक से ख़तरनाक मिशन पर अपनी डॉल को सीने से चिपकाए साथ में घूमती है। आप सिर खुजाते रहिएगा, कि ये क्या चक्कर है और जब चक्कर पता चलेगा, तो आप चौंकिएगा नहीं बल्कि अपने सिर के दर्द को सही करने के लिए दवा क डिमांड कीजिएगा। जिस इमोशन पर पूरी फिल्म बेस्ड है, वो इमोशन, स्टोरी और स्क्रीनप्ले में लूज़ मोशन बनकर रह गया है।
इस स्टोरी में और एक एंट्री होती है, जर्नादन के बेटे संजू की, जो 28 साल पहले गांव से भाग गया था, अब वो आया है पन्ना से प्यार करने लगा है।
मैं एक पहेली बुझाऊं…. एक स्कूल है, जिसमें जनार्दन, उसका भाई विश्वनाथ, दूसरा भाई एकनाथ और विक्रांत रोणा के साथ दो और लोग पढ़ते हैं। 28 साल बाद, जो वापस में मिलते हैं, एक 65 साल का दादा होता है, एक 55 का पापा होता है, एक 45 का इंस्पेक्टर हीरो होता है, एक 30 साल का रोमांटिक हीरो होता है।
ये कैसे मुमकिन है ? जानते हैं कैसे, जब कहानी को इतना फैला दिया जाए कि समेटना मुश्किल हो जाए, तब ये मुमकिन है।
खूब सेट्स, बेहतरीन इफेक्ट्स और किच्चा सुदीप के स्वैग के अलावा, फिल्म में क्लाइमेक्स का फाइट सेक्वेंस भी ऐसा है, जिसे देखकर आप सोचेंगे कि ये सारे विलेन सिर्फ़ अजीब आवाज़ों में चीखते हैं, बोलते कुछ नहीं। विक्रांत रोणा में ज़बरदस्ती डराने के लिए दादी मां वाला जो इफेक्ट 3D के साथ डाला गया है, वो 35 साल पहले रामसे ब्रदर्स की फिल्म से सीधा लिफ्ट किया गया है।
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वैसे फिल्म में कहानी को छोड़कर लुक्स की इंस्पीरेशन हॉलीवुड की कई फिल्मों और एस.एस.राजामौली की RRR से ली गई है। और इसमें कोई दो राय नहीं, कि वो इसके स्पेशल इफेक्ट्स आपको चौंका देंगे।
वैसे आप ये भी सोच रहे होंगे कि हमने सारी बात कर ली, लेकिन जैकलीन का नाम तक नहीं लिया, तो वो फिल्म में भी इतनी ही हैं कि उनका जिक्र ना करना ही बेहतर है। बाकी किच्चा सुदीप ने स्वैग बहुत दिखाया है, बस वो काम नहीं आया है।
वैधानिक चेतावनी है कि फिल्म देखकर आप ना सिर्फ़ अपने समय का नुकसान करेंगे, बल्कि निकलने के दो-तीन घंटे तक शॉक में रहेंगे कि फिल्म में क्या हो रहा था, और क्यूं हो रहा था ?
सिर्फ़ फिल्म के सिनेमैटोग्राफी और स्पेशल इफेक्ट्स के लिए विक्रांत रोणा को 1.5 स्टार।
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