चार साल बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर रहे हैं रणबीर कपूर… आखिरी फिल्म संजू सुपरहिट रही थी। तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है। रणबीर कपूर शादी करके आलिया को कपूर घराने की बहू बना चुके हैं। ब्रह्मास्त्र के ट्रेलर पर वाहवाही बटोर चुके हैं, वैसे ट्रेलर तो शमशेरा का भी बहुत धांसू था। क्या गज़ब लोकेशन, क्या जानदार लुक्स, जब से ट्रेलर आया है, तब से छाया पड़ा है। लेकिन ट्रेलर देखकर फिल्म देखने जाइएगा, तो नुकसान ही उठाइएगा। ये बिल्कुल ऐसा है कि ऐड देखकर फेयरनेस क्रीम खरीदना और फिर ठगे जाना।
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शमशेरा के लिए यशराज ने दिल खोलकर पैसा लुटाया, 150 करोड़ खर्च कर दिए। लद्दाख के यूनियन टेरिटरी में शामिल होने के बाद, वहां शूट होने वाली पहली फिल्म बन गई। रणबीर कपूर ने शमशेरा के लिए वज़न बढ़ाया और डबल रोल यानि बेटे बल्ली के किरदार के लिए वज़न घटाया। यहां तक की रणबीर ने कलारीपट्टू की ट्रेनिंग ली, जिसे हॉलीवुड के बड़े एक्शन डायरेक्टर से फिल्माया गया। संजय दत्त के खलनायक इमेज को भुनाने की कोशिश की, उन्हें दरोगा शुद्ध सिंह बनाकर फिल्म में अग्निपथ और केजीएफ वाली फील लाने का पूरा इंतज़ाम किया। सन 1800 यानि अब से 222 साल पहले की दुनिया दिखाने के लिए, एक पूरे काजा शहर और उसके किले को बना दिया गया। और वाणी कपूर को ग्लैमरस रंग को दिखाने के लिए डिज़ाइनर्स की पूरी फौज खड़ी कर दी, ज़रा सोचिए कि 222 साल पहले ऐसे कपड़े डिज़ाइन करने वाला डिज़ाइनकर को तलाश कर पाना किसके बूते की बात थी। खैर इतने मसाले इकठ्ठा करने के चक्कर में वो ये भूल गए कि सब्ज़ी भी तो जुगाड़नी है… यहां सब्ज़ी का मतलब कहानी से है।
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तो कहानी सुनाने वाले नीलेश मिस्रा के साथ खिला बिस्ट को कहानी लिखने पर लगाया गया। स्क्रीनप्ले लिखने के लिए एकता और डायरेक्टर करण खुद बैठे, डायलॉग्स लिखने का काम पीयूष मिश्रा को दिया गया। ये सब करने के बाद कहानी निकलकर आई 80 के दशक की, जिसमें एक हीरो, जो एक दलित ग्रुप का लीडर है…. वो करम से डकैत और धरम से आज़ाद है। काजा के जंगलों में रहने वाला ये कबीला, अमीरों को लूटता है और गरीबों के साथ रहता है। लेकिन काजा का जनरल, दरोगा शुद्ध, अपने अशुद्ध विचारों के साथ इस कबीले के सरदार शमशेरा को धोखा देता है, उसके और उसके पूरे कबीले को काजा के किले में बंदी बनाता है और गुलाम जैसे बर्ताव करता है। अपने कबीले को बचाने के शमशेरा, ब्रिटिश जनरल से मिलता है, तो उसके सामने 10 हज़ार तोला सोना देने की शर्त रखी जाती है। शमशेरा किले से भागकर ये शर्त पूरी करना चाहता है, तो शुद्ध सिंह उसे गद्दार और भगोड़ा करार देकर, उसे उसकी गर्भवती पत्नी और कबीले वालों से ही मरवा देता है। अब ट्विस्ट है शमशेरा का बेटा, बल्ली, जो किले के अंदर गुलामों की ज़िंदगी जीता है और अंग्रेज अफसर बनने के लिए कुछ भी कर सकता है। बिल्कुल 80s की हिंदी फिल्मों की तरह उसे रियलाइज़ होना है कि वो शमशेरा का बेटा है और उसे शुद्ध सिंह से बदला लेकर, कबीले वालों को आज़ाद कराना है। इसी बीच में बल्ली को सोना से प्यार होना है, एक दो रोमांटिक ट्रैक भी होने हैं। थोड़ा आइटम नंबर वाला फील भी आना है। मतलब आप सिर पर हाथ रखकर सोचेंगे कि भाई कुछ तो नया कर लो।
सेट डिज़ाइन, एक्शन सीक्वेंस और वीएफएक्स पर पैसा और मेहनत झोंकने के साथ थोड़ा कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग पर काम कर लिया जाता, तो फिल्म कुछ की कुछ होती। डायरेक्टर करण मल्होत्रा ने हाथ आया मौका गंवा दिया।
अब आइए परफॉरमेंस पर, तो रणबीर कपूर शमशेरा बनकर जितने शानदार लगे हैं, बल्ली बनकर उतने ही ढीले। मुश्किल ये है कि 85 परसेंट फिल्म में वो बल्ली ही बने हैं। वाणी कपूर को पता था, कि नाच गर्ल बनकर उन्हे वही काम करना है, जो ठग ऑफ़ हिंदुस्तान में कैटरीना कैफ़ ने किया था। मतलब खूबसूरत वो उतनी ही लगी हैं, लेकिन 222 साल पहले के कंपैरिज़न में उनके कपड़े पूरे फ्यूचिरिस्टिक हैं, और बाकी उनसे बहुत कुछ करने को कहा नहीं गया। शुद्ध सिंह के किरदार में संजय दत्त अकेले इस फिल्म की जान हैं, हांलाकि डायरेक्टर ने उनसे कई जगहों पर ओवर एक्टिंग करवा ली है, लेकिन अपने किरदार के लिए संजय दत्त ने मेहनत बहुत की है। सौरभ शुक्ला को इस फिल्म में पूरा वेस्ट कर दिया गया है।
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तो फिल्म का नतीजा ये रहा कि ऊंची दुकान का फीका पकवान है शमशेरा, जिसे देख सकते हैं अगर रणबीर कपूर के कुछ ज़्यादा ही बड़े फैन हैं। वरना दूर से ही हवा आने दीजिए।
शमशेरा को 2.5 स्टार।
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