Chhatriwali Review, Ashwani Kumar: फिल्में ज़िम्मेदारी निभाने लगी हैं। वो चीज़ें समझाने लगी है, जो हमें सीखने की सख़्त ज़रूरत है। ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है। ‘छतरीवाली’ (Chhatriwali) सेक्स एजुकेशन के बारे में वो क्लास लगाती है, जिसे स्कूलों में कंप्लसरी पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन होता वो ऑप्शनल है। जिसके बारे में घरों में बताया जाना चाहिए, लेकिन वहां मुंह पर उंगली रखकर चुप कराया जाता रहा है।
अच्छी बात ये है कि सेक्स एजुकेशन को लेकर इस वक्त इंडस्ट्री के बड़े-बड़े एक्टर्स फिल्में कर रहे हैं। आयुष्मान खुराना तो सिखा ही रहे हैं, अब नुसरत भरूचा ने भी जनहित में जारी नाम से एक फिल्म की और अब रकुलप्रीत सिंह जैसी बड़ी एक्ट्रेस भी इस लीग में शामिल हो गई हैं। ‘छतरीवाली’ (Chhatriwali) कॉन्डोम यूज़ के बारे में बातें करती हैं, एबॉर्शन यानि गर्भपात और गर्भ निरोधक गोलियों के बारे में बातें करती हैं। अपनी क्लास में ये भीड़ भी जुटा लेती है, लेकिन क्या ये क्लास दिलचस्प बन पाती है ? ये लाख टके का सवाल है।
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मराठी फिल्मों से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रख रहे तेजस विजय देवोस्कर ने कहानी तो अच्छी चुनी है, जिसमें करनाल में रहने वाली एक लड़की सान्या, जो बीएसी केमिस्ट्री है, बच्चों को ट्यूशन पढाती है और काबिल होने के बाद भी नौकरी से महरूम है, उसे एक कॉन्डोम फैक्ट्री में क्वॉलिटी हेड की नौकरी मिलती है। सान्या पहले तो इस नौकरी को लेने से भी घबराती है, फिर अच्छी इंकम की आढ़ में चोरी-छिपे अपनी नौकरी चलाती है। अपने प्यार और शादी के बीच के सफ़र में पति तक से इस कॉन्डोम फैक्ट्री वाली नौकरी की जगह, खुद को छतरी फैक्ट्री का क्वॉलिटी हेड बताती है। मगर सच्चाई का क्या है, वो एक दिन सामने आ ही जाती है।
कहानी का दूसरा ट्रैक ये है कि सान्या की जेठानी, जो कई एबॉर्शन और मिसकैरिएज से जूझ चुकी हैं, वो अपने पति के सामने ज़ुबान नहीं खोलतीं कि वो कॉन्डोम यूज़ करें। सान्या भाभी का हौसला बढ़ाना चाहती है कि वो अपने पति से कॉन्डोम यूज़ करने की बात कहें, लेकिन भाभी सान्या के सामने चुनौती रख देती है, कि जिस दिन करनाल के हर मर्द कॉन्डोम यूज़ करने लगेगा, तब वो अपने पति से बात करेंगी।
सान्या, आस-पास की औरतों को समझाती है कि वो अपने पतियों को कहें कि करना है उनसे प्यार, तो कॉन्डोम को करो स्वीकार। मगर सान्या के कॉन्डोम फैक्ट्री में काम करने के खुलासे के बाद, उसे अपने ही घर में अस्वीकार कर दिया जाता है। अब सान्या को समाज के साथ अपनों को भी सेक्स एजुकेशन और कॉन्डोम यूज़ के बारे में समझाना है। संचीत और प्रियदर्शी ने इस कहानी को इंट्रेस्टिंग बनाने की पूरी कोशिश की, कुछ केमिस्ट्री के बहुत दिलचस्प फॉर्मूले भी सिखाएं। कुछ वन लाइनर्स भी अच्छे रखे, मगर ऐसे सब्जेक्ट की मुश्किल ये होती है कि कितना भी बचिए, क्लास बोरिंग होने लगती है। यही छतरीवाली के साथ हुआ है।
रुकुलप्रीत ने अपनी पूरी जान लगा दी है छतरीवाली के लिए, परफॉरमेंस भी उन्होने शानदार दी है। कहिए कि फिल्म की जान वहीं है। बाकी सुमित व्यास तो है हीं कमाल के एक्टर, रकुल का साथ उन्होने भी अच्छे से दिया है। कॉन्डोम फैक्ट्री के मालिक बने सतीश कौशिक, छतरीवाली की तीसरी अच्छी वजह हैं। मगर फिर राजेश तैलंग, राकेश बेदी, प्राची शाह, डॉली अहलुवालिया का किरदार बिल्कुल ट्रेडिशनल स्केच जैसा है, जो एकदम बेअसर है।
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छतरीवाली रिलीज़ हो गई है, ज़ी5 पर। फिल्म ज़रूरी है, इसलिए देखनी चाहिए, नीयत सही है इसलिए देखनी चाहिए, बस सिखाने के चक्कर में क्लास लगा लेती है और जब क्लास लगाती है, तो बोरिंग होने लगती है। लेकिन क्लास बोरिंग हो, इसलिए तो नहीं छोड़ी जाती और फिर ये ओटीटी पर आई है, तो देख लेनी ही चाहिए।
छतरीवाली को 2.5 स्टार।
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