Saturday, 20 April, 2024

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Mission Majnu Review: ‘शेरशाह’ सिद्धार्थ की ये फिल्म आपको मजनू ना बना दे तो कहना!

Mission Majnu Review, Ashwani Kumar: रॉ एजेंट वो नहीं होते, जो ऑटोमैटिक गन्स चलाते हों, बल्कि वो होते हैं, जो सालों तक अपनी पहचान को छिपाकर, ज़रूरी इंटेल हासिल करते हैं और अपनी जानकारियों से बड़े-बड़े मिशन अंजाम देते हैं। मिशन मजनू, इडिया की सबसे प्रीमियर ख़ूफ़िया एजेंसी की ऐसी सच्ची तस्वीर दिखाती है, जो […]

Mission Majnu Review: 'मिशन मजनू' में दिखी खुफिया एजेंसी की सच्ची तस्वीर, सिद्धार्थ-रश्मिका की जोड़ी ने भी जीते दिल
Mission Majnu Review: 'मिशन मजनू' में दिखी खुफिया एजेंसी की सच्ची तस्वीर, सिद्धार्थ-रश्मिका की जोड़ी ने भी जीते दिल

Mission Majnu Review, Ashwani Kumar: रॉ एजेंट वो नहीं होते, जो ऑटोमैटिक गन्स चलाते हों, बल्कि वो होते हैं, जो सालों तक अपनी पहचान को छिपाकर, ज़रूरी इंटेल हासिल करते हैं और अपनी जानकारियों से बड़े-बड़े मिशन अंजाम देते हैं। मिशन मजनू, इडिया की सबसे प्रीमियर ख़ूफ़िया एजेंसी की ऐसी सच्ची तस्वीर दिखाती है, जो बॉलीवुड की बढ़ा-चढ़ाकर सुपरहीरो वाले रॉ एजेंट्स की कहानियों के बीच अपनी एक नई लकीर खींचती है।

हैरानी की बात ये है कि सिद्धार्थ मल्होत्रा की इस फिल्म में दम था, कि वो रिपब्लिक वीक या इंडीपेंडेस वीक पर थियेटर पर रिलीज़ हो, और थियेटर्स में भीड़ खींच सके। मगर, फिल्म प्रोड्यूसर्स ने इसके लिए ओटीटी रिलीज़ की राह चुनी… भले ही ये सेफ़ तरीका हो, लेकिन जिसमें फायदा भले ही कम हो, लेकिन नुकसान की गुंजाइश कम रहती है, बावजूद इसके सच तो ये है अच्छी और दमदार फिल्में भी गेहूं के साथ घुन की पिसाई जैसे हालात से गुज़र रही है।

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मिशन मजनू (Mission Majnu) स्ट्रीम हो रही है और यकीन मानिए कि ये फिल्म बेहद कमाल की है। कहानी एक अमनदीप अजीत पाल सिंह की है, जो रॉ का एजेंट और बरसों से पाकिस्तान में तारिक अली की सीक्रेट आइडेंटिटी के साथ रह रहा है। वो अपनी पहचान छिपाना जानता है, दर्ज़ी बनकर बड़े-बड़े मिशन को रफ़ू करना जानता है। वो भारत के लिए अपनी देशभक्ति साबित करना चाहता है, क्योंकि उसके पिता अजीतपाल सिंह ने देश के सीक्रेट, दुश्मनों के साथ बेचकर अपने बेटे के सिर पर गद्दार का बेटे की मुहर लगा दी थी। अमनदीप ये दाग़ हटाना चाहता है। मगर तारिक की पहचान ओढ़े, अमन को नसरीन से मोहब्बत हो जाती है। नसरीन, अपनी आंखों से दुनिया को देख नहीं सकती, लेकिन हर अहसास को उसे दिल की आंख़ों से पहचानना आता है। 1971 में इंडिया के हाथ करारी शिकस्त खाने के बाद, और भारत के पहले परमाणु परीक्षण से बौखलाए, पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म यानि प्राइम मिनिस्टर भुट्टो, पाकिस्तान में परमाणु बम बनाने का सीक्रेट मिशन शुरु करते हैं। भुट्टो इसके लिए साइंटिस्ट मुनीर अहमद खान को इसका चीफ़ बनाते हैं। पाकिस्तान के इस न्यूक्लियर मिशन के बारे में, इसकी लोकेशन के बारे में जानकरी फिज़ीकल एवीडेंस हासिल करने का ज़िम्मेदारी अमनदीप की है, जिस पर रॉ चीफ़, रान एक कॉव को छोड़कर कोई भरोसा नहीं करता। इस बीच पाकिस्तानी आर्मी, मुल्क में भुट्टो का तख़्ता पलट कर देती है और जनरल ज़िया-उल-हक़ पाकिस्तान के प्रेसीडेंट बन जाते हैं। भारत में भी तब तक इंदिरा गांधी की सरकार गिर चुकी होती है, और मोरार जी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बन जाते हैं। इन सबके के बीच अमन को ये मिशन पूरा करना है, नसरीन के साथ अपने रिश्ते को बचाना है और नसरीन की कोख में पल रहे अपने बेटे पर, पाकिस्तान में रहकर गद्दार का दाग़ भी नही लगने देना है।

2 घंटे, 9 मिनट की इस कहानी में प्यार है, एक पेचीदा कहानी का बैकड्राप है, रिश्तों की उलझन है, रॉ का ऑपरेशन है और देशभक्ति के जज़्बात है। असीम अरोड़ा के साथ मिलकर, सुमीत और परवेज़ ने इस कहानी को इतने करीने से बुना है, कि लंबी कहानी भी छोटी हो जाती है, लेकिन पीछे कुछ भी नहीं छोड़ती। आपको राजनीति की बारीकियों में नहीं उलझाती, बल्कि इंटेलीजेंस की बारीकियों में बांधती है। हां, अमनदीप की फ्लैशबैक स्टोरी और रिपोर्टिंग ऑफिसर से गद्दार-गद्दार वाला ट्रैक आपको थोड़ा अजीब ज़रूर लगता है, लेकिन ये इतना छोटा है कि बहुत जल्द ख़त्म हो जाता है।

डायरेक्टर शांतनू बागची ने अपने मजनू के लिए जो 1970 का जो पाकिस्तान रचा है, वो आपको सच्चा लगता है, कहानी पर शांतनू ने अपनी पकड़ बनाए रखी है। ना वो ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ भागती है और ना कहीं रुकती है। असली तस्वीरों, वीडियो और न्यूज़ क्लीपिंग्स के साथ रिफरेंसेज़ भी बहुत करीने से सेट किए गए हैं, कि जिन्हे इंडिया के इस ख़ूफ़िया ऑपरेशन के बारे में पता ना भी हो, वो समझ सकें कि रॉ एजेंट्स की ज़िंदगी वाकई कितनी मुश्किल होती है। गानों पर आएं, तो मनोज मुंतशिर का लिखा और सोनू निग़म का गाया गाना – मांटी को मां कहते हैं, मिशन मजनू का सबसे बड़ा हाईलाइट है। ज़ुबिन नौटियाल का रब्बा जानदां भी खूबसूरत गाना है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही उम्दा है।

अब परफॉरमेंस पर आइए, तो सिद्धार्थ मल्होत्रा ने मिशन मजनू में, वाकई शेहशाह वाली शानदार परफॉरमेंस दी है। इस फिल्म में सिद्धार्थ का किरदार, वर्दी में तो नहीं, लेकिन देश के लिए कुछ भी कर गुज़रने वाली फीलिंग के साथ है। फिल्म में ऐसे तीन मौके आते हैं, जब सिर्फ़ अपने एक्सप्रेशन्स ने सिद्धार्थ ने दिल जीत लिया है। वैसे रश्मिका मंदाना ने भी नसरीन बनकर बेहद शानदार परफॉरमेंस दी है। सिड के साथ रश्मिका की केमिस्ट्री भी शानदार है। शारिब हाशमी के क्या कहने और कुमुद मिश्रा, तो इन दिनों गज़ब ही किए जा रहे हैं और उन्हे मौके भी खूब मिल रहे हैं। आर.एन.काव के किरदार में परमीत सेठी भी जंचे हैं।

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मिशन मजनू नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है। फिल्म शानदार हैं, असली कहानी और ज़रा सा फिल्मी अंदाज़ लिए हुए है। रिपब्लिक वीक के लिए ये परफेक्ट बिंज वॉच है।

मिशन मजनू को 3.5 स्टार।

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First published on: Jan 20, 2023 03:56 PM

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