Fooldei Festival: आज यानी 15 मार्च 2023 से चैत्र का महीना शुरू हो रहा है। चैत्र माह के पहले दिन को उत्तराखंड में एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मनाए जाने वाले पर्व का नाम है ‘फूलदेई’। ये पर्व पुरे उत्तराखंड में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन हर घर की दहलीज पर तरह-तरह की फूल देखने को मिलते हैं।
फूलदेई पर्व पर गाया जाता है ये गाना
वैसे तो यह पर्व सभी के लिए खास होता है लेकिन खासतौर पर बच्चों का उत्साह इस दिन देखते ही बनता है। दरअसल छोटे बच्चों में फूलदेई को लेकर कुछ खास क्रेज देखने को मिलता है। इस दिन छोटे बच्चे फूलदेई, छम्मा देई गीत गाते हुए सुबह-सवेरे ही अपने घरों से निकल पड़ते हैं। अपनी डलिया में रंग बिरंगे फूल लेकर लोगों की देहरियों पर रखते हैं और सुख-समृद्धि की मंगलकामनाओं के साथ ‘फूलदेई, छम्मा देई,
दैणी द्वार, भर भकार,ये देली स बारंबार नमस्कार… गीत गाते हैं। जिसके बाद घर के लोग बच्चों की डलिया में गुड़, चावल और पैसे डालते हैं।कुछ लोग इसे बालपर्व भी कहते हैं।
फूलदेई पर्व मनाने के पीछे की कहानी
चैत्र माह में मनाया जाने वाला पर्व फूलदेई बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाया जाने वाला पर्व है। इस पर्व को मनाने के पीच एक कथा प्रचलित है। माना जाता है कि ‘फ्योंली नामक एक वनकन्या थी, जो जंगल मे रहती थी। जंगल के सभी लोग उसके दोस्त थे। एक दिन एक देश का राजकुमार उस जंगल मे आया। उसे फ्योंली से प्रेम हो गया और उससे शादी करके अपने देश ले गया।
कुछ दिन में ही फ्योंली को अपने मायके की याद आने लगी। उधर जंगल में फ्योंली के बिना पेड़ पौधें मुरझाने लगे, जंगली जानवर उदास रहने लगे। लेकिन फ्योंली की सास उसे मायके जाने नहीं देती थी, और बहुत परेशान भी करती थी।
लेकिन फ्योंली बार-बार अपनी सास से पति से उसे मायके भेजने के लिए कहती थी। लेकिन सब बेकार ही था। फ्योंली मायके की याद में तड़पते हुए एक दिन मर जाती है। उसके ससुराल वाले राजकुमारी को उसके मायके के पास ही दफना देते हैं। जिस जगह पर राजकुमारी को दफनाया गया था वहां पर कुछ दिनों के बाद ही पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है जिसे फ्योंली नाम दिया जाता है। और तभी से उस पेड़ के फूलों को तोड़कर वहां के बच्चे और सभी लोग फ्योंली की याद में ये पर्व मनाने लगे।