UT69 Movie Review / Ashwani Kumar : UT69, ये क्या है?, कोई फिल्म है?, कौन एक्टर है?, कौन डायरेक्टर है ?….ऐसे सवालों से जूझती रही है – राज कुंद्रा की ये फिल्म। जब पता चलता है कि ये फिल्म राज कुंद्रा के जेल जर्नी पर है, यानि पॉर्नोग्राफी केस में जब वो जेल गए, हांलाकि राज का केस अभी चल ही रहा है और वो बेल पर रिहा है। तो ऐसे में फिल्म के जरिए क्या वो सहानुभूति जुटाना चाहते हैं? या, ये बताना चाहते है कि उन्हे फंसाया गया है? ऐसे सवाल भी UT69 के लिए उठते रहे हैं, तो इन सवालों का जवाब आपको मिलेगा, साथ ही समझ आएगा कि 117 मिनट की इस फिल्म का मकसद क्या है?
ना ही उन्हे बेल मिलती है और ना ही जेल से झुटकारा (UT69 Movie Review)
UT68 की कहानी ही शुरु होती है, जब राज कुंद्रा को ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजा जाता है। राज का वकील उन्हे प्रॉमिस करता है कि 4-5 दिनों की बात है, वो बाहर निकल जाएंगे। कोरोना दौर के मुश्किल वक्त में राज को पहले जेल के क्वारेंन्टाइन सेक्शन में अकेले रखा जाता है, जहां सेलिब्रिटी लाइफ जीने वाले राज को लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता। मगर पांच दिनों के बाद, ना ही उन्हे बेल मिलती है और ना ही जेल से झुटकारा… फिर उन्हे आर्थर रोड जेल के अंडर ट्रायल सेक्शन में भेज दिया जाता है। मगर, वहां भी राज को सेलिब्रिटी सेक्शन बैरक नंबर-10 में नहीं, बल्कि ऑर्डिनरी बैरक 6 में रखा जाता है।
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इसलिए मिली हरी झंडी
इस बैरक जिसमें 40 लोगों को रहने की जगह है 245 लोग रह रहे हैं। 63 दिन तक राज कुंद्रा ने इस बैरक में अपनी बेल का इंतजार करते हुए कैसे बिताएं, यही कहानी है – UT69 की। सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस फिल्म में राज कुंद्रा ने एक सेकेंड के लिए अपनी बेगुनाही की बात नहीं की, ना ही ऐसा माहौल बना कि जो उनके हक में जाए। तभी एक सेंसर बोर्ड ने भी इस कहानी को हरी झंडी दिखा दी। फिल्म के इंग्लिश डिस्केलमर, जिसमें बताया जाता है कि फिल्म किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती, किसी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करती, किसी कानून व्यवस्था का मजाक नहीं बनाती और किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन नहीं करती। फिल्म का नरेशन भी राज कुंद्रा की आवाज से ही शुरु होता है।
जेल के अंदर के हालत (UT69 Movie Review)
जिस थियेटर में बैठकर ये फिल्म मैंने देखी, वहां लोगों को ये बात खटक रही थी कि जेल के माहौल से डार्कनेस गायब है, जैसा की आप दूसरी फिल्मों या वेब सीरीज में देखते हैं। जाहिर है फिल्म ये नहीं समझाती कि ऑर्थर रोड जेल के जिस सेक्शन के बारे में ये फिल्म दिखाती है, वो अंडर ट्रायल्स का है… यानि वहां अपराधी नहीं, आरोपी रहते हैं। उन्हे सजा नहीं मिली है, उनका केस चल रहा है। हालात वहां के भी अच्छे नहीं हैं। बाल्टी में चावल और मग में दाल लेने वाले हालात, सोते वक्त, दूसरे के पैरों को अपने चेहरे के उपर पाना, टायलेट का गंदा होना, और सबसे पहले जेल जाते ही पूरे कपड़े उतार कर तलाशी देने जैसे सेक्वेंस फिल्म में हैं। मगर, ये फिल्म उससे ज़्यादा जेल के अंदर, उम्मीद को जिंदा रखने की कहानी कहती है।
शिल्पा शेट्टी का गेस्ट अपीयरेंस
राज कुंद्रा के केस में, शिल्पा शेट्टी का गेस्ट अपीयरेंस फिल्म में है लेकिन सिर्फ़ फोन पर उनकी आवाज सुनने तक और हां, टीवी पर सुपर डांसर में देखने तक। ये टीवी और पंखा, जिसे संजय दत्त ने कैदियों के लिए जेल में लगवाया है, ये बात भी सुनकर आपको खुशी होगी और क्लाइमेक्स में राज कुंद्रा की मानवाधिकार आयोग को लिखी चिट्ठी और अंडर ट्रायल्स के लिए मदद की कोशिशें आपको अच्छा फील कराएगी। जेल के अंदर के किरदारों के साथ आपको मुश्किल से मुश्किल हालातों में आपको गुस्सा या नफरत नहीं होगी, बल्कि चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी। किसी के जेल की कहानी में ये बात अजीब भले ही लगे, लेकिन ये नजरिए की बात है।
फिल्म को बहकने नहीं दिया
राज अपने किरदार को लेकर ईमानदार हैं। डायरेक्टर ने फिल्म को बहकने नहीं दिया है। फिल्म की सपोर्ट कास्टिंग बहुत ही रियलिस्टिक है। हांलाकि बैक ग्राउंड स्कोर, डायलॉग्स और एडीटिंग के डिपार्टमेंट में फिल्म थोड़ी कमज़ोर भले ही हो, लेकिन UT69 की कहानी अच्छी है, नीयत साफ है, फिल्म आपको एंटरटेन भी करती है। हां थियेटर में लोग इस फिल्म को देखने बहुत कम जाने वाले हैं, इसीलिए इसे लिमिटेड रिलीज किया गया है। ओटीटी पर UT69 खूब पसंद की जाने वाली है, और इसके ओटीटी रिलीज में ज़्यादा देरी भी नहीं होने वाली।