Dunki Movie Review / Ashwani Kumar: दादी-नानी कहानी सुनाती है, तो हर कहानी में एक सीख होती है। वो सीख ज़िंदगी में बहुत काम आती है। राजकुमार हीरानी की फिल्में भी दादी-नानी की कहानियों जैसी होती है, जो एंटरटेन तो करती है, लेकिन साथ ही एक सीख दे जाती है, जो ज़िंदगी में बहुत काम आती है। डंकी, ऐसी ही सीख देती है।
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डंकी की कहानी (Dunki Movie Review)
डंकी की कहानी पंजाब के एक गांव लाल्तू से शरू होती है, जहां मन्नु अपने परिवार का घर बचाना चाहती है, बल्ली गांव के लोगों के उड़े बाल नहीं, बल्कि लंदन में अपने किस्मत सुधारना चाहता है और बुग्गू को लगता है कि इंग्लैंड जाकर उसकी किस्मत बदल जाएगी। इन सबके बीच सुखी है, जो लंदन पहुंचकर अपने प्यार को वापस लाना चाहता है। मगर इनके पास ना डिग्री है, ना पैसा है, ना इंग्लिश का सहारा है। इन सबके बीच एक दिन लाल्तू में एक फौजी – हार्डी पहुंचता है, जिसकी डोर मन्नू और उसके परिवार के साथ जुड़ी है। हार्डी मन्नू और उसके दोस्तों से वायदा करता है कि वो उन्हे किसी भी तरह से लंदन पहुंचाएगा। अब ये सफ़र आसान नहीं है, इसमें हौसला छूटता है, मुश्किलें इम्तिहान लेती हैं, हालात बिगड़ते हैं, कुछ सपनें…. बीच में ही साथ जोड़ जाती हैं।
ज़िंदगी अपनों के बीच है (Dunki Movie Review)
लेकिन क्या लंदन पहुंचकर मन्नु, बल्ली और हार्डी की ज़िंदगी बदलती है। डंकी की कहानी सिर्फ़ उतनी नहीं, जो ट्रेलर में दिखती है। उससे बहुत आगे की बात करती है राजकुमार हिरानी की डंकी। ये किसी दूसरे देश में गैरकानूनी तरीके से शरणार्थियों की भी कहानी भर नही है। डंकी बताती है कि दूसरे मुल्क में किराए के सपनों के लिए क्या क़ीमत चुकानी पड़ती है। डंकी सिखाती है कि बॉर्डर, सरहदें, लक्ष्मण रेखा… दौलतमंदों के लिए नहीं, बल्कि मज़बुरों के लिए हैं। डंकी बात करती है कि ज़िंदगी अपनों के बीच है।
हालात और मजबूरी का एक्शन
अभिजात जोशी और हिरानी की जोड़ी ने डंकी की बेहद मुश्किल कहानी को बिल्कुल वैसे ही समझा दिया है, जो इस जोड़ी का ट्रेडमार्क स्टाइल है। हंसते-हंसाते, थोड़ा रुलाकर, थोड़ा सच दिखाकर। हांलाकि इस फिल्म में थोड़ा एक्शन ज़रूर है, लेकिन वो जवान और पठान जैसा हाई-फाई और स्वैग वाला एक्शन नहीं, बल्कि हालात और मजबूरी का एक्शन है, जो आपका दिल कचोट लेगा।
हर गाना सिचुएशनल
2 घंटे, 41 मिनट की डंकी में हर गाना सिचुएशनल है। लुट-पुट गया आपको झुमाता है, तो ओ माही जिस मोड़ पर आता है, वो गहरा असर छोड़ जाता है। निकले थे कभी हम घर से और चल वतना जैसे ट्रैक डंकी मे जिन मोड़ पर आते हैं, उससे आप पर सिचुएशन्स से और जुड़ते चले जाते हैं। सेट डिज़ाइन और सिनेमैटोग्राफ़ी असरदार है… लोकेशन से बहुत ज़्यादा एक्सपेरीमेंट नहीं किया गया है, जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि डंकी के बजट को कंट्रोल में रखा गया है।
हर किरदार को निखरने और उभरने का मौका मिला
परफॉरमेंस पर आइएगा, तो नौजवान हार्डी से लेकर, बुढ़ापे के हरदयाल सिंह ढिल्लन के किरदार तक… शाहरुख़ के अलग-अलग अंदाज़ आपका दिल छू जाएंगे। इस साल की अपनी दो दमदार एक्शन फिल्मों से ठीक उलट, डंकी जैसी फिल्म चुनना भी हिम्मत का काम है। दिलचस्प बात ये है कि ये फिल्म पूरी तरह से शाहरुख़ की फिल्म नहीं, इसमें हर किरदार को निखरने और उभरने का मौका मिला है। मन्नु के किरदार में तापसी पन्नू कमाल की हैं। शाहरुख़ के साथ उनके रोमांस में भी हिरानी का स्पेशल टच है। विक्की कौशल इस फिल्म में स्पेशल कैमियो में हैं, लेकिन उनका किरदार सबसे ज़्यादा असरदार है और सुखी का उनका किरदार दिल तोड़ता भी है। बल्ली बने अनिल ग्रोवर और बग्गू बने विक्रम कोचर की कास्टिंग भी कमाल की है। बोमन ईरानी को तो स्क्रीन पर देखना जैसे एक तजुर्बा है।
डंकी को देखने थियेटर जाइएगा
पठान और जवान जैसे स्वैग के साथ डंकी को देखने थियेटर जाइएगा, तो मज़ा नहीं आएगा। ये राजकुमार हिरानी की ट्रेडमॉर्क स्टाइल वाली, सबसे मुश्किल फिल्म है, जो अपना असर थियेटर के अंदर नही, हमारे-आपके सोचने के नज़रिए तक पर छोड़ेगी।
डंकी को 4 स्टार।