Nikita Roy Review: हम सब ने अपने बचपन में आस-पड़ोस से अंधविश्वास की ढेरो कहानियां तो जरूर सुनी होंगी। लेकिन कभी भी पलट कर खुद से ये सवाल नहीं किया होगा- क्या ये सच है ? या फिर आंख मूंदे एक भेड़ चाल! जो आज तक सुनते आए वो हकीकत है या फिर एक ढोंग। तंत्र-मंत्र या सत्य… निकिता रॉय भी एक ऐसी ही कहानी को दिखाती है जो छलावे और अंधभक्ति का पर्दाफाश करती है। तो चलिए कहानी जानने के लिए E24 का ये रिव्यू पढ़ें।
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कहानी
निकिता रॉय की कहानी निकिता यानी की सोनाक्षी सिन्हा से शुरू होती है। जो एक सक्सेसफुल राइटर तो है ही, साथ ही अंधविश्वास और सुपरनेचुरल पावर्स वाले झूठे गुरुओं के खिलाफ एक मिशन चलाती हैं। ऐसे में फिल्म का पहला शॉट अर्जुन रामपाल से शुरू होता है जो अपने कमरे में बैठ काम कर रहा होता है। हर दिन की तरह ये भी एक आम दिन ही होता है। तभी उसे एक डर का एहसास होता है और इतने में ही निकिता की एंट्री होती है। लेकिन जल्द ही निकिता की जिदगी में एक ऐसा अनचाहा बुचाल आ जाता है जो उसकी जिंदगी और सोच दोनों को झकझोर कर रख देता है। ये भूचाल कुछ और नहीं बल्कि निकिता के सगे भाई की मौत है, जो सस्पेशियस तरीके से लंदन में होती है।
जिस दुनिया के खिलाफ निकिता आज तक जंग लड़ रही थी। साइंस की तलवार से अंधविश्वास को चुनौती देती थी। वही निकिता खुद-ब-खुद उसी दुनियां में खीचीं चली जाती हैं। धर्म – डोंग – साजिश या डर? ये वो गुत्थी है जो निकिता को परेश रावल यानी की अमरदेव तक लेकर जाती है और फिर शुरू होता है धर्म और धोखे का खेल जो सभी सिमाओं को धुंधला कर देता है। परेश रावल एक धार्मिक गुरु के रूप में दिखे हैं जो बाहर से शांत लेकिन अंदर से चालाक-खतरनाक होते हैं। उसकी खामोश में ही उसका डर होता है। ये ही वो मोमेंट है जब डर की रोलरकोस्टर राइड शुरू हो जती। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, सही और गलत का फर्क मिट जाता है और धर्म-डर का तांडव शुरू होता है। क्लाइमेक्स शानदार है इसलिए स्पॉइलर की तलाश छोड़ दीजिए।
परफॉरमेंस
सोनाक्षी सिन्हा निकिता रॉय के करैक्टर के साथ जस्टिस करती है, ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि सोनाक्षी बड़े लंबे वक्त बाद किसी इंटेंस करैक्टर में दिखाई दीं और इसे निभाने में भी सफल रहीं। फिल्म में ऐसे कई सीन्स है जहां आपको सोनाक्षी की परफॉरमेंस पीक पर दिखेगी लेकिन बीच में कुछ हॉरर एलिमेंट्स में सोनाक्षी अपनी इंटेंसिटी को खोती दिखती हैं। परेश रावल हर बार की तरह अपने करैक्टर “अमरदेव” कमाल दिखे। वाकई में जब-जब आप परेश रावल को देखेंगे, तूफान के पहले वाली शांति का आभास हो जाएगा। हर एक डायलॉग में छल का अंश छिपाने में परेश कामयाब साबित हुए। हर बार की तरह इस बार भी जानता को अर्जुन रामपाल से काफी उम्मीदें थीं और इस बार अर्जुन ने अपने फैन्स को निराश नहीं किया। डायलॉगबाजी शानदार थी लेकिन स्क्रीन प्ले अर्जुन का कहीं-कहीं कमजोर जरूर दिखाई देता है। वही सुहैल नैयर भी एक्स पार्टनर के रोल में दिखाई दिए और कहीं-कहीं आपको ऐसा लगेगा कि शायद स्क्रीन स्पेस को खींचा जा रहा है लेकिन फिर भी सुहैल स्क्रिप्ट के मुताबित अपना काम जबरदस्त तरीके से दर्शाते हैं।
डायरेक्शन
कुश सिन्हा ने पहली बार डायरेक्शन की कमान संभाली है और कहीं से भी आप इस फिल्म को देख कर ये कह नहीं पाएंगे की इस फिल्म के पीछे डेब्यू डायरेक्टर का विजन है। इस फिल्म के जरिए कुश ने ना सिर्फ जानता को डर के साथ सोशल मैसेज परोसा है बल्कि मजबूर किया है ये सोचने पर की हम किन चीजों पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं? और क्यों करते हैं? साथ ही निकिता रॉय के प्रोजेक्शन में पवन किरपालनी के स्क्रीनप्ले ने इसे और भी ज्यादा इंपैक्टफुल बना दिया। एक हॉरर मिस्ट्री फिल्म का स्क्रेनप्ले ही उसे ग्रिपिंग बनाता है। हॉरर और मिस्ट्री फिल्म के हिसाब से सिनेमेटोग्राफी में कुछ आउट ऑफ बॉक्स वाली फीलिंग तो नहीं थी लेकिन जानता के बीच डर का माहौल बनने में निक्की-विक्की भगनानी फिल्म्स सफल साबित हुए।
फाइनल वर्डिक्ट
जुलाई महीने की 18 तारीक को फिल्मों का बुफे लगा। जहां रोमांस के साथ-साथ एक्शन और हॉरर का भी एक तड़का लगा। ऑडियंस को एक बार निकिता रॉय जरूर देखनी चाहिए क्योंकि हॉरर फिल्म की पैकेजिंग में आपको जिन्दगी की सीख मिलती है। निकिता रॉय को 3.5 मिलते हैं।
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