Game Changer Movie Review (Ashwini Kumar): पैन इंडिया फिल्म क्या होती है? वो जो बड़े-बड़े स्टार करें, और उन्हें प्रमोट करें… या फिर वो सब्जेक्ट जो पैन इंडिया ऑडियंस को टच करे। हालांकि इस पैन इंडिया प्रोजेक्ट के चक्कर में फिल्मों का बजट और एक्सपेक्टेशन दोनों बहुत बढ़ जाती है। राम चरण स्टारर ‘गेम चेंजर’ के साथ भी ऐसा ही हुआ है। ‘RRR’ के बाद राम चरण को एक पैन इंडिया सक्सेस की जरूरत है, जो उनके ग्लोबल स्टार के टैग को इन्टैक्ट रखे। वैसे भी डायरेक्टर शंकर, जिन्होंने कम से फिल्मों में ही सही, लेकिन पूरे देश को करप्शन-फ्री करने का बीड़ा उठाया है। कमल हासन के साथ ‘इंडियन’, अनिल कपूर के साथ ‘नायक’, सुपरस्टार रजनीकांत के साथ ‘शिवाजी द बॉस’, विक्रम के साथ ‘अपरिचित’ और अक्षय कुमार के साथ ‘2.0’ इस करप्शन के खिलाफ उनकी कहानियों की लड़ाई का प्लॉट रहा है। मगर जब ‘इंडियन 2’ आई तो उसे ओल्ड स्कूल ट्रीटमेंट और पूअर बॉक्स ऑफिस रिस्पॉन्स ने गेम चेंजर के दीवानों की धड़कनें बढ़ा दी थी। लेकिन ये बड़ी हुई धड़कनें, अब राहत की सांस में बदल सकती हैं। क्योंकि ‘गेम चेंजर’ शंकर की ‘नायक’ की एक कामयाब एक्सक्रेशन बन सकती है।
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कहानी
ट्रेलर से ही जाहिर था कि ‘गेम चेंजर’ बाप और बेटे के डबल रोल में राम चरण का डबल धमाका दिखाने वाली है। जिसमें बेटा राम IAS ऑफिसर है, जो पहले IPS था और उसके बाद कलेक्टर बनने के लिए पढ़ाई की। पहले सीन से डायरेक्टर शंकर, राम चरण और उनके दमदार एक्शन सीक्वेंस का माहौल सेट कर देते हैं, जिसमें रेल की पटरी के लुंगी और बनियान पहने IAS राम गुंडों की बैंड बजाता है। हां, उसके बाद राम के फ्लैशबैक में सुनाई लव स्टोरी टिपिकल शंकर के अंदाज में आगे बढ़ती है। जहां राम के एंगर इश्यू से लेते हुए गर्लफ्रैंड दीपिका से उसके बिछड़ने की कहानी तक आकर पहुंचता है। यहां लगता है शंकर को कियारा आडवाणी को थोड़ा और अच्छे से इस्तेमाल करना चाहिए था। एसजे सूर्या बोपिल्ली मोपिदेवी के कैरेक्टर में आपको चौंकाता है, कि कैसे वो चीफ मिनिस्टर की कुर्सी तक पहुंचने के लिए किसी का भी खून बहा सकता है। और फिर IAS राम और बोपिल्ली के बीच की टक्कर और इंटरवल का एक ऐसा 20 मिनट का ब्लॉक, जो आपका जोश बढ़ा देता है।
सेकेंड हॉफ में कहानी फ्लैशबैक में आती है। राम के पिता अपन्ना और उसकी मां पार्वती की वो स्टोरी सामने आती है, जो गेम चेंजर का सबसे दमदार ट्रैक है। अपन्ना के पार्ट में राम चरण की एक्टिंग, आपका दिल छू लेगी। और जिस तरह से पॉलिटिक्स के सामने ईमानदारी और सच्चाई हारती है वो कमाल है। इसके बाद से कार्तिक सुब्बाराज की कहानी और विवेक वेलमुर्गन का स्क्रीनप्ले आपको अलग-अलग मोमेंट्स देता रहता है, जो थोड़ा अन-रियलिस्टिक भले ही हो, लेकिन सिनेमैटिक फ्लेवर को पंप-अप करती रहती है। कार्तिक सुब्बाराज की ये कहानी और इसका ट्रीटमेंट आपको बहुत हद तक अनिल कपूर की नायक वाला फील देता है। जिसमें आप सोचते हैं कि काश ऐसा एक नेता असल में होता, वैसे ही गेम चेंजर में फील होता है कि ऐसा IAS ऑफिसर हो तो मजा ही आ जाए।
म्यूजिक, एडिटिंग और सिनेमेटोग्राफी
थमन का म्यूजिक अपना समां बांधता है, लेकिन कहीं-कहीं ये बहुत ज्यादा ड्रामा क्रिएट करने के चक्कर में लाउड भी हो जाता है। गाने अच्छे हैं, लेकिन पिक्चराइजेशन में डायरेक्टर शंकर के स्पेशल इफेक्ट्स वाले फ्यूचरिस्टिक वर्जन में फिल्म की टाइमलाइन पर झटका भी मारते हैं। सिनेमैटोग्राफी शानदार है और एडिटिंग ने फिल्म का पेस अच्छा बनाया है। VFX-पार्ट भी अच्छा है।
एक्टिंग
राम चरण गेम चेंजर के सबसे बड़े हाईलाइट हैं, या यूं कह सकते हैं कि ‘गेम चेंजर’ राम चरण का वन मैन शो है। इमोशन्स से लेकर एक्शन तक, डबल रोल के कॉम्प्लेक्स कैरेक्टर्स से लेकर अपने डांस तक रामचरण ने ग्लोबल स्टार वाला स्वैग मेंटेन कर रखा है। कियारा आडवाणी के लिए ‘गेम-चेंजर’ कुछ खास नहीं कर पाई। हालांकि राम को इंस्पायर करने वाले उनके पार्ट में स्कोप था, लेकिन उसे बहुत ज्यादा स्पेस मिला नहीं है। एस. जे. सूर्या जैसा विलेन फिल्म की इंटेसिटी बढ़ा देता है। पार्वती के कैरेक्टर में अंजली का काम बेहद शानदार है। हालांकि जयराम की ओवर-ड्रामेटिक कॉमेडी कहीं-कहीं जरूरत से ज्यादा बचकानी लगती है।
फाइनल वर्डिक्ट
‘गेम चेंजर’ शंकर के ट्रेडमार्क स्टाइल वाली फिल्म है, जो ‘नायक’ का एक्सटेंशन लगती है। क्लाइमेक्स में फिल्म थोड़ी अन-रियलिस्टिक जरूर होती है, मगर बावजूद इसके गेम-चेंजर एंटरटेनिंग है और राम चरण के फैन्स के लिए मस्ट वॉच है।
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