India Lockdown Review, Ashwani Kumar: कोरोना की फर्स्ट वेव के दौरान, जब 24 मार्च 2020 को अचानक पूरे इंडिया में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान हुआ, तो हर तरफ़ भगदड़ थी। हम सबने पहले दो काम किए, पहले पूरे घर का राशन भरा और दूसरा टीवी खोलकर बैठ गए, ये जानने के लिए कि देश में क्या हो रहा है। न्यूज़ चैनल्स हमें दिखाते रहे एटीएम, राशन की दुकानों, शराब के ठेकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें और फिर हर ओर सन्नाटा पसर गया। मगर फिर इस सन्नाटे में हमें सिसकिया सुनाई देने लगी, अकेलापन कचोटने लगा, एंबुलेंस की आवाज़ और फिर दिखने लगा सड़कों पर मजदूरों की लंबी-लंबी कतारें, जो लॉकडाउन में अपने घरों की ओर निकल पड़े थे, पैदल।
ये सब हम कभी भुला नहीं पाएंगे। शायद ज़िंदगी की भागदौड़ में एक-दो लम्हे के लिए हम कोशिश भी करें इसे भूलने की, मगर ये मुमकिन नहीं है। ऐसे में मधुर भंडाकर ने पहले लॉकडाउन की त्रासदी को फिल्म में उतारा। फर्स्ट वेव के बाद, चार कहानियों वाली अपनी फिल्म की शूटिंग शुरु कर दी, जो हिंदुस्तान के हर शख़्स की कहानी अपने आप में पिरोए हुए है।
इन चार कहानियों में पहली कहानी माधव और फुलमती की है। फुलमती, घरों में मेड का काम करती है और माधव, उधार पर लिए गए ठेले पर चाट बेचता है। झुग्गी में दो बच्चों के साथ अपनी ज़िंदगी बिताने वाले इस परिवार पर लॉकडाउन, किसी पहाड़ की तरह गिरता है। जिंदा रहने की चाह में ये परिवार दूसरे मज़दूरों के साथ हज़ारों किलोमीटर दूर अपने घर पहुंचने के लिए पैदल ही निकल पड़ता है। और फिर वो तस्वीर, वो दर्द, वो टूटना लेकिन खुद को बिखरने ना देना। एक-एक कौर खाने के लिए हज़ार-हज़ार मन्नतें, देखकर आप वापस उस लम्हे में लौट जाएंगे, जब ल़ॉकडाउन लगा था।
दूसरी कहानी है मुंबई के एक सेक्स वर्कर मेहरूनिसा की। मेहरु, बिहार से मुंबई आई एक लड़की, जो अपनी मां को बताती है कि वो एक हॉस्पीटल में नर्स का काम करती है और हर महीने मां के पास पैसे भेजती है। अपने सेक्स वर्कर वाली पहचान को छिपाने के लिए, गांव के ही एक शख़्स के साथ जिस्म का समझौता करती है। लॉकडाउन के दौरान भी ये सेक्स वकर्स बिखरती नहीं, बल्कि खुद का मज़ाक बनाकर हंस लेती हैं। लेकिन जब उनके बाड़ी की एक मासूम बच्ची को बेचा जाने वाला होता है, तो मेहरूनिसा उसे इस दलदल से बाहर निकाल लेती है।
तीसरी कहानी एक रिटायर्ड पिता नागेश्वर राव की है, जिनकी बेटी प्रेग्नेंट हैं। एक अकेला पिता अपनी बेटी के इस बेहद मुश्किल दौर में उसके साथ रहना चाहता है। मगर लॉकडाउन उसकी उम्मीदों पर पानी फेर देता है। सोसायटी के नियमों के चलते घर की सफाई और खाना बनाने वाली मेड को भी छुट्टी देनी होती है। पूरे लॉकडाउन एक अकेले सीनियर सिटिजन क साथ क्या होता है, और वो कैसे जुगाड़ से कर्फ्यू पास बनाकर अपनी बेटी तक पहुंचने की कोशिश करता है, जबकि उसे पता है कि कोरोना का शिकार वो लोग ज़्यादा बन रहे हैं, जो उम्रदराज़ हैं।
चौथी कहानी एक बिंदास पायलट मून एल्वेस की है, जो प्राइवेट प्लेन्स उड़ाती है। पूरी दुनिया घूमने वाली मून इस लॉकडाउन के दौरान घर में नई-नई रेसीपी ट्राई करती है। अपने अकेलेपन और मायूसी से बचने के लिए पायलट की कॉस्ट्यूम पहनकर, अपने एक पड़ोसी बच्चे को खाने पर इनवाइट करती है। फिर उसके करीब आने की कोशिश करती है।
ये सारी कहानियां फैन्सी नही है, ना इसमें किसी तरह का ड्रामा है। चारो कहानियों में ज़बरदस्ती का इमोशन डालने के लिए बैकग्राउंड स्कोर तक का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसलिए ये भी लग सकता है कि आपने ये सब देखा है। और यही तो मधुर भंडारकर के इंडिया लॉकडाउन की खासियत है कि ये बिल्कुल सच्ची है, कोई तमाशा नहीं। आप मजदूरों का दर्द समझ पाते हैं, सेक्स वकर्स की हालत देख पाते हैं और अपॉर्टमेंट्स की ज़िंदगी का अकेलापन भी देख पाते हैं। मधुर भंडारकर की ये फिल्म आपके लिए कोरोना के वक्त का एक ऐसा फ्लैशबैक है, जो अचानक आपको उसी वक्त में ले जाकर खड़ा कर देता है।
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इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है इसके सितारे। माधव के किरदार में प्रतीक बब्बर को देखकर आपको एक पल के लिए अहसास नहीं होगा कि ये दिहाड़ी मजदूर नहीं है। प्रतीक के आंख़ों का दर्द, आपको महसूस ज़रूर होगा। सई करमाकर कमाल की एक्टर्स हैं, फूलमती के किरदार को देखकर आप समझ जाएंगे। मेहरूनिसा के किरदार के लिए श्वेता बासू प्रसाद की तैयारियां कमाल कर गई हैं, वो इतनी रीयल लगी हैं कि आप हैरान हो जाएंगे। आहना कुमरा अपने रोल में बिल्कुल जंची हैं। और प्रकाश बेलावडी ने अपने किरदार को जैसे जी लिया है।
बेहतरीन अदाकारी से सजी, रियलिस्टिक इंडिया लॉकडाउन को देखना ज़रूर बनता है। ज़ी5 पर फिल्म स्ट्रीम हो रही है।
इंडिया लॉकडाउन को 3.5 स्टार।
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