Darlings Review: आलिया और शेफाली शाह की जानदार अदाकारी ने बचा ली ‘डार्लिंग्स’ की डूबती कहानी
नेटफ्लिक्स पर डार्लिंग्स रिलीज़ हो गई है। फिल्म के चर्चे भी खूब हैं, क्योंकि आलिया इस फिल्म की प्रोड्यूसर हैं, उन्होने रेड चिलीज़ के साथ मिलकर ये फिल्म पहली-पहली बार प्रोड्यूस की है, बल्कि खूब जमकर प्रमोशन भी किया है। लेकिन सवाल ये कि जिस फिल्म में आलिया खुद प्रोड्यूसर और एक्ट्रेस हैं, वो फिल्म ओटीटी पर रिलीज़ क्यों ? जवाब सिंपल है, कि प्रोडक्ट थियेटर वाला नहीं, बल्कि ओटीटी वाला है।
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कहानी पर आते हैं, एक लड़की है बदरून्निसा, उसे प्यार हुआ है हमज़ा से। हमज़ा की सरकारी नौकरी के साथ शादी भी हो जाती है, और फिर शुरु होता है घर के अंदर मार-पीट का वो सिलसिला, जिसे बदरू बीवी बनकर झेलती है, और हमज़ा शौहर बनकर करता है। टीसी बन हमजा, ऑफिस में दब्बू बनकर बॉस का टॉयलेट और टेबल साफ़ करता है, लेकिन घर आने पर दारू की ओट में बदरू की गर्दन दबाता है, क्योंकि बिरयानी के चावल में कंकड़ आ गए हैं। ये निशान इतने गहरे होते हैं कि पूरे मोहल्ले वालों को दिखते हैं। सामने के घर में रहने वाली बदरू की मां शमशुन्निसा अपनी बेटी पर होते ज़ुल्मों को देखती हैं और बार-बार उसे हमज़ा से पीछा छुड़े की नसीहत देती है। तलाक देकर नहीं, क़त्ल करके। हज़ार कोशिशों के बाद भी बदरू, बार-बार हमज़ा को सुधरने का मौका देती है, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता। क्योंकि ट्रेलर में ही कहानी आपने सुन ली है कि बिच्छू अपनी फितरत नहीं छोड़ता। क्लाइमेक्स तक पहुंचते-पहुंचते घरेलू हिंसा, बीवी की बग़ावत और शौहर के कत्ल के प्लान तक बहुत कुछ होता है। डार्लिंग्स का एक डॉयलॉग जैसा है - "मरद लोग दारू पीकर जल्लाद क्यों बन जाते हैं? पुलिस वाला जवाब देता है: क्योंकि औरत उसे बनने देती है।"
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डार्लिंग्स की कहानी थोड़ा फिक्शनल है, बहुत हद तक रीयल भी है। इस कहानी में एक अच्छी बात है कि ये फिल्म पूरी पुरूष बिरादरी को विलेन नहीं बनाती। बल्कि बताती है, कि बुरे लोगो के बीच अच्छे मर्द भी हैं। मगर ये इतनी लीनियर स्टोरी है, कि आपको पता होता है कि आगे होने वाला क्या है। डार्लिंग्स की नीयत अच्छी है, ट्रीटमेंट भी अच्छा है। सिनेमैटोग्राफ़ी. लोकेशन सब कुछ बढ़िया है। कमी है तो स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन में। स्क्रीनप्ले आपको बांधकर नहीं रख पाता, लगता है कि एक 40-45 मिनट के एपिसोड की कहानी को खींचकर 2 घंटे 14 मिनट का कर दिया गया है।
बतौर डायरेक्टर जसमीत रे की डार्लिंग्स पहली फिल्म है, कहानी उन्होने परवेज़ शेख के साथ मिलकर लिखी है। फिल्म के फीमेल कैरेक्टर्स उन्होने अच्छे लिखे हैं, लेकिन मेल कैरेक्टर, जिसकी वजह से फीमेल कैरेक्टर्स और निखरते, उन्हे अध-पका रख दिया। हमज़ा के कैरेक्टर का कोई बैकड्रॉप नहीं है। दरअसल किसी भी मेल कैरेक्टर का कोई बैकग्राउंड रिफरेंस तक नहीं है। हां, डाययलॉग्स ज़बरदस्त हैं।
परफॉरमेंस पर आइए, तो डार्लिंग्स आलिया के स्टार पॉवर पर चलनी वाली फिल्म है। आलिया ने बदरू के किरदार के बारीक से बारीक एक्सप्रेशन्स को भी पकड़ा है। बतौर एक्ट्रेस आलिया निखरी हैं, लेकिन बतौर प्रोड्यूसर उन्हे अभी और निखरना है। शेफाली शाह के तो क्या कहने, हर किरदार में उन्हे देखने के बाद और देखने की ख़्वाहिश जागती है। विजय वर्मा के किरदार को निखरने का मौका नहीं मिला है, वो एक जैसे एक्सप्रेशन्स में बंधकर रह गए हैं। जुल्फ़ी बने रोशन मैथ्यू को उनसे ज़्यादा वैरिएशन मिले हैं। राजेश शर्मा तो हैं ही कमाल एक्टर, बतौर कसाई फिल्म के फर्स्ट हॉफ़ में उनका कैरेक्टर भले ही कमज़ोर है, लेकिन क्लाइमेक्स में अपने बैकग्राउंड के एक रिफरेंस और एक्सप्रेशन से ही, वो बाज़ी जीत लेते हैं।
नेटफ्ल्किस पर डार्लिंग्स रिलीज़ हुई है। परफॉरमेंस अच्छी है, कहानी भी ठीक-ठीक ही है। वीकेंड पर कुछ और ख़ास रिलीज भी नहीं हुआ है, तो डार्लिंग्स देख सकते हैं।
डार्लिंग्स को 2.5 स्टार
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