Main Atal Hoon Review/Ashwani Kumar: जो देश का सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहा हो, जो विश्व भर में शांति का प्रतीक बना हो, विपक्ष भी जिसका मुरीद रहा हो, जिसकी कविताओं में प्रेम और क्रांति का अद्भुत संगम हो, ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी की कहानी को सिर्फ़ 2 घंटे 20 मिनट में दिखाना ऐसी टेढ़ी राह है, जिसमें जरा सी गलती पूरी की पूरी कहानी बिगाड़ सकती थी। लेकिन ‘मैं अटल हूं’ बनाने में तीन ऐसी शख़्सियत जुड़ी, जिसने वाजपेयी जी के 94 साल के जीवन और 6 दशक के राजनीतिक करियर के सबसे महत्वपूर्ण पड़ावों को समेट लिया।
फिल्म की कहानी (Main Atal Hoon Review)
इस कहानी को दिखाने के लिए ड्रामा की जगह, डॉक्यू-ड्रामा जैसा फॉर्मेट अपनाया गया। फिल्म की शुरुआती क्रेडिट में ही RSS की शाखाओं में वाजपेयी जी की मेहनत और लगन दिखा दी। बचपन में बोलने की कला सीखने का एक छोटा सबक पिता से सीखने की घटना से लेकर, नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में हेडगेवार जी को सुनना और उनके निधन से लगे धक्के तक की कहानी तेजी से आगे बढ़ती है। फिल्म ठहरती है वहां, जहां अटल जी का प्रेम दिखाना होता है और ये फिल्म का ऐसा पड़ाव है, जहां थियेटर में बैठे लोगों चौंकते हैं। राजकुमारी के साथ अटल जी के प्रेम का अध्याय खुलता और तुरंत ही बंद भी हो जाता है, लेकिन सिर्फ़ एक गाने में इस संबध की गहराई समझ आती है।
रवि जाधव का शानदार डायरेक्शन (Main Atal Hoon Review)
ऋषि वर्मन के साथ मिलकर डायरेक्टर रवि जाधव ने मैं अटल हूं में वाजपेयी जी की कहानी के सबसे अहम पड़ावों को ऐसे पिरोया है, जिसमें उनके पिता से उनकी दोस्ती, आरएसएस प्रचारक बनने के लिए वकालत छोड़ना, राष्ट्र-धर्म पत्रिका से उनके लेखनी और व्यक्तिव का निखरना, दीन दयाल उपाध्याय जी के साथ उनका पिता-पुत्र जैसा रिश्ता, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जनसंघ के ज़रिए राजनीति में उतरना, संसद में 4 सांसदों के साथ देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी को अपना मुरीद बनाने जैसे किस्से हैं। इस कहानी में इंदिरा गांधी से उनका टकराव, इमरजेंसी का दौर, जनता पार्टी के साथ सत्ता में पहुंचकर विदेश मंत्रालय जाना, यूनाइटेड नेशंस में वसुधैव कुंटुबकम की बात करने जैसे अहम पड़ाव हैं। और ये सब फिल्म के फर्स्ट हॉफ़ तक हो चुका है।
सेकेंड हॉफ़ भी लाजवाब (Main Atal Hoon Review)
सेकेंड हॉफ़ में रवि जाधव ने भारतीय जनता पार्टी का उदय, आडवाणी जी के साथ राम मंदिर का आंदोलन, अटल जी का राजकुमारी के परिवार को अपनाना, राजनीति से विछोह के बीच प्रधानमंत्री का उम्मीद्दवार बनना और अपने 13 महीनों के कार्यकाल में पोखरन परमाणु परीक्षण, लाहौर बस यात्रा और करगिल युद्ध में विजय गाथा लिखने तक की घटनाओं को जगह दी है। करगिल की चोटियों से भारत माता की जय के उद्घोष के बीच मैं अटल हूं कि कहानी में बहुत कुछ छूट जाता है। लेकिन फिर भी लगता है कि आपने अटल को जान लिया, यही इस फिल्म की जीत है। 2 घंटे 20 मिनट की इस फिल्म में इतना सब कुछ समेट लेना अपने आप में किसी रिकॉर्ड से कम नहीं है। एक कहानी में बहुत कुछ छूट जाता है, लेकिन फिर भी अगर कहानी आपको उलझाती नहीं, और मंज़िल तक पहुंच जाती है, तो वो अपने आपमें संपूर्ण है।
पंकज त्रिपाठी ने बखूबी निभाया रोल
मैं अटल हूं पूरी तरह से पंकज त्रिपाठी की फिल्म है। इस किरदार के लिए पंकज त्रिपाठी ने खुद को समर्पित कर दिया है। स्क्रीन पर उन्हे देखकर एक पल के लिए भी नहीं लगता कि वो कहीं से अटल जी की मिमिक्री कर रहे हैं… आप उनके और वाजपेयी जी में समानानंतर रेखा खींच सकते हैं। ये किरदार पंकज त्रिपाठी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता बनाती है। वाजपेयी जी के पिता के किरदार में पीयूष मिश्रा जंचते हैं। राजकुमारी के किरदार में एकता कौल ने जो ठहराव दिखाया है, उसके लिए जितनी तारीफ़ की जाए कम है। हांलाकि बाकी किरदारों जैसे कि आडवाणी जी के किरदार में, इंदिरा जी के किरदार में, दीनदयाल उपाध्याय के किरदार में, सुषमा स्वराज और प्रमोद महाजन के किरदार में कास्ट किए गए कलाकार बस लुक्स मैच करने जैसे हैं।
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ग्वालियर के अटला से अटल बिहारी वाजपेयी बनने की इस कहानी में जैसे देश की कहानी नज़र आती है। अटल जी को जानने और पंकज त्रिपाठी को सहारने के लिए ये फिल्म देखी जानी चाहिए।
मैं अटल हूं को 4 स्टार।