Maa Review: ‘मां’ में दादी-नानी की कहानियों का जादू, 15 मिनट का क्लाइमैक्स निकला मूवी की जान; पढ़ें रिव्यू
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Maa Review: काजोल की मोस्ट अवेटेड फिल्म 'मां' सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। प्रमोशन्स के दौरान मूवी को भारत की पहली माइथो-हॉरर फिल्म कहा गया था। इसके बाद से ऑडियंस की एक्साइटमेंट और ज्यादा बढ़ गई थी। वहीं मूवी का पहला रिव्यू भी सामने आ गया है। मूवी असल में माइथो-हॉरर नहीं बल्कि माइथोलॉजिकल थ्रिलर है। मूवी की जो असली ताकत है वो इसकी कहानी, थ्रिल, माइथोलॉजिकल कनेक्शन और क्लाइमेक्स है। इसमें देखने को मिलेगा कि कैसे एक मां अपनी बेटी के लिए शैतान से लड़ जाती है। वहीं फिल्म प्रमोशन में आर माधवन को देखने के बाद अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस मूवी से आर माधवन की शैतान का कोई कनेक्शन दिखने वाला है, लेकिन इसमें कोई भी कनेक्शन नहीं है। दोनों कहानियां अलग-अलग हैं। काजोल की मूवी की कहानी जानने के लिए E24 का ये रिव्यू पढ़ें।
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फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी की शुरुआत श्वेता की जिद से होती है जो समर वेकेशन में अपने पापा के गांव चंद्रपुर जाना चाहती है। लेकिन वहां कुछ रहस्य जुड़ा होता है जिसे श्वेता से छिपाया जाता है। दरअसल चंद्रपुर की धरती से मां काली और रक्तबीज का रहस्य जुड़ा है, जिसकी हर खून की बूंद से एक नया राक्षस पैदा होता है। ये ही शैतान अब गांव की लड़कियों को निशाना बनाता है। फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी धीमा है। डायरेक्टर विशाल फुरिया ने सेटअप में ज्यादा वक्त लिया, जिससे हॉरर या सरप्राइज का असर कमजोर पड़ता है। लेकिन सेकंड हाफ में फिल्म रफ्तार बनाती है और 15 मिनट का क्लाइमेक्स फिल्म को यादगार बना देता है। काजोल का देवी अवतार, दमदार परफॉर्मेंस और जबरदस्त VFX ऑडियंस को रोमांचित कर देता है।
दादी-नानी की कहानियों की आएगी याद
इस मूवी की कहानी को सायवन क्वाड्रस ने लिखा है। वहीं लेखक ने मूवी के जरिए फिक्शन और माइथोलॉजी को बेहतरीन तरीके से पिरोया है। फिल्म देखकर ऐसा लगता है जैसे बचपन में सुनी दादी-नानी की कहानियां आंखों के सामने जिंदा हो गई हों। फिल्म की ट्रीटमेंट कुछ हद तक हनु-मान या कार्तिकेय जैसी साउथ फिल्मों की याद दिलाती है।
परफॉर्मेंस
मूवी में काजोल ने अपनी परफॉर्मेंस से इंप्रेस कर दिया। एक्ट्रेस ने अपने एक्सप्रेशन्स और स्क्रीन प्रेजेंस से पूरी फिल्म को संभाला है। उनकी बेटी बनी खेरिन शर्मा की एक्टिंग भी काफी कमाल की लगी। वहीं इसके अलावा दिब्येंदु भट्टाचार्य भी शानदार हैं, लेकिन रोनित रॉय का किरदार उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाता।
विजुअल्स और म्यूजिक
फिल्म के विजुअल्स की बात करें तो इसकी सिनेमैटोग्राफी और VFX काफी शानदार हैं। अजय देवगन की VFX कंपनी ने वाकई कमाल का काम किया है। लेकिन संदीप फ्रांसिस की एडिटिंग और मनोज मुंतशिर के गाने ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ते। बैकग्राउंड स्कोर भी ठीक-ठाक है।
फाइनल वर्डिक्ट
‘मां’ एक माइथो-थ्रिलर है, जिसमें शानदार क्लाइमेक्स और काजोल की दमदार परफॉर्मेंस फिल्म को ऊंचा उठाते हैं। हॉरर की उम्मीद से आए ऑडियंस को थोड़ी कमी लगेगी लेकिन माइथोलॉजी और विजुअल लवर्स के लिए ये फिल्म एक अच्छा अनुभव है। इसकी रेटिंग 3.5 है।
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