Jigra Review/Navin Singh Bhardwaj: आम जनता के लिए जेल का नाम आना मतलब – डरना जरूरी है कोई भी झगड़े हो या बहस हो, अक्सर ये बोलते हुए सुना जाता है कि “मैं तुम्हें जेल की हवा खिला कर रहूंगा”। यूं तो जेल की कहानी पर बॉलीवुड में वैसे तो कई फिल्में बनी हैं, चाहे वो अमिताभ बच्चन की साल 2004 में आयी फिल्म ‘दीवार’ हो या फरहान अख्तर की 2017 में आयी फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ हो, या इसी साल 2024 में रिलीज हुई फिल्म ‘सावी’ हो। ऑडियंस की बड़े पर्दे पर कुछ हट कर देखने की चाह ही निर्माता और निर्देशकों को इस तरह की फिल्में बनाने का हौसला देते हैं। अब इस साल एक और मच अवेटेड फिल्म आज रिलीज हुई है, जिसमे जेल और उस से निकल भागने की कहानी दिखाई गई है, हम बात कर रहे हैं सुपरस्टार आलिया भट्ट की जिनकी फिल्म “जिगरा” आज थिएटर में रिलीज हुई है।
आखिर कैसी है वसन बाला और आलिया भट्ट की ये फिल्म जिगरा?
कहानी : कहानी की शुरुआत लंदन से होती है जहां सत्य आनंद (आलिया भट्ट) अपने छोटे भाई अंकुर आनंद (वेदांग रैना) के साथ अपने ताऊ जी / बड़े पापा के घर रहती है। बचपन में पिता की आत्महत्या ने बताया को छोटी उम्र में ही मैच्योर कर देता है। सत्या अपने ताऊजी के लिए काम भी करती है। अंकुर अपने बड़े पापा के बेटे कबीर के साथ सॉफ्टवेयर के बिजनेस डील के लिए हंसी दिया जाता है, हाँशी दाओ, मलेशिया के पास का छोटा सा द्वीप है। डील सक्सेस होने पर दोनों पार्टी करते हैं, कबीर पार्टी में इलीगल पदार्थ खरीदता है और दोनों पकड़े जाते हैं, जहां दोनों के लॉयर कबीर को बचाने के लिए अंकुर पर इल्जाम लगा देता है और अंकुर को इल्जाम कबूल करने को कहते है। इसके बाद हांशी दाओ के कोर्ट से अंकुर को 3 महीने में मौत की सजा सुना दी जाती है। इधर सत्या को जब पता चलता है वो फौरन हांशी दाओ के लिए रवाना हो जाती है। तो क्या सत्या अपने भाई को मौत की सजा से बचा पाएगी ? या विदेश के कठोर नियमों के सामने सत्या हार मान जाएगी। ये जानने के लिए आपको अपने नजदीकी सिनेमाघरों का रुख करना होगा।
डायरेक्टर – राइटिंग और म्यूजिक
मर्द को दर्द नहीं होता और मोनिका ओ माय डार्लिंग जैसी फिल्म के बाद वासन बाला अपनी अगली फिल्म जिगरा के साथ वापसी कर रहे हैं। इस फिल्म को वासन ने डायरेक्ट किया और लिखने में उनका साथ दिया है देवाशीष इरेंगबाम ने। कहानी आइए डायरेक्शन के मामले में वासन ने अच्छा काम किया है, भाई-बहन के प्यार को जितना हो सके दर्शाने की कोशिश की है। कहानी थोड़ी क्रिस्प हो सकती थी पर विदेश के कड़वे नियम कानून को दिखाने की बेजोड़ कोशिश में फिल्म को लंबा किया गया है। जेल से भाग निकलने के प्लान को भी डिटेल्स में दिखाया गया है जो की फिल्म को थोड़ा इंटरेस्टिंग बनाता है। इंटरवल से पहले स्टोरी बिल्ड अप होते दिखाया गया है वही इंटरवल के बाद कंक्लूजन। अब तक जो अनुमान लगाया जा रहा था की आलिया की ये फिल्म दिव्या खोसला की फिल्म सावी के जैसी होगी, फ़िल्म का क्लाइमेक्स देखकर शायद आपको भी ये कन्फ्यूजन दूर हो जाएगा। फिल्म में कई कई जगह आलिया को बेखौफ दिखाने के चक्कर में लड़ते हुए यानी की फाइट सीक्वेंस दिखाया गया है जो की जबरन फिट किया हुआ सा दिखता है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर अचिंत ठक्कर ने दिया है जो की सीन्स के हिसाब से फिट बैठता है।
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एक्टिंग
फिल्म में दोनों मुख्य कलाकारों आलिया और वेदांग के अलावा मनोज पावा, विवेक गोबर और और राहुल रविंद्रन जैसे कलाकार भी हैं। आलिया ने सहमी और बेखौफ और कभी ना हौसला हारने वाली बहन के किरदार को बड़े ही अच्छे से निभाया है वह दूसरी फिल्म के हिसाब से वेदांग ने भी बहुत अच्छा काम किया है। दोनों भाई -बहन का प्यार बड़े पर्दे पर खुलकर नजर आया है। फिल्म के बाकी के कलाकारों ने अपने किरदार को बेहतरीन रूप से निभाया है। फिल्म में राधिका मदान का कुछ पलों के लिए आना वासन बाला के सिग्नेचर को दर्शाता है।
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फाइनल वर्डिक्ट
फिल्म को ज्यादा प्रमोट ना करने से कि आलिया ये देखना चाहती थी कि वो इस फिल्म के लिए काफी कॉन्फिडेंट हैं, शायद यही वजह है कि आलिया की इस फिल्म का उतना बज नहीं है जितना उनकी आखिरी फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का था। फिलहाल अगर पर्सनल एक्सपीरियंस की बात करें तो पहले दिन का पहला 9 बजे के शो में ज्यादा ऑडियंस नहीं आई और शायद यही देखने फिल्म के राइटर-डायरेक्टर वासन बाला थिएटर पहुचे थे। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि साल का दूसरा जेल ब्रेकिंग मूवी ऑडियंस को थिएटर तक खींच पाती है या नहीं।