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Coolie Review: ठूस-ठूस कर भरे आइडियाज बढ़ाएंगे कन्फ्यूजन, फिर भी दिल जीत लेगी ‘कुली’

Coolie Review: थलाइवा स्टार रजनीकांत की फिल्म 'कुली' सिनेमाघरों में आज रिलीज हो गई है। अगर आप इस फिल्म को देखने का मूड बना रहे हैं तो एक बार पहले रिव्यू पर नजर डाल लें।

Photo Credit- X

Coolie Review: (Navin Singh Bhardwaj) डायरेक्टर लोकेश कनगराज, जिन्होंने तमिल सिनेमा में नई लहर पैदा की है, उनका रिकॉर्ड शानदार रहा है। ऐसे में जब उनकी और रजनीकांत की जोड़ी का ऐलान हुआ तो उम्मीदें आसमान छूने लगीं। अपने फिल्मी करियर के 50 साल पूरे कर चुके थलाइवा रजनीकांत की फिल्मों की बात ही अलग है। वो हलचल, वो क्रेज और वो ढेरों फैन थ्योरीज जो रिलीज से पहले ही हवा में उड़ने लगती हैं। रूमर्स तो ये भी है कि कुली लोकेश के सिनेमैटिक यूनिवर्स (LCU) का हिस्सा है। पर क्या ऐसा है? ये जानने के लिए आपको अपने नजदीकी सिनेमाघरों का रुख करना होगा।

कहानी :

फिल्म की कहानी कई अलग-अलग टाइमलाइन और जगहों में फैली है। राजशेखर (सत्यराज) की मौत के बाद उनकी बड़ी बेटी प्रीति (श्रुति हासन) और दो बहनें परेशानियों में घिर जाती हैं। राजशेखर का पुराना दोस्त, हवेली का मालिक देवा (रजनीकांत) अंतिम श्रद्धांजलि देने आता है लेकिन प्रीति गुस्से में उसे वहां से चले जाने को कहती है। कुछ दिनों बाद देवा को शक होता है कि राजशेखर की मौत के पीछे कुछ और राज छुपा है। इसी दौरान एंट्री होती है साइमन (नागार्जुन) की, जो स्मगलिंग गैंग का सरगना है और कई गैर-कानूनी काम करता है। इधर दयालन (सोबिन शाहीर) बंदरगाह पर मजदूरों का शोषण और हत्या करने वाला साइमन का ही आदमी है। देवा जैसे-जैसे जांच में आगे बढ़ता है, वह साइमन और दयालन की खतरनाक दुनिया में खिंचता चला जाता है। राजशेखर का असल काम क्या था?  उसका दयालन और गैंग से क्या रिश्ता था? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए फिल्म तो देखना बनता है।

डायरेक्शन, राइटिंग और म्यूजिक

निर्देशक लोकेश कनगराज की कुली की शुरुआत स्टाइलिश है। रजनीकांत की एंट्री का बिल्ड-अप दर्शकों को एक्साइट करता है लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, कई अधूरे सब-प्लॉट्स सामने आते हैं, जो धीरे-धीरे जाकर सेट होते हैं। ये फिल्म की रफ्तार को कम करता है और कन्फ्यूज ज्यादा। कुली की सबसे बड़ी दिक्कत है बहुत सारे आइडियाज का ठूस-ठूस कर भरना। कहानी एक रिवेंज थ्रिलर की तरह शुरू होती है। दोस्त की मौत का बदला लेने वाला आदमी, लेकिन बीच में एक आम आदमी अचानक से क्राइम सिंडिकेट का पर्दाफाश करने में जुट जाता है। रजनीकांत ने फिल्म के लिए अपना सब कुछ दिया है, लेकिन फिल्म की कहानी उन्हें जस्टिस नहीं दे पायी। फोकस कभी उन पर, कभी सोबिन पर, कभी साइमन पर चला जाता है।
टेक्निकली कुली बेहतरीन है। गिरीश गंगाधरन की सिनेमेटोग्राफी हो या अनिरुद्ध रविचंदर का धमाकेदार म्यूजिक, हर टेक्निकल डिपार्टमेंट, चाहे वो साउंड हो, प्रोडक्शन डिजाइन या VFX, शानदार काम हुआ है।

एक्टिंग :

74 साल की उम्र में भी रजनीकांत का करिश्मा, हाजिर जवाबी और स्क्रीन प्रेजेंस जबरदस्त है। उनकी आंख का एक क्लोज-अप ही दर्शकों को जोश से भर देता है और फिल्म कुली ऐसे पलों पर खूब निर्भर करती है। हालांकि इस फिल्म के कई सीन्स लोकेश की आमतौर पर दिखने वाली अलग विजुअल स्टाइल से मेल नहीं खाते। फिल्म में उनके सिग्नेचर म्यूजिक के साथ फाइट सीक्वेंस और नॉन-लीनियर नैरेटिव मौजूद हैं। सोबिन को दिलचस्प किरदार दिया गया है, और सोबिन ने इसे ईमानदारी से निभाया है। नागार्जुन साइमन के रूप में स्टाइलिश लगे हैं, उनका करिश्माई अंदाज असर छोड़ता है। श्रुति हासन का किरदार प्रीति उनके हालिया फिल्मों में सबसे इंपैक्टफुल परफॉर्मेंस में से एक हो सकती है। कन्ना रवि और रचिता राम भी अपने छोटे लेकिन दमदार रोल में छाप छोड़ते हैं। कैमियो करती पूजा हेगड़े के साथ सोबिन का डांस परफॉर्मेंस शानदार है। मगर-किंतु-परंतु आमिर खान और उपेंद्र के कैमियो सुनने में भले रोमांचक लगें पर वो फिल्म में कोई खास असर नहीं डालते। मेकर्स अगर दोनों सितारों के कैमियो को सीक्रेट रखते तो वो सरप्राइज हो सकता था.. लेकिन इंपैक्टफुल तो बिल्कुल नहीं।

फाइनल वर्डिक्ट

कुल मिलाकर लोकेश कनगराज की कुली एक एंटरटेनिंग फिल्म है। हां लोकेश कनगराज ने इसे अपने LCU यूनिवर्स का हिस्सा नहीं बना पाए। एक्स्ट्राऑर्डिनरी नहीं, लेकिन एक गुड टाइम पास फिल्म है कुली।


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