Bhaiyya Ji Movie Review: (अश्वनी कुमार) 100वीं फिल्म.. और मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee )… कुछ अलग तो होना ही था…हुआ भी वैसा ही। ‘भैया जी’, मनोज वाजपेयी की सारी फिल्मोग्राफी से बिल्कुल जुदा फिल्म है। आज तक कई सारी फिल्मों में आपने इस बिहार के लाल को देखा है फिर चाहे वो बैंडिट क्वीन हो या भैयाजी। मनोज बायपेयी ने हर बार बनाए खांचे तोड़े हैं, लेकिन ये पहली बार है जब उन्हें किसी खांचे में फिट करने की बीड़ा, मनोज बापजेयी के सबसे बड़े फैन अपूर्व सिंह कार्की ने उठाया है। दरअसल अपूर्व ने वादे के मुताबिक भैया जी को साउथ के उस फ्रेम में फिट करने का रिस्क लिया है जिसमें एक्टर नहीं स्टार होते हैं।
उनकी उंगलियों के हिलने से विलेन उछलते हैं, उनकी लुंगी या गमछे के झटकने से बवंडर आता है। ज़ाहिर है, यहां लॉजिक नहीं… स्वैग चलता है। मनोज वाजपेयी के दीवानों के लिए ये नया तर्जुबा है। लेकिन इंडियन सिनेमा के सबसे सेंसिबल एक्टर को देसी सुपरस्टार के तौर पर देखना सच में रिफ्रेशिंग है।
भैया जी की कहानी स्वैग है
फिल्म के राइटर दीपक किंगरानी और डायरेक्टर अपूर्व कार्की ने भैया जी की कहानी नहीं बल्कि स्वैग बुना है। फिल्म में लॉजिक नहीं, डायलॉगबाजी को चुना है हां ये तो कंफर्म है कि ये सब कुछ सोच समझकर किया गया है। यूपी, बिहार में हर गांव-मोहल्ले में बदले की कई कहानियां सुनाई देती है, और ये कहानी भी बिल्कुल वैसी ही है, जो दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर शुरू होती है। 50 की उम्र के पास पहुंचते ही राम चरण उर्फ़ भैया जी, जिन्होने अपनी जवानी बाप से बग़ावत करने में निकाल दी। इलाके में दबंग रॉबिनहुड के एक्शन, सौतेली मां के प्यार, को दिखाया गया है।
कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
अब एक नजर फिल्म की कहानी पर डालें तो वो शुरू होती है, सौतेले भाई वेदांग से जो भैया जी की शादी के लिए दिल्ली से दोस्तों के साथ गांव आने के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा है। भाई बार-बार उसे फोन करता है और उसकी खबर रखता है जो सौतेले भाईयों के बीच के प्यार को दिखाता है। मगर रेलवे स्टेशन पर एक राजनेता टर्न माफिया का बेटा अभिमन्यु शराब और ताकत के नशे में उसका क़त्ल कर देता है। राम चरण, जिसने बाप की मौत के बाद, अपनी सौतेली मां से लिखकर ये वादा किया था, कि वो कभी हथियार नहीं उठाया… वो मां के कहने पर भाई की मौत का बदला लेने के लिए हथियार उठाता है। और फिर शुरू होता है – नरसंहार।
मसाला फिल्म है भैया जी
दीपिक किंगरानी ने फिल्म में मां के प्यार और घर में उनके दबदबे को बखूबी दिखाया है। वो एक ऐसी महिला है जो अपने फैसले लेने में सशक्त है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे यू.पी. – बिहार के छोटे गांव-शहरों में मुश्किलों और खुशियों में पूरे का पूरा समाज साथ होता है। डायरेक्टर अपूर्व कार्की ने भैया जी के बदले की इस कहानी में सीन्स गढ़े हैं… जो हाई वोल्टेज डायलॉगबाजी या फिर स्लो मोशन वॉक.. या फिर साउथ स्टाइल एक्शन वाले हैं।
कार्की के लिए खुद भी ये नया फॉर्मेट है, जो वो तमिल-तेलुगू सिनेमा के स्टाइल में मनोज वाजपेयी के साथ पेश कर रहे हैं। इस टेम्पलेट में अपूर्व ने स्क्रीनप्ले में लॉजिक नहीं, एक्शन को चुना है और वो साफ़ ज़ाहिर है। थोड़ा खटकता भी है, क्योंकि आप मनोज बाजपेयी की फिल्म को यूं एक्सेप्ट नहीं करते। लेकिन सच कहें तो ये सिंगल स्क्रीन मसाला फिल्म है। इसे देखिए… सीटी बजाइए… तालियां बजाओ… दिमाग़ लगाना हो, तो देसी सुपरस्टार की दूसरी फिल्में देखिए।
फिल्म में दिखा भरपूर एक्शन
अब बात फिल्म के एक्शन की करें तो एक्शन डायरेक्टर एस.विजयन ने मनोज वाजपेयी को एक्शन में खूब निचोड़ा है। अपूर्व कार्की ने फिल्म को बहुत ज्यादा नहीं फैलाया है, इसलिए एक हाईवे, एक ट्रेन डिपो, एक खंडहर और एक हवेली में एक्शन सीन्स को फिल्माया गया है। यहां साफ़ लगता है कि फिल्म को एक बजट फ्रेम में सेट किया गया है। खटकता है कि कोई बड़ा स्टूडियो, बड़ा फाइनेंसर मनोज वाजपेयी जैसे सुपरस्टार को बैक करता… तो लिमिटेड बजट में जो एक्शन, वीएफएक्स दिखाए गए हैं… वो क्या कमाल होते!
मनोज की एक्टिंग ने जीता दिल
एक्टर ने अपनी एक्टिंग से लोगों का दिल जीत लिया है। मनोज ने इस साउथ फॉर्मेट वाले देसी स्वैग वाली फिल्म को भी रियलिस्टिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक्शन उनके उपर जंचता है, 55 की उम्र में पहली बार ऐसे किरदार में भी मनोज अनफिट नहीं, रियलिस्टिक लगते है। भैया जी की मंगेतर के किरदार में जोया हुसैन बहुत पावरफुल लगी हैं। सुरेंद्र विक्की की स्क्रीन प्रेजेंस कमाल की है, मनोज बाजपेयी के साथ उनके सीन्स सीटीमार हैं। बिगड़े नवाब अभिमन्यु के कैरेक्टर में जतिन का काम भी अच्छा है। कहानी पर दिमाग लगाने को ये फिल्म कहती भी नहीं है। एक्शन और डायलॉगबाजी का मज़ा लीजिए… मसाला फिल्म में भरपूर है।
भैया जी को 3 स्टार।