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देवानंद की खातिर सुरैया ने कभी शादी नहीं की।

दिल्ली ( 15 जून ) आज है हसीन और  खूबसूरत सुरैया का जन्मदिन।  की अदाओं पर अपना दिल हार बैठे  थे देवानंद । साल 1947 में देव साहब को बॉलीवुड में मिली पहली फिल्म और पहली मुहब्बत भी। फिल्म जिद्दी की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात सुरैया से हुई। सुरैया इस फिल्म में […]

Amar Singh Chamkila : अमर सिंह चमकीला की बॉयोपिक के बाद उनकी लाइफ खबरों में बनी रहती है। आज हम उनके लाइफ के बारे में बताएंगे।
दिल्ली ( 15 जून ) आज है हसीन और  खूबसूरत सुरैया का जन्मदिन।  की अदाओं पर अपना दिल हार बैठे  थे देवानंद । साल 1947 में देव साहब को बॉलीवुड में मिली पहली फिल्म और पहली मुहब्बत भी। फिल्म जिद्दी की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात सुरैया से हुई। सुरैया इस फिल्म में प्ले बैक सिंगर थी.य़ सुरैया उस दौर की मशहूर सिंगर और एक्ट्रेस थी। इंपाला कार में सवार होकर सुरैया स्टूडियोज में आती थी और उनका जलवा देखने लायक होता था देव आनंद तो बस दूर से ही सुरैया को देखते रह जाते थे। फिल्म जीत के सेट पर देव साहब के मन में मोहब्बत परवान चढ़वे लगी थी। लेकिन मुश्किल ये थी कि इतनी बड़ी स्टार से अपने दिल की बात कहें तो कैसे.देवानंद अपने दिल की बात अब तक सुरैया से कह नहीं पाए थे। तो वहीं सुरैया के दिल पर भी हैंडसम देवआनंद धीरे धीरे ही सही दस्तक दे रहे थे। 1948 में फिल्म विद्या की शूटिंग के दौरान एक हादसे ने देव आनंद और सुरैया को करीब ला दिया। फिल्म विद्य़ा का एक गाना बोट पर फिल्माया जा रहा था...शूटिंग के दौरान नाव पलट गई।  देव आनंद ने अपनी जान की बाजी लगाकर सुरैया को डूबने से बचा लिया। देवानंद ने एक असली हीरो की तरह सुरैया की जान बचाई थी और अब सुरैया उनपर जान देने लगी। हादसे के बाद सुरैया ने कहा- देव सिर्फ परदे के ही हीरो नहीं, असल जिंदगी में भी दिलेर है।   दिनों दिन देव आनंद और सुरैया का प्यार और गहरा होता चला गया । लेकिन इस मोहब्बत के दुश्मन कई थे। सुरैया की नानी देवानंद से अपनी नातिन की नजदीकी पर गौर कर रही थी एक गैर मजहब के शख्स से सुरैया का बढ़ता मेल मिलाप उन्हें पसंद नहीं था। लेकिन देवानंद और सुरैया बगैर किसी परवाह के मोहब्बत के रास्ते पर आगे बढ़ते रहे। एक तरफ इस जोड़ी को परदे पर कामयाबी मिल रही थी.....तो दूसरी ओर मोहब्बत का सफर सुहाना हो रहा था। साल 1948 में विद्या और 1949 में जीत की रिलीज के साथ देव आनंद और सुरैया की जोड़ी भी सुपरहिट हो गई. दोनों को सबसे पॉपुलर स्क्रीन कपल के रूप में देखा जाने लगा. तो असल जिंदगी में भी दोनों के बीच मुहब्बत का आलम कुछ ऐसा ही था. सुरैया को फूल बेहद अच्छे लगते थे. देव साहब उनसे हर मुलाकात पर रंग बिरंगे फूलों का गुलदस्ता देते. जब दोनों सेट पर नहीं होते, तो एक दूसरे को हर रोज खत लिखते। 1949 में देवानंद ने अपनी फिल्म कंपनी नवकेतन बनाई....नवकेतन की पहली फिल्म अफसर में देवानंद और सुरैया ने फिर साथ काम किया । फिल्म हिट रही..और फिर इस जोड़ी ने शादी का इरादा किया। चंद महीनों बाद दोनों ने सगाई भी कर ली। देवानंद ने सुरैया को अपने नाम की अंगुठी पहनाई थी। इस प्यार से देव आनंद के परिवार को तो कोई ऐतराज नहीं था. लेकिन बॉलीवुड में कई लोगों को महजब से परे ये मोहब्बत रास नहीं आ रही थी। सुरैया के परिवार वाले तो इस रिश्ते के खिलाफ थे ही....बॉलीवुड के बड़े नाम भी इस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचते नहीं देखना चाहते थे। सुरैया देवानंद से शादी करना चाहती थी....लेकिन घरवालों का विरोध देख वो मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी ।   सुरैया के दिल की बात बस उनकी मां समझ पा रही थी। सुरैया को उनकी मां हौंसला दिया करती थी । सुरैया की मां देवानंद के साथ अच्छी तरह पेश आती थी लेकिन उनकी नानी तो देव साहब की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करती थी। सुरैया की नानी नहीं चाहती थीं उनकी पोती का रिश्ता एक हिंदू लड़के के साथ परवान चढ़े. एक बार देवानंद सुरैया से मिलने उनके घर गए तो नानी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिय़ा और सुरैया नानी की हुक्म के आगे सिर झुकाएं खड़ी रही। देवानंद की आटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ के लाइफ के मुताबिक मुहब्बत में खिंची मजहब की दीवार तोड़ने पर देव आनंद के साथ साथ सुरैया भी आमादा थीं। देवानंद बेहद लिब्ररल किस्म के इंसान थे....लेकिन सुरैया पर नानी और घर के बाकी रिश्तेदारों का इतना असर था कि वो खामोश रहने लगी सुरैया लेकिन उनकी तहजीब ने बगावत की इजाजत नहीं दी। उस दौर में देवानंद और सुरैया का मिलना तक मुश्किल हो गया। शूटिंग के वक्त नानी का इतना पहला होता कि सेट पर देवानंद और सुरैया बात तक नहीं कर पाते थे। अगर कोई रोमांटिक सीन फिल्माना हो तो सुरैया की नानी उसमें भी अड़ंगा लगाती थी।नानी की लाख सख्ती के बाद भी सुरैया को लगता था कि देव के साथ उनका प्यार कामयाब होगा...उनके रिश्ते को शादी का नाम मिलेगा। लेकिन नानी अपनी जिद्द पर अड़ी थी ....एक दिन नानी ने साफ कह दिया कि अगर सुरैया ने देवानंद से शादी की तो वो जान दें देगी। ऐसे में सुरैया ने देवानंद से मिलना छोड़ दिया। देव साहब ने भी सुरैया से कुछ दिनों की दूरी बना ली। देवआनंद और सुरैया की मुलाकात अब बस फिल्मों के सेट तक सिमट कर रह गई। 1951 के बाद तो दोनों का मिलना भी मुश्किल हो गया। इसी साल दोनों की आखिरी फिल्म सनम की शूटिंग पुरी हो गई और फिर इनके पास मिलने का कोई बहाना भी नहीं रहा। देवानंद सुरैया से मिलना चाहते थे , लेकिन वो कभी फोन पर आती ही नहीं थी और ये बात देव साहब को खटकने लगी थी। दोनों ने 7 फिल्मों में साथ काम किया था। इन चार सालों में रिश्ता इतना मजबूत हो चुका था कि देवानंद सुरैया से दूर होने के ख्याल से भी घबराने लगे थे। कई दिनों तक जब देवानंद की सुरैया से बात नहीं हुई तो उन्होंने अपने एक दोस्त को सुरैया के घर भेजा। वैसे भी देवानंद को बॉलीवुड के कई दोस्तों ने सुरैया से मुलाकात करवाने में काफी मदद की थी और इनमें से एक कामिनी कौशल और दूर्गा खोटे भी थी। देव आनंद के दोस्त जब सुरैया से मिलने पहुंचे तो उन्होंने साफ कह दिया कि मैं देवानंद से शादी नहीं कर सकती। ये बात जब जब देव आनंद को पता चली, तो वो देर तक रोते रहे.... सुरैया ने ना कह दिया था, लेकिन अब भी देव आनंद को यकीन था कि मजहब की दीवार के आगे मोहब्बत की जीत होगी। सुरैया के साथ अपनी पुरी जिंदगी बिताने का सपना देख चुके थे देवानंद। बस एक बार सुरैया से मिलकर वो अपने दिल की बात करना चाहते थे। आखिरी बार सुरैया को मोहब्बत की राह पर चलने को कहना चाहते थे। देवानंद की आटोबायोग्राफी के मुताबिक ...जब देव साहब ने आखिरी बार सुरैया आखिरी बार मिलने के लिए फोन किया तो संयोग से फोन सुरैया की मां ने उठाया. उन्होंने देव आनंद को मिलने की इजाजत दे दी. वक्त तय हुआ रात के 11.30 बजे. देव साहब अपने दोस्त और बंबई पुलिस में इस्पेक्टर ताराचंद के साथ सुरैया के घर गए. मिलने की जगह तय हुई थी, घर की छत, जहां सुरैया पहले से ही मौजूद थीं. सुरैया दौड़कर देव साहब के सीने से लग गईं और रोने लगीं. दोनों के आधे घंटे तक रोते रहे । सुरैया से देव साहब की वो आखिरी मुलाकात थी। देव साहब पलट कर फिर कभी सुरैय़ा कि गलियों में नहीं गए ....दोनो ने हमेशा के लिए एक दूसरे को भूल जाने का फैसला किया। सुरैया ने अपनी सगाई की अंगूठी वहीं फेंक दी, जहां देव आनंद ने उनकी जान बचाई थी. हालांकि बाद के दिनों में सुरैया को अपने फैसले पर पछतावा हुआ, वो वापस देव साहब की जिंदगी में आना चाहती थी लेकिन तब तक बहुत देर हो गई। देवानंद जिंदगी की राह में आगे बढ़ गए.....और सुरैया ने उनकी याद में ता उम्र बिता दी। सालों बाद एक पार्टी में देव साहब की सुरैया से मुलाकात हुई।  

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