TrendingEntertainment NewsBollywood NewsLatest NewsTrending News

---Advertisement---

पिता की याद में जब शाहरुख ने किया ट्रक ड्राइवर का किरदार

दिल्ली ( 24 जून ) 15 साल के थे शाहरुख जब पिता ताज मोहम्मद खान की मौत हुई थी. वो दिन जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे शाहरुख को तोड़ देने वाला था. लेकिन उस दिन शाहरुख ने अपने आंसू आंखो में ही रोक लिए. आंसू बहाना जैसे पिता की दी तालीम की तौहीन थी. […]

Amar Singh Chamkila : अमर सिंह चमकीला की बॉयोपिक के बाद उनकी लाइफ खबरों में बनी रहती है। आज हम उनके लाइफ के बारे में बताएंगे।
दिल्ली ( 24 जून ) 15 साल के थे शाहरुख जब पिता ताज मोहम्मद खान की मौत हुई थी. वो दिन जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे शाहरुख को तोड़ देने वाला था. लेकिन उस दिन शाहरुख ने अपने आंसू आंखो में ही रोक लिए. आंसू बहाना जैसे पिता की दी तालीम की तौहीन थी. ताज मोहम्मद खान को कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी थी, लेकिन शाहरुख ने देखा था उस बीमारी से आखिरी सांस तक लड़ने का हौसला. अपने बेटे को ये बताने की हिम्म्त कि मेरी मौत तय है, मगर इसके बाद तुम खुद को कमजोर मत पड़ने देना. इसी पठानी तहजीब के साथ शाहरुख की परवरिश हुई थी. पढ़ाई लिखाई के साथ खेल-कूद में दिलचस्पी शाहरुख को अपने पिता की सोहबत में ही परवान चढ़ी. तब माली तौर पर खान परिवार की हालत अच्छी नहीं थी । दिल्ली के सेंट कोलंबिया स्कूल में पढ़े थे शाहरुख. तब उनके पिता ट्रांसपोर्ट बिजनेस से जुड़े थे. मुस्ताक शेख की लिखी किताब 'शाहरुख कैन' में उन दिनों को याद करते हुए शाहरुख कहते हैं तब स्कूल के दोस्त उन्हें ट्रक ड्राइवर का बेटा कहकर मजाक उड़ाते थे. लेकिन पिता ताज मोहम्मद उन्हें स्कूल में बेहतर कर खुद को साबित करने का हौसला देते. शाहरुख ने किया भी वैसा ही. एक बार सेंट कोलंबिया स्कूल के बेस्ट स्टूडेंट चुने गए. उस कामयाबी पर चमकती अब्बा की आंखे आज भी नहीं भूले शाहरुख. पिता हालांकि ट्रांस पोर्ट के बिजनेस में नाकाम साबित हुए, लेकिन शाहरुख तो स्टार बनकर भी नहीं भूले जद्दोजहद के वो दिन. 2003 में आई फिल्म चलते-चलते का हीरो राज ताज साहब को श्रजैसे द्धांजलि दे रहा था. चलते चलते में इत्तेफाक सिर्फ इतना नहीं, कि हीरो राज एक ट्रांसपोर्ट कंपनी का मालिक है, बल्कि मुहब्बत की कहानी कुछ वैसी है, जैसे शाहरुख की अम्मी और अब्बा की वो पहली मुलाकात. ये किस्सा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. शाहरुख के पिता दोस्तों के साथ इंडिया गेट पर तफरी के लिए गए थे. तभी एक तेज रफ्तार कार बेरीकेड से आकर टकराई और चारो तरफ चीख पुकार मच गई. उस कार में सवार थी 16 साल की फातिमा जो बुरी तरह जख्मी हो चुकी थी. दोस्तों की मदद से पिता ताज मोहम्द उन्हें हॉस्पिटल ले गए. फातिमा को फौरन खून चढ़ाने की जरूरत थी. डॉक्टरों के कहने पर ताज मोहम्मद खून चढ़ाने को तैयार हो गए. उस दिन दो बिस्तर पर पड़े अजनबियों के बीच दिल के रिश्ते जुड़ गए. अपनी मां और पिता की मुहब्बत और शादी की कहानी सुनते-सुनते बचपन में सिहर जाते थे शाहरुख. उस हादसे के बाद शाहरुख की मां फातिमा की यादास्त चली गई थी. उन्हें न ये याद था कि किस कॉलेज में पढ़ाई के लिए बैंगलौर से दिल्ली आई थीं और ना ये कि उनकी सगाई मशहूर क्रिकेटर अब्बास अली बेग से हो चुकी है. उस हालत में फातिमा की देखभाल का जिम्मा पिता ने ताज मोहम्मद को सौंपा था. ताज साहब फातिमा के साथ कॉलेज जाते, उन्हें होस्टल छोड़ते. फातिमा से मुहब्बत इसी दौरान हुई थी. फातिमा के पिता को इस पर ऐतराज नहीं था. मगर चाहते थे ताज फातिमा से नहीं, उनकी छोटी बेटी से शादी करें. लेकिन ताज मोहम्मद ने इशारा फातिमा की तरफ किया. फातिमा का परिवार राजी हो गया. आखिर उनकी बेटी को नई जिंदगी ताज ने ही तो दी थी। मोहब्बत के साथ शाहरुख को रोमांचिक करता था अपने पिता का संघर्ष और अपने दम पर अपनी पहचान बनाने का हौसला. इसका किस्सा शुरु होता है पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार से, जहां आज भी शाहरुख की पुश्तैनी हवेली खड़ी है. इसी किस्सा ख्वानी बाजार की एक गली में राजकपूर का पुश्तैनी घर है, तो दूसरे मोहल्ले में दिलीप साहब की खानदानी हवेली. शाहरुख के दादा का भरा-पूरा बिजनेस था. लेकिन पिता ताज मोहम्मद का मन बिजनेस में नहीं लगा. वो तो वकील बनना चाहते थे. जब घर वाले आगे की पढ़ाई के लिए राजी नहीं हुए, तो एक दिन घर छोड़ दिया. पेशावर से कई दिनों तक पैदल चलते हुए ताज मोहम्मद दिल्ली पहुंचे. जैसे उस गोरे चिट्टे और लंबे-तगड़े पठान की किस्मत दिल्ली की सरजमीन में लिखी थी. 8. शाहरुख के पिता जिस दौर में दिल्ली आए थे, वो आजादी के आंदोलन में उफान का दौर था. ताज आए थे वकालत की पढ़ाई करने. एक अंग्रेज प्रिंसिपल की गुजारिश पर उन्हें गर्ल्स लॉ स्कूल में एडमिशन मिला था और उसी कैंपस में होस्टल का एक कमरा भी. लेकिन ताज का ध्यान तो आंदोलन के रुख पर रहता था. 1930 के बाद खान अब्दुल गफ्फार खान के संगठन खुदाई खिदमतगार में शामिल हो गए. ताज मोहम्मद उन दिनों संगठन के सबसे नौजवान क्रांतिकारियों में गिने जाते थे. अपने पिता से सुनी उस दौर की कहानियां शाहरुख को आज भी रोमांचित करती है. वो दिन भी जब देश के बंटवारे के वक्त ताज मोहम्मद ने पेशावर को छोड़ दिल्ली को अपना शहर चुना था. वो पिता शाहरुख की जिंदगी के सबसे बड़े हीरो थे. 02 नवंबर 1965 को शाहरुख की पैदाईश तक पिता ताज मोहम्मद वकालत को भी अलविदा कह चुके थे. तब दिल्ली में उनका रसूख कम नहीं था. आजादी के आंदोलन में भागीदारी की वजह से कोई बड़ा सियासी ओहदा हासिल कर सकते थे. नेहरू गांधी परिवार से उनकी नजदीकिया भी थी. लेकिन अपने उसूलों के मालिक ताज मोहम्मद तो 1952 के आम चुनावों में अबुल कलाम आजाद जैसे नेता के खिलाफ खड़े हो गए. लेकिन मेवात सीट से उस चुनाव हारने के बाद सियासत से तौबा कर लिया था. 1960 में बेटी लाला रुख और 1965 में बेटे शाहरुख की पैदाईश के बाद जिम्मेदारियां बढ़ी तो घर चलाने के लिए ट्रांसपोर्ट बिजनेस शुरु कर दिया. लेकिन शाहरुख के होश संभालते-संभालते वो ठप पड़ गया. तब चाय की दुकान से गुजारा चलता था खान परिवार का. शाहरुख को आज भी याद है दिल्ली के रशियन कल्चर सेंटर के सामने पिता की वो चाय की दुकान. तब 8 साल के शाहरुख भी अक्सर उस दुकान पर जाया करते थे. दुकान चली तो पिता ने चाय के साथ छोले भटूरे भी बेचने शुरु कर दिए. इसके साथ कुछ दिन तक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में कैंटीन भी चलाई. तब मां फातिमा समाज सेवा से जुड़े एक संगठन में सोशल मजिस्ट्टेट थी. उन्हीं का आइडिया था छोले भटूरे की दूकान को रेस्टरेंट बनाने का. ये आइडिया भी कामयाब रहा. खान-पान का बिजनेस चला, तो परिवार की माली हालत भी बेहतर हुई लेकिन पिता के बीमार पड़ते ही गुरबत के दिन फिर लौट आए. 1980 में ताज मोहम्मद की मौत के बाद तो जैसे लगा था खान परिवार पूरी तरह तबाह हो जाएगा.

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.