Rajesh Khanna Death Anniversary: जब राजेश खन्ना डॉक्टर से कहने लगे ‘मेरी जिंदगी का विजा कब एक्सपायर हो रहा है’ ?
Rajesh Khanna Death Anniversary
Rajesh Khanna Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की आज डेथ एनिवर्सरी है। 18 जुलाई 2012 को मुंबई में अंतिम सांसे लेने वाले राजेश खन्ना की जिंदगी फिल्मों की तरह ही रंगीन रही है। आइए उनकी डेथ एनिवर्सरी पर डालते हैं उनकी जिंदगी पर एक नजर।
इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार (Rajesh Khanna Death Anniversary)
बॉलीवुड में ‘काका’ के नाम से मशहूर राजेश खन्ना को हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार कहा जाता है। आज ही के दिन राजेश खन्ना ने दुनिया को अलविदा कहा था। राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में हुआ। दिलचस्प बात यह है कि बॉलीवुड में 17 ब्लॉकबस्टर फिल्में देने वाले वह पहले सुपरस्टार थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक राजेश खन्ना ने 1969 से 1971 के बीच लगातार 17 ब्लॉकबस्टर फिल्में दी, जिसके बाद वे हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहलाए।
करीबी भूपेन रसीन ने खोले कई राज
अगर राजेश खन्ना के स्टारडम की बात करें तो शक्ति सामंत की आराधना (1969) से उनके स्टारडम की शुरुआत हुई। उन्होंने लगातार 17 ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं। राजेश खन्ना ने अपने दौर में ऐसा स्टारडम देखा है, जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। उनके स्टारडम से लेकर उनकी पर्सनल लाइफ तक, उनके करीबी रहे भूपेश रसीन ने बहुत करीब से देखी है। आइए उनकी ही जुबानी जानते हैं काका की पर्सनल लाइफ की कुछ दिलचस्प बातें।
भूपेश रसीन और राजेश खन्ना का साथ लगभग 22 साल का रहा था। भूपेश काका को अपने बड़े भाई की तरह मानते थे। भूपेश इस बात का भी दावा करते हैं कि हर कोई काका को अपने हिस्से का जानता है। मैं एकमात्र ऐसा इंसान हूं, जो उनके हर हिस्से से वाकिफ रहा हूं। उनका वो हिस्सा भी जानता हूं, जो उन्होंने बाकियों से छिपा रखा था।
मां के कमरे में लेना चाहते थे आखिरी सांसे
खास बातचीत में भूपेश बताते हैं कि 'मैं सबसे पहले उनकी जिंदगी के आखिरी उस साल का जिक्र करना चाहता हूं। ये आखिर का साल उन्होंने बिलकुल आनंद की तरह ही गुजारा। लीलावती में उनका इलाज चल रहा था। डॉक्टर को बहुत ही मजाकिया अंदाज में कहने लगे कि डॉक मेरी जिंदगी का विजा कब एक्सपायर हो रहा है? वे अपनी जिंदगी का आखिरी वक्त अपने घर में बिताना चाहते थे। उन्होंने डाक्टर से कहा कि मैं अपनी मां के कमरे पर अपने आखिर के पल गुजारना चाहता हूं। भूपेश ने बताया कि इतने बड़े बंगले में ग्राउंड फ्लोर पर दो रूम थे, ऊपर तीन बेडरूम है। वो अपनी मां के कमरे में ही रहा करते थे। वो अक्सर मुझसे कहा करते थे कि यहां मेरा क्रिमेशन कर देना, यहां मेरा चौथा होना चाहिए। उन्होंने अपनी मौत को स्वीकार कर लिया था। ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं थी। हालांकि इस बीच कभी उन्हें कमजोर पड़ता नहीं देखा। वो मुस्कुराते हुए ही लोगों से मिलते रहते थे।
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