Vikram Vedha Review: ‘विक्रम वेधा’ दमदार या बेकार, सिनेमाघरों में जाने से पहले जरूर पढ़ें रिव्यू
Vikram Vedha Review: 'विक्रम वेधा' दमदार या बेकार, सिनेमाघरों में जाने से पहले जरूर पढ़ें रिव्यू
Vikram Vedha Review, Ashwani Kumar: साउथ की उस ब्लॉकबस्टर फिल्म को दोबारा हिंदी में बनाना, जिसे सबने यूट्यूब पर, एमएक्स प्लेयर पर भर-भरकर देखा है। ज़ाहिर है बेताबी है, बेचैनी है और बेकरारी है.... कि आख़िर ऋतिक रोशन और सैफ अली खान स्टारर फिल्म विक्रम वेधा (Vikram Vedha) के हिंदी वर्ज़न का फैसला क्या होने वाला है?
अब विक्रम वेधा 2, नहीं-नहीं, सीक्वेल नहीं सेम नाम वाले रीमेक, जिसमें 25 साल से बॉलीवुड में कामयाबी का परचम लहरा रहे ऋतिक रौशन हैं, एक्टिंग की भट्टी में तप कर निकले सैफ़ अली ख़ान हैं, साइड से रोल में ओटीटी क्वीन कही जाने वाली राधिका आप्टे हैं.... फिल्मिस्तान और फैमिली मैन से शोहरत पा चुके शारिब हाशमी हैं। और डायरेक्टर भी वही हैं, जिन्होने विक्रम वेधा जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई है, सूज़ल जैसी शानदार वेब सीरीज़ बनाई है। यानि मसाले अच्छे हैं, लेकिन रेसिपी अच्छी है या नहीं.... ये फैसला ऑडियंस करेगी। हां, हम आपको ये बताएंगे कि इसका स्वाद कैसा है, आप खा सकते हैं या नहीं ?
सबसे पहले कहानी पर आइए, तो कहानी वही है... या यूं कहिए कि 95 परसेंट सेम कहानी, ऑलमोस्ट सेम दूसरे कैरेक्टर, और हिंदी डब्ड वर्ज़न वाले डायलॉग्स तक सेम टू सेम हैं, बस उसे यूपी के रंग में, ढंग में और बोली मे ढालने की कोशिश की गई है। विक्रम, एक पुलिस ऑफिसर, जो उस स्पेशल टीम का हिस्सा है जो ख़तरनाकर गैंगस्टर वेधा को पकड़ने के लिए बनी है। वेधा, वो है जिसका दबदबा कानपूर से लेकर लखनऊ तक है और 15 मर्डर कर चुका है। वेधा के हाइड आउट को लेकर विक्रम की टीम को एक स्पेशल टिप मिलती है। विक्रम वहां पहुंचता है, लेकिन वेधा की जगह उसके गैंग के लोगों का एकाउंटर कर देता है। और इसके बाद वेधा, खुद पुलिस हेडक्वॉर्टर जाकर सरेंडर करता है और विक्रम को सुनाना शुरु करता है अपनी ज़िंदगी की कहानियां। हर कहानी के बाद विक्रम के सामने उस कहानी से जुड़ी एक ऐसी पहेली होती है, जिसे सुलझाते ही वेधा गायब हो जाता है और फिर शुरु होता है, चूहे-बिल्ली का खेल।
दरअसल विक्रम वेधा की कहानी, दादी-नानी की विक्रम-बेताल वाली कहानियों के हिसाब से गुंथी गई है। और एक अच्छी कहानी की ख़ासियत ये होती है, कि वो कभी पुरानी नहीं होती। जैसे हम सबने खरगोश और कछुए की कहानी सुनी है और ये कहानी पीढ़ियों से चलती चली आ रही है, कभी पुरानी नहीं हुई। डायरेक्टर गायत्री-पुष्कर ने विक्रम वेधा की कहानी को इसी तरीके से सुनाना शुरु किया है, जिस पर उन्हे भरोसा है और ये भरोसा उन्होने तोड़ा भी नहीं है। मुश्किल है कि इस कहानी को हिंदी में बनाने के लिए चुने गए किरदार। इस बार विक्रम-वेधा की कहानी कानपुर और लखनऊ पहुंच गई है। इन किरदारों को यूपी वाले अंदाज़ में ढालने की ज़िम्मेदारी लिरिसिस्ट और डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर और बीए फिदा के पास थी। डायलॉग्स तो उन्होने सीटी-मार लिखे, लेकिन कैरेक्टर को जो बोली पकड़ाई, वो पूरी तरह से चूक गई। दरअसल ऋतिक, सैफ़ और फिल्म के दूसरे किरदारों को कानपुर और लखनऊ का फील देने के लिए, जिस बोली का अविष्कार किया गया, वो ना तो हिंदी है, ना अवधी है और ना ही भोजपुरी.... वो एक एलियन लैंग्वेज है, जो वेस्टर्न यूपी, ईस्टर्न यूपी और बिहार तक कहीं नहीं बोली जाती। तो नतीजा ये है कि शानदार कहानी, और मेहनत वाले डायलॉग्स के बाद भी ये किरदार कहीं से यूपी से कनेक्ट ही नहीं होते।
सुपरस्टार ऋतिक और सैफ़ की धाकड़ जोड़ी, ज़बरदस्त स्वैग, बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी, बेहद दमदार एक्शन सीक्वेंस इस फिल्म में सब कुछ है। वो कहते हैं ना कि पैसा पानी की तरह बहाया गया है, वो यहां लागू होता है। लेकिन शानदार फिल्में बनाने वाले गायत्री-पुष्कर, जो साउथ के शानदार फिल्म मेकर हैं, वो यहां बोली की खोली में ढोल नहीं बजा पाए। क्योंकि उन्हें भी समझ नहीं आया, कि दरअसल ये गलती इतनी भारी पड़ेगी। वैसे गायत्री-पुष्कर और पैन इंडिया फिल्म बनाने के ख़्वाहिशमंद साउथ इंडियन फिल्म मेकर्स को समझना होगा, कि जैसे साउथ इंडिया में रहने वाला हर शख़्स लुंगी नहीं पहनता, वैसे ही नार्थ इंडिया और ख़ास तौर पर यूपी-बिहार में रहने वाला हर शख़्स गमछा नहीं पहनता। ये जनर्लाइजेशन, फिल्म-मेकर्स को बहुत भारी पड़ने वाला है।
फिल्म में एक और बड़ी गलती है। दरअसल ऋतिक और सैफ़ जैसे बड़े स्टार्स को लेकर यूपी-बिहार के बैकग्राउंड पर फिल्म बनाने वाले फिल्म मेकर्स को ये मुश्किल झेलनी ही पड़ेगी, कि छोटे शहरों में बड़े स्टार्स शूट नहीं करना चाहते। इसका ख़ामियाजा ये है कि गायत्री पुष्कर ने बिना इन स्टार्स के कानपुर को ड्रोन शॉट्स लिए, जिससे कानपुर इस्टैब्लिश हो सके और बाकी शूटिंग यूएई में सेट बनाकर कर ली। लखनऊ में भी सैफ़ अली ख़ान के बाइक चलाने और मुजरिम को चेज़ करने के कुल जमा सात सीन्स हैं, जो पूरे लखनऊ के सबसे आइकॉनिक जगहों पर शूट किए गए हैं। बाकि जब फिल्म गलियों में जाती है, तो नकली सेट साफ़ दिखने लगते हैं। खासतौर पर यूपी के लोगों को ये बात बहुत खलने वाली है।
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हां, देश के बाकी हिस्से के लोगों को ना इस बोली से कुछ लेना-देना है, ना उन्हे कानपुर और लखनऊ की लोकेशन के बारे में ज़्यादा समझ है, तो उनके लिए ये बात ऋतिक-सैफ़ और उनके स्वैग से ज़्यादा ज़रूरी नहीं है।
अब परफॉरमेंस पर आइए, तो बड़ी-बड़ी दाढ़ी-मुछों में ऋतिक रौशन ने इस बार वेधा बनकर वो स्वैग दिखाया है कि आप उनके कैरेक्टर में खो जाने वाले हैं। ऋतिक का ये स्वैग कई साल के बाद देखने को मिला है। विक्रम बने सैफ़ अली खान कई जगहों पर ऋतिक पर भी भारी पड़े हैं। राधिका आप्टे और सैफ़ की केमिस्टी बहुत शानदार है, थोड़ा उन्हे और स्पेस मिलता, तो मज़ा आ जाता। शारिब हाशमी एक्टर अच्छे हैं, बस यूपी की बोली के चलते, उनकी गोली भी इस बार गलत निशाने पर लग गई है। वेधा के भाई शतक बने रोहित शर्राफ का लुक तो अच्छा है, लेकिन उन्हे अपने एक्सप्रेशन्स पर और मेहनत करनी पड़ेगी। वैसे चंदा बनी योगिता बिहानी के भी एक्सप्रेशन्स इस बार मिस फायर रहे हैं।
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ऋतिक के फैन्स के लिए विक्रम-वेधा एक ट्रीट है। और फिल्म का सबसे बड़ा हाईलाइट सैफ़-ऋतिक की केमिस्ट्री है। जाइए देखिए, यूपी से नहीं है तो मजा आएगा।
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