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Vanvaas Movie Review: 25 साल पीछे ले जाएगी नाना पाटेकर की मूवी, देखें कैसा है ये ‘वनवास’

Vanvaas Movie Review: नाना पाटेकर और उत्कर्ष शर्मा की वनवास मूवी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। आइए आपको भी बताते हैं अनिल शर्मा की ये मूवी कैसी है?

Vanvaas Movie Review (Ashwini Kumar): 'गदर 2' के बाद अनिल शर्मा एक बार फिर से एक पारिवारिक फिल्म 'वनवास' लेकर आए हैं। अनिल शर्मा की इस फिल्म में उनके बेटे उत्कर्ष शर्मा के साथ-साथ सिमरत कौर और नाना पाटेकर भी मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं। आइए आपको भी बताते हैं आखिर अनिल शर्मा की ये फिल्म वनवास कैसी है? इसके लिए पढ़िए E24 का रिव्यू...

कहानी  

कहानी की शुरुआत शिमला के वासी दीपक त्यागी (नाना पाटेकर) के घर से होती है, जहां वो और उनके तीन बेटे अपनी बीवियों के साथ उनका जन्मदिन मनाने के लिए उन्हें शिमला से वाराणसी ले जाते हैं। दीपक अपनी बीवी के याद में अपना घर अब ट्रस्ट को देना चाहता है, जिसमें उसके बेटे बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते। दीपक डिमेंशिया (dementia) की बीमारी की वजह से वो अपनी बहुओं को भी कभी-कभी भूल जाते है। उधर काशी में महाआरती के बाद उनके बेटे उनका सारा आइडेंटिटी कार्ड और दवाईयां ले कर उन्हें वहीं छोड़ कर शिमला वापस आ जाते हैं, और घर आकर सबको बताते हैं कि उनके पिता की मौत गंगा में डूब कर हो गई। वाराणसी में दीपक की मुलाकात वीरू (उत्कर्ष शर्मा), मीना (सिमरत कौर ) और पप्पू (राजपाल यादव) से होती है। पेशे से वीरू बनारस के घाट पर टूरिस्टों से चोरी करता है वहीं पप्पू उसका साथ देता है। वीरू को मीना से प्यार है और मीना की मौसी (अश्वनी कालसेकर) वीरू को चैलेंज देती है कि अगर वो दीपक त्यागी को उसके घर पहुंचा देगा तभी वो मीना का हाथ उसके हाथ में देगी। इधर दवाइयों के ना होने से दीपक त्यागी सब कुछ भूल चुके होते हैं। तो अब ये शर्त आखिर वीरू पूरा करता है या नहीं ये जानने के लिए आपको अपने नजदीकी सिनेमाघरों का रुख करना होगा। यह भी पढ़ें: 1500 करोड़ कमाने के बाद भी Pushpa 2 नहीं तोड़ पाई इस फिल्म का रिकॉर्ड

राइटिंग- डायरेक्शन और म्यूजिक

इस फिल्म को खुद अनिल शर्मा ने लिखा और डायरेक्ट किया है। साथ ही म्यूजिक की कमान म्यूजिक डायरेक्टर मिथुन ने थामी है। राइटिंग और डायरेक्शन के मामले में अनिल शर्मा ने, जिन्होंने पहले हाफ में फिल्म को थोड़ा इंटरेस्टिंग रखा फिर इंटरवल के बाद फिल्म बोर करती चली गई। नाना पाटेकर का हर बात पर मोनोलॉग, बातों का मीनिंग या कविताएं बोलकर बातें करना खुद फिल्म के लीड एक्टर को ऑनस्क्रीन भी बोर करता है, और ऑडियंस का भी थियेटर में बैठे हुए यही हाल होता है। अनिल शर्मा ने भले ही 2024 में पैरेंट्स के सम्मान में ये फिल्म बनाई पर फिल्म को आज के दौर के तरीके से डायरेक्ट नहीं कर पाए। फिल्म को देखकर लगेगा कि ये 25 साल पहले की फिल्म को आज थियेटर्स में रिलीज कर दिया गया है। इंटरवल के बाद फिल्म बहुत खिंची-खिंची सी है, वहीं फिल्म में कहीं-कहीं बाप-बेटों की कहानी से हटकर, जब पति-पत्नी के रिश्तों की फ्लैशबैक में जाने लगती है, तो मामला और बिगड़ता है। फिल्म के गाने और बैकग्राउंड स्कोर ने कहानी को थोड़ा सहारा दिया है।

एक्टिंग

इस फिल्म में तीन लीड एक्टर्स हैं और साथ में कैरेक्टर एक्टर्स की पूरी फौज है। उत्कर्ष और सिमरन ने दूसरी फिल्म के हिसाब से पूरी कोशिश की है, लेकिन उत्तर प्रदेश का लहजा, बोली और तौर-तरीके को प्रेजेंट करने के काबिल नहीं बन पाए हैं, और वो स्क्रीन पर ड्रामा ज्यादा लगने लगता है। दूसरी ओर नाना पाटेकर ने पिता की भूमिका को अच्छे से निभाई है, लेकिन स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स ने उनके कैरेक्टर को मेलोड्रामाटिक कर दिया है, जो हजम कर पाना आसान नहीं है। फिल्म में कई ऐसे भी कलाकार हैं जैसे अश्वनी कलसेकर, राजपाल यादव, राजेश शर्मा, मुश्ताक खान और मनीष वधवा, उन्हें भी कहानी और कैरेक्टर्स के हिसाब से इस्तेमाल नहीं किया गया है।

फाइनल वर्डिक्ट

वनवास की नीयत तो अच्छी है, लेकिन जिस तरह से अनिल शर्मा ने इस कहानी को गढ़ा है, उसने इसकी सीरत बिगाड़ दी है। वनवास को डेढ़ स्टार। यह भी पढ़ें: Bigg Boss ने Shrutika को किया एक्सपोज, टाइम गॉड बनते ही दोस्तों की पीठ में घोंपा खंजर

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