26/11, हिंदुस्तान के दर्द की ऐसी तारीख है, जिसे भूल पाना मुमकिन नहीं। मुंबई पर हुए आतंकी हमले की ऐसी तस्वीरें ज़ेहन पर है, जो मिटाए नहीं मिटेंगी।
उस रात हुए आतंकी हमले ने मंबई के साथ पूरे देश को दहलाया, साथ ही दी ऐसे हीरोज़ की कहानियां, जिन्होने अपनी जान पर खेलकर इस हमले में फंसे लोगों को बचाया... आतंकियों के सामने ढाल बने। इस हादसे बॉलीवुड हो या ओटीटी दोनो जगहों पर कई नज़रियों से फ़िल्मे आती रही हैं, चाहे वो पुलिसकर्मियों का नज़रिया हो, या होटल का, या हॉस्पिटल का।
मेजर फ़िल्म भी, वीरगाति को प्राप्त हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के जीवन पर आधारित है जो 26/11 के हमले में शहीद हो गए थे, जिसमें अदिवि शेष ने संदीप उन्नीकृष्णन का किरदार निभाया है। मेजर, संदीप उन्नीकृष्णन को श्रद्धांजलि है।
कहानी फ़िल्म की शुरुआत में संदीप उन्नीकृष्णन के बचपन को दिखाया गया है, जिन्हें बचपन से ही भारतीय सेना के यूनिफ़ॉर्म से प्यार होता है। उनका सपना था कि बड़े होकर, वो देश की सेवा करें... लेकिन संदीप के मां-बाप को ये मंज़ूर नहीं था। वो चाहते थे कि संदीप इंजीनियरिंग करे, फिर डॉक्टर बने, ताकि उसे एक सुरक्षित ज़िंदगी मिले। फ़िल्म में संदीप के बचपन से ताज होटल में शहीद होने तक की कहानी दिखायी गयी है। और इस सफ़र में दिखाया गया है कि कैसे संदीप अपने सपनों को पूरा करते हैं। यानि ये फिल्म सिर्फ़ हादसे की रात की कहानी नहीं, बल्कि एक संदीप का सफ़र है, जिसमें आप हंसेंगे, रोएंगे और गर्व से भर उठेंगे। फर्स्ट हाफ़, आपको थोड़ा भटकाएगा कि लेकिन ये फिल्म को सिर्फ़ एक ऑपरेशन की रात तक होने से भी बचाता है।
डायरेक्शन
26/11 पर इतनी फिल्में और वेब सीरीज़ आ चुकी है कि अदिवि शेष की सोच और डायरेक्टर शशि किरण टिक्का के लिए ये एक चुनौती थी, कि आख़िर वो इस कहानी को कैसे दिखाएं? शशि ने मेजर संदीप को सिर्फ़ 26/11 को ताज होटल में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए एनएसजी ऑफिसर की कहानी के तौर पर नहीं दिखाया, बल्कि अदिवि शेष के साथ मिलकर उन्होने संदीप के साथ उसके परिवार, उसके प्यार, उसके सपनों की कहानी को रखा। इसमें ऑडियंस, थोड़ा कन्फ्यूज़ हो सकती है, लेकिन एक बार उन्होने फिल्म देखनी शुरु की, तो उन्हे अहसास होगा कि वर्दी तक पहुंचने की लड़ाई, वर्दी के बाद की कहानी से कम इमोशनल नहीं होती। फ़िल्म के फ़र्स्ट हाफ़ को शशि ने बहुत ही फ़ास्ट रखा है, जिसमें संदीप के स्कूलिंग से सीधा आर्मी में भर्ती होना और फिर ट्रेनिंग ऑफ़िसर बनने का सफ़र दिखाया गया है। कहानी इंटर्वल से पहले इतनी तेज़ी से दिखायी जाती है कि कहीं-कहीं किरदार छूटते से भी लगते हैं। वही सेकंड हाफ़ पूरी तरह से ताज होटेल, लेओपोर्ड कैफ़े में हुए हादसे पर फ़ोकस किया गया है। इस पोर्शन में जाकर मेजर अपने पूरे शबाब पर आती है, जहां संदीप और टेरेरिस्ट के बीच मुठभेड़ ज़बरदस्त थ्रिलिंग है। कहानी क्लाइमेक्स में बहुत इमोशनल कर जाती है। पी वामसी का कैमरा वर्क कमाल है। बैक्ग्राउंड स्कोर ने कहानी के थ्रिल को बरकरार रखता है।
परफॉरमेंस मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के किरदार में अदिवि शेष पर पूरी फ़िल्म का भार नज़र आता है। अदिवि ने इस कहानी को चुना, या इस कहानी ने अदिवि को...इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं, लेकिन ये सच है कि मेजर संदीप को अदिवि ने जिया है। सई मंजरेकर के पास इस फिल्म में काफी जगह थी, कुछ कमाल करने का मौका भी था...लेकिन सई, एक एवरेज परफॉर्मर बन गई हैं। संदीप के माता-पिता की भूमिका में प्रकाश राज और रेवती कमाल के हैं, आप उनके साथ रोते हैं। कम वक्त के लिए ही सही पर शोभिता धुलिपाला ने फ़िल्म में अपनी भी छाप छोड़ी है।
क्यों देखें? 26/11 की ये कहानी, अब तक आई दूसरी कहानियों से अलग है। क्योंकि ये एक रात नहीं, एक शहीद की कहानी है। मेजर को 3.5 स्टार।