तूफ़ान है केजीएफ़2… ऐसा तूफ़ान, जो थियेटर्स में सीटियां बजा रहा है, बॉक्स ऑफिस पर हाउसफुल का बोर्ड लगा रहा है। लोगों को सिनेमा हॉल तक खींच कर ला रहा है। और सबसे बड़ी बात ये सब एक कन्नड़ फिल्म के डब्ड वर्ज़न के लिए हो रहा है, जहां पहले बड़ी बॉलीवुड फिल्म रिलीज़ होने पर रीजनल फिल्में अबनी रिलीज़ डेट टाल देती थी, और अब केजीएफ़ चैप्टर – 2 के आने के बाद, बड़ी बॉलीवुड फिल्में रास्ता साफ़ कर रही हैं।
थियेटर में लगातार दूसरी बार ऐसा नज़ारा देखने को मिला है। एस.एस. राजामौली की आरआरआर के बाद, डायरेक्टर प्रशान्त नील की केजीएफ़-2 को उससे भी एक कदम आगे का रिस्पॉन्स मिल रहा है। और ये बात कर्नाटका, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश के लिए नहीं… बल्कि हिंदी भाषी इलाकों के लिए भी लागू हो रही है। सही मायनों में इंडियन सिनेमा, भाषा की लकीर को क्रॉस करने का काम शुरु कर चुका है।
केजीएफ़-2 के लिए दिमाग़ लगाने जाइएगा, तो मज़ा खो दीजिएगा। बस इसी में उलझे रह जाइएगा कि एक अकेला रॉकी कैसे सैकड़ों हथियार बंद किलर्स से एक साथ टकरा रहा है और उनके मख़्खियों की तरह उड़ा रहा है ? या फिर इस पर सवाल उठाइएगा कि हज़ारों गोलियां चल रही हैं, लेकिन रॉकी तक एक भी नहीं पहुंच रही… लेकिन अधीरा की एक गोली राखी के सीने में सुराख कर देती है ? या फिर कि माइन्स के बीच मिट्टी और राख पर जहां सब मिट्टी से सने हैं, वहां रॉकी लड़ता है, ख़ून निकलता है लेकिन उसके सूट पर एक सिलवट भी नहीं पड़ती… उसके जूतों की पॉलिश खराब नहीं होती ? दरअसल क्रिटिकल नज़रिए से फिल्म देखकर ऐसे सवालों को केजीएफ़ चैप्टर – 1 ने ही पीछे छोड़ दिया है।
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केजीएफ़ टू में वही स्वैग है, जो केजीएफ़ चैप्टन – वन में था। रॉकी अब खुदा बन चुका है। केजीएफ़ यानि कोलार गोल्ड फील्ड में मां काली की आरती के वक्त गरूणा को मारकर, रॉकी ने हज़ारों मज़दूरो की ज़िंदगी बदल दी है। न्यूज़ चैनल 24 की एडिटर को रॉकी की कहानी वाले आनंद इन्गलागी को हॉर्ट अटैक आया है, लेकिन केजीएफ़ की कहानी रुकी नहीं है…। वो कहानी, उनके बेटे विजयेन्द्र इन्गलागी ने सुनानी शुरु कर दी है। इसमें 1951 से लेकर 1981 तक की कहानी है। रॉकी की पिछली ज़िंदगी की जो झलक केजीएफ़ के फर्स्ट चैप्टर में दिखी थी, वो अब आगे बढ़ रही है….फ्लैश बैक के साथ….। रॉकी, केजीएफ़ का नया बॉस बन चुका है… और रीना को ज़बरदस्ती, उठाकर केजीएफ़ लाया है।
लेकिन चैप्टर वन में रॉकी का एक ही बड़ा निशाना था – गरूणा। गरुणा की मौत के बाद, रॉकी को अधीरा से टकराना है, जो केजीएफ़ को बनाने वाले सूर्यवर्धन का भाई है, और वाइकिंग्स के अंदाज़ में केजीएफ़ में उठने वाली हर आवाज़ को ख़ामोश करता रहा है। अब रॉकी से वो किसी भी क़ीमत पर केजीएफ़ वापस लेना चाहता है। दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी रमिका सेन ने, देश के सबसे बड़े क्रिमिनल रॉकी और उसके साम्राज्य को मिटाने के लिए पूरी जंग छेड़ दी है। तीसरी ओर दुबाई में बैठा अंडरवर्ल्ड डॉन, रॉकी की सल्तनत को ख़त्म करके केजीएफ़ पर अपनी हुकूमत चलाना चाहता है।
केजीएफ़ की कहानी में झोल ढूंढने जाइएगा, तो पहले पार्ट से लेकर सेकेंड पार्ट तक ये झोल मिलते रहेंगे… लेकिन फिक्शनल अंडरवर्ल्ड स्टोरी लिखने का अपना फॉर्मेंट है, जहां स्वैग ज़्यादा और लॉजिक कम होता है। राइटिंग के मामले में केजीएफ़ की कहानी में पेंच हैं, लेकिन इसमें सीन्स ऐसे लिखे गए हैं कि आपको पूरी फिल्म में सीटी मारो मोमेंट्स मिलेंगे। थियेटर में जाइगा, तो रॉकी के स्वैग का असर, पूरे हॉल में देखिएगा। रॉकी की मां के साथ स्टोरी का फ्लैश बैक, फिल्म का सबसे स्ट्रांग प्वाइंट है। उस सीन्स में ऐसे डायलॉग्स है कि आप कुर्सी पर जम जाइएगा…। हांलाकि रॉकी और रीना की लव स्टोरी का ट्रैक उतना अच्छा नहीं लिखा गया है, हां… इस लव स्टोरी का ट्रैजिक एंड, आपको झिंझोर देगा। केजीएफ़-2 की कहानी यश के स्वैग और रॉकी के कैरेक्टर को ओवर द टॉप बनाने के हिसाब से लिखी गई है, और उसमें अपना काम डिलीवर किया है।
फिल्म का सबसे स्ट्रांग प्वाइंट, इसका स्वैग और सिनेमैटोग्राफ़ी है। केजीएफ़ को जिस तरह से दिखाया गया है… एक्शन सीन्स जैसे फिल्माए गए हैं, और एक्सन कोरियोग्राफ़ी जैसे की गई है। वो केजीएफ़ को इंडिया की सबसे स्टाइलिश फिल्म बना देती है। डायरेक्टर प्रशान्त नील का डायरेक्शन, केजीएफ़ चैप्टर-2 को इसकी पहली फिल्म से एक कदम आगे निकाल देता है। फिल्म का कमज़ोर प्वाइंट ये है कि बैकग्राउंड म्यूज़िक फिल्म पर हावी है… एक सेकेंड के लिए ये भी रुकता नहीं। मगर केजीएफ़ देखने जाने वालों को इससे फर्क नहीं पड़ता। हां, जिन्होने फिल्म के एंड क्रेडिट्स के ख़त्म होने के होने से पहले थियेटर छोड़ दिया, उनके लिए ये सबसे बड़ा लॉस है क्योंकि एंड क्रेडिट ख़त्म होने से ऐन पहले रॉकी कहानी के तीसरे चैप्टर का ऐलान हो गया है। वो भी ये दिखाते हुए कि रॉकी का जलवा अब इंडिया तक नहीं, बल्कि इंटरनेशनल हो गया है।
परफॉरमेंस पर आते हैं…तो केजीएफ़ रॉकी भाई यानि कि यश की फिल्म है। यश ने एक सेकेंड के लिए भी अपना कैरेक्टर और अपना स्वैग नहीं छोड़ा है। केजीएफ़ सेकेंड चैप्टर की सक्सेस यश को वो सुपरस्टारडम देने जा रही हैं, जिसके सामने बॉलीवुड के बड़े-बड़े स्टार पानी भरते नज़र आने वाले हैं। अधीरा के कैरेक्टर में संजय दत्त ने जो कमाल दिखाया है, वो बेमिसाल है। एक मिनट के लिए भी दिमाग़ में ये नहीं आता कि कैंसर से उबरने के तुरंत बाद संजय दत्त ने इतने जब़रदस्त और मुश्किल किरदार को अंजाम दिया है। प्राइम मिनिस्टर रमिका सेन के किरदार में रवीना टंडन के लिए तालियां बजती रहनी चाहिएं, यश के स्वैग़ के आगे रवीना एक सेकेंड के लिए भी कम नहीं लगी हैं। विजयेन्द्र इन्गलागी के कैरेक्टर में प्रकाश राज ने फिल्म के नरेशन को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया है। रीना श्रीनिधि शेट्टी को पहले चैप्टर के मुकाबले इस बार ज़्यादा स्क्रीन स्पेस मिला है। उनके लिए अभी खुद को साबित करना बाकी है।
केजीएफ़-2, स्टाइल और स्वैग से भरी एक ऐसी गैंगस्टर फिल्म है, जिसे इंडियन फिल्म इंडस्ट्री सेलिब्रेट करने जा रही है। ये रॉकी का तूफ़ान है, जिसे रोकना नामुमकिन है।
केजीएफ़ चैप्टर -2 को 4 स्टार।
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