अनेक का ट्रेलर देखकर उम्मीदें लगा थी, कि क्या फिल्म होगी ? फिर आयुष्मान खुराना का ट्रैक रिकॉर्ड भी ऐसा है कि दिल कहता है कि ये हीरो जो करेगा, वही कमाल करेगा। साथ में अनुभव सिन्हा के अनुभव की धार पर भी भरोसा था, जिन्होने आर्टिकल 15 में दिमाग को झिंझोड़ दिया था, मुल्क में आत्मा कटोच ली थी, थप्पड़ से दिल पर दस्तक दे दी थी। फिर अनेक का ट्रेलर देखकर तो लगा कि ये फिल्म, देखना अपने आपको कुछ और सिखाने का मौका देना होगा।
ये ‘अनेक’ सवाल तो उठाती है, लेकिन जवाब देने से मुकर जाती है। इसे लिखा भी अनुभव सिन्हा ने है और डायरेक्ट भी उन्होने किया है। अनेक का ट्रेलर दावा करता है कि हिंदुस्तान एक है, वो ट्रेलर से बताता है कि नॉर्थ ईस्ट के लोगों के साथ कितना भेदभाव किया जाता है। इस बहस को और हवा मिलती है इससे कि क्या हिंदी से पता चलेगा कि वो नॉर्थ इंडियन, साउथ इंडियन या नॉर्थ ईस्ट का है। ट्रेलर देखकर जोश जागता है कि जीतेगा हिंदुस्तान, मगर इस जोश के झाग बनाकर छोड़ दिया अनुभव सिन्हा की कहानी ने, उनके स्क्रीन प्ले ने।
कहानी सुनिए, अनेक शुरु होती है एक नॉर्थ ईस्ट की लड़की से, जो बॉक्सर है और इंडिया के लिए खेलना चाहती है। नॉर्थ ईस्ट से आई आईडो (Aido) को वो सब झेलना होता है, जिसके बारे में हम सुनते हैं और जानते हैं कि चीन से आई हो ?, पार्लर चलाती हो ?, मसाज करती हो ?… इन सबके साथ आईडो को अपने नॉर्थ ईस्ट वाली पहचान के चलते, इंडियन बॉक्सिंग टीम में जगह भी नहीं मिलती। कट टू कहानी आती है अमन पर। अमन, इंडियन इंटेलीजेंस का एजेंट है, वो नाम और पहचान बदलकर भारत सरकार के लिए जानकारियां जुटाता, मिशन पूरे करता है। उसका अगला मिशन है – नॉर्थ ईस्ट जाना, वहां के अलगाव वादी गुटों के अंदर पैठ बनाना और ऐसा माहौल तैयार करना कि भारत सरकार, सारे अलगाव वादी ग्रुप्स को एक साथ लाकर, उनके साथ पीस एकॉर्ड यानि शांति समझौता साईन करे। यहां तक तो अनेक ठीक चलती है।
मुश्किल तब होती है, जब अमन, जोशुआ बनकर, नॉर्थ ईस्ट जाता है… वहां आईडो से दोस्ती गांठता है और फिर नॉर्थ ईस्ट की तस्वीर सामने आनी शुरु होती है कि वहां हर कोई दिल्ली से परेशान है, कोई अपने आपको इंडियन मानने को तैयार नहीं। लोग खुद को इंडिया से अलग मानते हैं… और कहानी में ये साबित करने की कोशिश होती है कि नॉर्थ ईस्ट के सेवेन सिस्टर स्टेट्स में ऑर्टिकल 371 ही उन्हे अलग होकर भी भारत से जोड़ता है।
कहानी में ये साबित करने की कोशिश शुरु होती है कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 का हटाया जाना, वहां के लोगों के हक़ के साथ खिलवाड़ है। अनेक यहां, से अपनी पकड़ छोड़नी शुरु करती है। बाद की कहानी में दिखाया जाता है कि भारत सरकार, नॉर्थ ईस्ट में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अलगावादी नेताओं को अंदर ही अंदर सपोर्ट करती है। उनके ड्रग्स, एक्सटॉर्शन और हथियारों के सप्लाई को लेकर भी आंख़ें मूंदे रहती है, साथ ही ये अनेक ये भी दिखाने की कोशिश करता है कि नॉर्थ ईस्ट में पुलिस, वहां के लोगों पर पुलिस की बेरहमी ही वो वजह है, जिसकी वजह से नॉर्थ ईस्ट के आम लोग, किसी ना किसी एक्ट्रीमिस्ट ग्रुप से जुड़े हैं।
अनुभव सिन्हा की ‘अनेक’, एक तरफ़ आईडो के साथ बॉक्सिंग चैंपियन जीतने के बाद भी, हारने का अहसास कराती है, तो दूसरी तरफ़ नॉर्थ ईस्ट के लोगों के लिए इंडिया एक दूसरा देश है, ऐसी लकीर भी खींचती है। अमन के सीनियर अबरार बट्ट के ज़रिए, कश्मीर से ऑर्टिकल 370 को हटाने पर निशाना साधती ‘अनेक’ पॉलिटिकल ज़्यादा होती गई है। हर पांच साल में जनता की आवाज़ सुने जाने से लेकर, इंटरनेट बंद करवा देने वाले फरमान तक, साहेब की पसंद, ना-पसंद वाले रिफरेंस से लेकर, सेपरेटिस्ट रिबेल टाइगर सांगा से निगोशिएशन तक, अनुभव सिन्हा आपको बहुत कुछ समझाना चाहते हैं…. लेकिन आपको ये सारी बातें समझ आएं, ये मुमकिन नहीं।
फिल्म का काम होता है, लोगों तक मुश्किल से मुश्किल चीज़ आसानी से पहुंचाना। अगर देखने वाले को ये बातें समझने के लिए अलग से रिसर्च करनी पड़े, तो फिल्म फेल होती है। अनुभव सिन्हा ने इसे जितना इमोशनल बनाने की कोशिश है, उतना ही ज़्यादा फेल होते गए हैं। फिल्म के जो डायलॉग्स ट्रेलर में आपके रौंगटे खड़े कर देते हैं, फिल्म में अपना असर नहीं छोड़ते।
जॉनसन नाम के एक रिबेल के ज़रिए, नॉर्थ ईस्ट के हालात को समझाने की कोशिश की गई है, साथ ही प्लॉट ऐसा बुना गया है कि जॉनसन की नकली पहचान इंडियन स्पाई एजेंसी ने बुनी है। और इस नकली पहचान को आईडो के पिता वांगनाओ ने अपना लिया…. ऐसे में ये बात समझ नहीं आती कि जब जोशुआ को वांगनाओ के जॉनसन होने का पता था, तो आईडो के साथ घूमते जोशुआ से वांगनाओ अनजान कैसे था ? ये किसी को समझ नहीं आया।
हां, इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंदुस्तान के दूसरे हिस्सों के लोग नॉर्थ ईस्ट को अच्छे से ना समझते हों, लेकिन ‘अनेक’ इसे बिल्कुल आसान नहीं बनाती। आपको ये तक पता नहीं चलेगा कि ये नॉर्थ ईस्ट के कौन से हिस्से की कहानी है।
नॉर्थ ईस्ट की कुदरती खूबसूरती के बारे में फिल्म बात तो करती है, लेकिन स्क्रीन पर उसे दिखा नहीं पाती। दिल्ली के एक होटल में होम मिनिस्ट्री और इंटेलिजेस के दफ्तर के सीन्स,यानि तकरीबन 25 परसेंट हिस्सा शूट कर लिया गया है। और बड़ी स्क्रीन पर जब आप फिल्म देखते हैं, तो उसमें उसके एवरेज में फिल्म का साइज़ छोटा लगता है। ये बहुत अजीब है।
‘अनेक’ में वाकई आयुष्मान को दम लगा… और उन्होने अपना पूरा दम लगाया… वो एक्शन हीरो बने हैं, मार-धाड़ वाले नहीं…. सोचने वाले, समझने वाले, जैसे एक्शन हीरो की वाकई ज़रूरत होती है। एंड्रिया केविचसा ने कोशिश अच्छी की है, और ये एंड्रिया के लिए अपनी ही कहानी को जीने जैसा है। हां, अनेक वो कमर्शियल फिल्म नहीं है, जिसे परफेक्ट लॉन्च पैड कहा जाए। जे.डी चक्रवर्ती, कम सीन्स में हैं, लेकिन उन्हे और देखने की चाहत बनी रहती है। मनोज पहवा और कुमुद मिश्रा जैसे मंझे हुए कलाकार, जो डायरेक्टर अनुभव सिन्हा के पसंदीदा एक्टर्स है, उनकी प्रेजेंस अनेक जैसी कम रफ्तार फिल्म से भी लोगों को जोड़े रखेगी।
क्लाइमेक्स में आयुष्मान का डायलॉग है ‘कहीं ऐसा तो नहीं, कि ये पीस किसी को चाहिए ही नहीं, वरना इतने सालों से एक छोटी सी प्रॉब्लम किसी से सॉल्व नहीं हुई’, दरअसल यही स्टेटमेंट फिल्म का सबसे सच्चा डायलॉग है।
अनेकता में एकता का देश है भारत। ‘अनेक’ बताने की कोशिश करती है कि ऐसी सोच के बाद भी हिंदुस्तान के अंदर ही, इतने हिस्से बंटे क्यों हैं। हांलाकि जवाब नहीं दे पाती… बस, मुद्दे को छूती है और निकल जाती है। इसे देखने, समझने और पचाने में बहुत मेहनत लगेगी।
‘अनेक’ को 3 स्टार।