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Poacher Review: हाथियों के शिकार और तस्करी की दर्दनाक कहानी है पोचर, न देखा तो होगा पछतावा

Poacher Review: पोचर की कहानी को बताना, बनाना और दिखाना तीनों के लिए इसके एमी विनर क्रिएटर रिची मेहता को सलाम कीजिए...

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Poacher Review: कभी-कभी लगता है कि ओटीटी ने हमें दुनिया देखने का नया नज़रिया दिया है। वरना पोचर जैसी कहानियों को बड़े पर्दे पर लाने की हिम्मत कौन ही कर सकता है? 8 एपिसोड वाले पोचर की कहानी को बताना, बनाना और दिखाना तीनों के लिए इसके एमी विनर क्रिएटर रिची मेहता को सलाम कीजिए।

क्या है पोचर की कहानी (Poacher Review)

पोचर, यानि शिकारी GOD’s OWN COUNTRY केरला में वो हाथियों का शिकार करने वाली उस कहानी को उजागर करती है, जिससे हमें-आपको कोई ख़ास मतलब नही है। इसमें गाने नहीं है, इसमें कॉमेडी नहीं है, इसमें कोई बड़ा स्टार नहीं है... वो तो भला हो आलिया भट्ट का, जो इस सीरीज़ की एक्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर बनी, तो कुछ लोग पोचर के बारे में जान गए। रिची मेहता की पोचर इंसान की जानवरों पर ज़ुल्म की वो कहानी दिखाती है, जिसे देखकर आप और हम शर्मिंदा होंगे कि जंगलों को काटकर, जानवरों को मारकर हमने जो कंक्रीट के जंगल बनाए हैं। उसमें कितने दिनों तक हमें सांसें मिलती रहेंगी?

आइवरी की इंटरनेशनल स्मगलिंग

दिल्ली के गैस चैंबर बनने को हम आंख़ों से देखकर रहे हैं, मुंबई के जाम से हम दो चार हो रहे हैं। मगर मान फिर भी नहीं रहे हैं। पोचर की कहानी शुरु होती है जब एक इन्फॉर्मर अचानकर एक फॉरेस्ट ऑफिस में आकर बताता है कि जंगलों में हाथियों का शिकार हो रहा है। उनके दांत यानी आइवरी को शिकारी बेच रहे हैं। 18 हाथियों के शिकार का उसका कन्फेशन सुनकर पूरा फॉरेस्ट डिपॉर्टमेंट सकते में आ जाता है और उसके बाद शुरु होता। इन शिकारी, उनसे आइवरी खरीदकर इंटरनेशनल स्मगल करने वाले गैंग, इन आइवरी पर नक्काशी करके बनी मुर्तियों को बेचने वाले व्हाइट कॉलर ऑर्ट सेलर और इन्हे खरीदवाने वाले अमीरों की पड़ताल, जो कभी मुकाम तक नहीं पहुंचेगी।

केरला फॉरेस्ट की शेरनी है माला

8 एपिसोड की पोचर में केरला फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर माला जोगी का पछतावा और गुस्सा है,जो उसे अपने शिकारी पिता पर है और जिसके चलते वो हाथियों, जानवरों और जंगल को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। माला जैसे एक शेरनी है, जो अपने जंगल को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। माला का एक साथी भी है। एलन,जो दिल्ली के एनजीओ में कम्प्यूटर प्रोग्रामर है, लेकिन असल में स्नेक एक्सपर्ट और वाइल्ड लाइफ़ ट्रस्ट एनलिस्ट है।

कौन है जानवरों का गुनहगार

इसमें नील बनर्जी है। एक फॉर्मर रॉ एजेंट,जो अपनी बीमारी को इग्नोर करके इस दुनिया को आने वाली बड़ी बीमारी से बचाना चाहता है। और भी ऐसे कई किरदार जिन्होने जाने-अनजाने में शिकारियों की मदद की और अब अपने भगवान से अपने कुदरत से माफ़ी मांग रहे हैं। रिची मेहता ने इस सीरीज़ को जैसे आईने की तरह बनाया है, जिसमें हमें हर बार अहसास होता है कि हम जंगल के, इसके जानवरों के गुनहगार हैं।

केरल की सड़कों से दिल्ली की गलियों तक

केरल की सड़कों से लेकर दिल्ली की गलियों तक सड़कों की जेब्रा क्रॉसिंग से लेकर बिजली के खंभों तक हर बार कोई ना कोई जानवर इस कहानी का रास्ता काटता रहता है और बताता रहता है कि ये जगह उसकी थी,जिस पर हमने कब्ज़ा कर रखा है। माला के किरदार में निमिषा सजयन इतनी शानदार हैं, कि आप एक लम्हे के लिए ये बता नहीं पाएंगे कि ये कोई किरदार है। नील बनर्जी के किरदार में दिबेन्दु भट्टाचार्या शानदार हैं। एलन बने रौशन मैथ्यू का काम बेहतरीन है। SHO दीना बनी कनी कुस्रुती को और भी देखने की चाहत काश पूरी हो पाती। यह भी पढ़ें- All India Rank Movie Review: ’12वीं फेल’ समझकर ना जाए देखने ‘ऑल इंडिया रैंक’, वर्ना 94 मिनट हो जाएंगे वेस्ट

कास्टिंग का बेजोड़ नमूना है पोचर

पोचर मुकेश छाबड़ा की कास्टिंग का बेजोड़ नमूना है। आपको ये कहानी थोड़ी स्ट्रेच्ड लग सकती है, ये भी लग सकता है कि हम पर्यावरण, जंगल और जानवरों के बारे में सोचेंगे तो हमारी कौन सोचेगा,लेकिन पोचर आपको अहसास तो करा देगी कि आप अपने बच्चों के लिए कैसी दुनिया बना रहे हैं। और यही पोचर की जीत है।

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