बड़े-बड़े स्टार्स की थियेटर्स की दौड़ के बीच ओटीटी पर एक फिल्म ने खामोशी से दस्तक दी है। ये फिल्म है जंगल क्राई, जो कलिंगा इंस्टीट्यूट के 12 आदिवासी लड़को के जूनियर रग्बी वर्ल्ड कंपटीशन में पहुंचने और जीतने की ऐसी सच्ची कहानी है, जो उम्मीद जगाती है।
रनवीर सिंह की वजह से 83 में अंडरडॉग इंडियन टीम के क्रिकेट वर्ल्ड चैपियन बनने की कहानी हो या झूंड में अमिताभ बच्चन के साथ बस्ती के बच्चों के साथ स्लम सॉकर की कहानी हो, स्पोर्ट्स बेस्ड इन कहानियों ने तालियां बटोरी हैं। अब बारी लायन्गेट प्ले पर आई जंगल क्राई की है।
ये कहानी है कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के एथलेटिक डायरेक्टर रुंद्र की, जो ओडिशा के गांवों में घूमकर ऐसे बच्चों की तलाश करता है, जिनमें फुटबॉल खेलने की समझ हो। वो ऐसे बच्चों को चुनता है, जो चुराई हुई कंचो के जार के साथ खेलते हैं, अपनी चुस्ती-फुर्ती और समझ दिखाते हैं। इन्हे ट्रेंड करके रुद्र फुटबॉल टीम तैयार करता है। लेकिन तभी कहानी में एंट्री होती है पॉल की। दरअसल पॉल को तलाश है ऐसे बच्चों की, जिनके साथ वो रग्बी टीम बना सके। ये ऐसा खुले है, जिसके बारे में इन बच्चों ने कभी नहीं सुना। पॉल कलिंगा के फाउंडर डॉक्टर सामंत से मिलते हैं और रुद्र की टीम के 12 बच्चों के साथ रग्बी टीम बनाना चाहते है… जो सिर्फ 4 महीने के अंदर इंग्लैंड में होने वाली रग्बी टीम में खेल सके।
ज़ाहिर है रुद्र को इस बात से ऐतराज़ है, क्योंकि वो इन बच्चों को फुटबॉल वर्ल्ड कप के लिए तैयार कर रहा है। दूसरी ओर ये बच्चे तमाम मुश्किलों के बाद भी रग्बी को सीखते हैं और टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई भी कर लेते हैं। बच्चों का ये जुनून देखकर रुद्र भी उनके साथ आ जाता है। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब इंग्लैंड मे हो रहे रग्बी चैंपियनशिप के पहले पॉल को डेंगू हो जाता है और पॉल की जगह रुद्र को इन बच्चों की टीम के साथ इंग्लैंड जाना पड़ता है।
इंग्लैंड में रुद्र और टीम की मुलाकात होती है रोशनी से, जो इस टीम की फीजियो है। यहां से शुरु होती है, वो जर्नी, जो ओडिसा के छोटे गांव से बच्चों की बड़ी लड़ाई है…. वर्ल्ड चैंपियन बनने की लड़ाई।
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डायरेक्टर सागर बेल्लारी का फिल्में दिखाने का अपना अंदाज़ है। उनकी फिल्में ड्रामा कम, रियलिज़्म ज़्यादा लिए हुए होती है। और यही जंगल क्राई की खूबी है। अंडरडॉग से वर्ल्ड चैंपियन बनने के इस सफ़र में ड्रामा एड करने के लिए बेल्लारी ने इस कहानी मे कोई विलेन नहीं जोड़ा है… बस इसे जस का तस रख दिया। बहुतों को ये खटक सकता है, प्लेन और सिंपल लग सकता है, जंगल क्राई को यही बात खास बनाती है।
अच्छी बात ये है कि पॉपुलर सिनेमा के दौर में ओटीटी ने ऐसे कॉन्टेट को तरजीह देनी शुरु की है। क्रिकेट को छोड़कर और भी दूसरे गेम्स पर बनी फिल्मों को जगह मिलने लगी है, जो शायद थियेटर पर भीड़ ना जुटाएं, लेकिन ओटीटी पर तालियां ज़रूर बटोरेंगी। रग्बी से अगर आपका वास्ता नहीं पड़ा है, तो सागर बेल्लारी ने इस फिल्म को इतनी खूबी से बनाया है कि फिल्म देखकर जब आप उंठेंगे, तो रग्बी से रू-ब-रू हो चुके होंगे।
अभय देओल इस फिल्म की जान हैं, वो एक्टिंग ऐसी करते हैं कि आप उसमें एक्टिंग को खोज भी नही सकते, अभय जंगल क्राई में रुद्र ही बन गे हैं। टीम फीजिओ रोशनी के किरदार में एमिली शाह भले ही फिल्म के सेकेंड हॉफ से कहानी में आई हों, लेकिन उनकी मौजूदगी ने फिल्म को और खूबसूरत बना दिया है। टीम के 12 बच्चे बहुत ही शानदार हैं, वो इस फिल्म की जान हैं। अतुल कुमार और स्टीवर्ट राइट भी फिल्म में बहुत इंप्रेसिव हैं।
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जंगल क्राई को 3 स्टार।
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