Saturday, 20 April, 2024

---विज्ञापन---

Jogi Movie Review: एजेंडा फिल्मों के बीच दिलजीत दोसांझ की जोगी इंसानियत की रौशनी है

‘जोगी’ की कहानी वहां से शुरु होती है, जहां से आमिर ख़ान की फिल्म लाल सिंह चढ्ढा की शुरुआत हुई थी, यानि इंदिरा गांधी की मौत से। ना वहां इंदिरा गांधी को मरते दिखाया गया, ना यहां। जो दोनो फिल्में देखेंगे बहुत कुछ मिलता जुलता पाएंगे। लेकिन फिर भी दिलजीत दोसांझ की ‘जोगी’ एक कदम […]

‘जोगी’ की कहानी वहां से शुरु होती है, जहां से आमिर ख़ान की फिल्म लाल सिंह चढ्ढा की शुरुआत हुई थी, यानि इंदिरा गांधी की मौत से। ना वहां इंदिरा गांधी को मरते दिखाया गया, ना यहां। जो दोनो फिल्में देखेंगे बहुत कुछ मिलता जुलता पाएंगे। लेकिन फिर भी दिलजीत दोसांझ की ‘जोगी’ एक कदम आगे निकलती है।

अली अब्बास जफर ने सिनेमा में कामयाबी की कहानियां लिखी और दिखाईं है। सुल्तान, टाइगर ज़िंदा है और भारत जैसी कामयाब फिल्में अली के खाते में हैं। तो प्राइम वीडियो पर उनकी पहली सीरीज़ पर मचा तांडव भी सबको याद है। मगर ‘जोगी’ में अली अब्बास बहुत सीख गए हैं, लकीर खींचने का तजुर्बा जो ज़्यादा हो गया है।

यहाँ पढ़िए – प्रतीक गांधी फिर मचाएंगे तहलका, इस दिन रिलीज होगी वेब सीरीज

हांलाकि ‘जोगी’ का ट्रेलर देखकर आपको लगा होगा कि ये फिल्म आग से खेल रही है। जहां ज़रा-ज़रा सी बात पर लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हों, ऐसे में दिलजीत दोसांझ को लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिख समुदाय के खिलाफ़ फैली हिंसा को दिखाते ट्रेलर को लेकर, दिमाग़ में एक उलझन भी होती है कि कही एजेंडा इस फिल्म पर हावी ना हो जाए।

मगर जब आप फिल्म देखना शुरू करते हैं, तो शुरुआत के ख़ून-खराबे के 15 मिनट के बाद से जोगी की कहानी ऐसा ट्विस्ट लेती है, कि आप जोगी के साथ चल पड़ते हैं इंसानितयत के सफ़र पर। जहां अपने धर्म के खिलाफ़ हो रहे कत्लेआम के बीच भी जोगी, सिर्फ़ अपने परिवार को बचाने के बजाए, अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, गली, मोहल्ले के हर साथी को बचाने की कोशिश में लग जाता है। उसका साथ देने वाले दोस्तों में एक हिंदू है और एक मुसलमान।

‘जोगी’ की कहानी उस वक्त सियासत की भट्टी में भस्म होती हुई इंसानियत की एक तस्वीर दिखाती है, तो दूसरी ओर इंसानियत की ख़ातिर खुद को दांव पर लगाने वाले जज़्बे को सलाम करती है।

इस कहानी में इश्क़ का रंग भी है, कमली और जोगी की मोहब्बत जैसी बादलों के बीच से चमकते सूरज की चमक है। जोगी, अपने दोस्त की बहन की ओर खुद को खींचने से बहुत रोकता है, लेकिन कमली के प्यार के आगे वो हार जाता है। ऊंच-नीच होती है, हादसा होता है, दोस्ती, दुश्मनी में बदल जाती है। लेकिन जब बात इंसानियत पर आती है, तो फिर उम्मीद दिखती है।

1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के 3 दिनों की ये कहानी, आज के माहौल में भी जीने का सबक सिखाती है। सियासत के आगे, इंसानियत का पाठ सिखाती है। अली अब्बास ज़फर की बाकी फिल्में भले ही बड़ी शाहकार हों, बड़े स्टार्स के साथ हों, बड़े बॉक्स ऑफिस वाले नंबर के साथ हों, लेकिन सिनेमा की सीख ‘जोगी’ है। इसके किरदार असली हैं, इसकी सिचुएशन असली हैं और नीयत अच्छी है. सिनेमैटोग्राफी आपको उस वक्त के हिंदुस्तान के हालात दिखाती है। गानों भी सिचुएशन में बिल्कुल फिट हैं।

यहाँ पढ़िए – माधुरी दीक्षित की फिल्म ‘मजा मा’ का ‘बूम पड़ी’ सॉन्ग आउट, किया जबरदस्त गर्भा डांस

दिलजीत दोसांझ ने ‘जोगी’ बनकर, साबित किया है कि एक्टर तो वो कमाल हैं. और किरदारों को जीने की उनकी काबिलियत का कोई तोड़ नहीं है। कमली के किरदार में अमायरा दस्तूर का ये किरदार, जितना छोटा है, उतना खूबसूरत और दमदार है। लोकल काउंसिलर तेजपाल के किरदार में कुमुद मिश्रा ने बता दिया है, कि किरदार कोई भी हो, वो वही बन जाते हैं। जीशान अयूब, इंस्पेक्टर रविंदर बनकर, जोगी के बराबरी में खड़े नज़र आते हैं। लाली के किरदार में हितेन ने काम अच्छा किया है, लेकिन उनकी उम्र अब चेहरे से बाहर झांकने लगी है।

‘जोगी’ देखिए, उम्मीद के लिए। एजेंडा फिल्मों के दौर में, मुश्किल से मुश्किल कहानी कैसे कही जानी चाहिए, ‘जोगी’ ये भी सिखाती है।

‘जोगी’ को 3 स्टार।

यहाँ पढ़िए – OTT से  जुड़ी ख़बरें

 Click Here –  News 24 APP अभी download करें

First published on: Sep 16, 2022 03:58 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.