Saturday, 20 April, 2024

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Guilty Minds Review: सही केस, सही दलील, सही फैसला, गिल्टी माइंड्स भारत का ‘SUITS’ है

Suits, Boston legal, Goliath और How to get away with murder जैसे बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा को देखकर दिल मसोस कर रह जाने वाले हिंदी ऑडियंस को इंडिया का पहला ऐसा कोर्ट रूम ड्रामा, वेब सीरीज़ मिली है, जो असल मुद्दों की बात करती है। कोर्ट के हर फैसले का हर असर आम लोगों की […]

Suits, Boston legal, Goliath और How to get away with murder जैसे बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा को देखकर दिल मसोस कर रह जाने वाले हिंदी ऑडियंस को इंडिया का पहला ऐसा कोर्ट रूम ड्रामा, वेब सीरीज़ मिली है, जो असल मुद्दों की बात करती है। कोर्ट के हर फैसले का हर असर आम लोगों की ज़िंदगी पर कैसा होता है, ये वेब सीरीज़ इसका अहसास कराती है। इंडिया के ज्यूडियशियल सिस्टम की पड़ताल करती है। और तो और कोर्ट रूम में बहस के दौरान असल में हुए कोर्ट केसेज़ के रिफरेंस लेती है।


प्राइम वीडियो ने जब गिल्टी माइंड्स का प्रमोशन शुरु किया, तो इतनी उम्मीदें नहीं थी। लगा था एक और वेब सीरीज़ आएगी, जो कुछ अच्छी कहानी सुनाएगी। लेकिन यहां तो मामला ही उल्टा निकला। इस सीरीज़ के हर एपिसोड ने आम ज़िंदगी में कोर्ट केसेज़, ज्यूडीशियल सिस्टम, एडवोकेट्स की तैयारी, उनकी निज़ी ज़िंदगी के ऐसे रंग पेश किए हैं कि आप हैरान हो जाएंगे।

10 एपिसोड, हर एपिसोड 40 मिनट से लेकर 50 मिनट तक लंबा…। देखने मे वक्त तो लगेगा, क्योंकि वहां दो पैरेलेल कहानियां साथ चल रही हैं। एक तो नए कोर्ट केस की और दूसरे इसके वकीलों की ज़िंदगी की कहानी। इसके 10 एपिसोड अलग-अलग मुद्दों से डील करते हैं और फिर भी जुड़े रहते हैं।

पहला एपिसोड फिल्म इंडस्ट्री में होने वाले कास्टिंग काउच और मी टू मुवमेंट से इंस्पॉयर्ड है और कसेंट का मतलब सही मायने में समझाता है।
दूसरा एपिसोड, ख़तरनाक वीडियो गेम्स के असर की बात करता है, जहां प्वाइंट्स और रिवॉर्ड्स के चलते एक 19 साल का इंजीनियरिंग स्टूडेंट, एक टैक्सी ड्राइवर को मार देता है। ये एपिसोड देखकर आप सहम जाएंगे, कि मोबाइल और कम्प्यूटर में उलझे बच्चे किस ओर जा रहे हैं।
तीसरा एपिसोड, एक कोला कंपनी के पानी चुराने की वजह से महाराष्ट्र के एक पूरे गांव में पड़े सूखे की कहानी कहता है।
चौथा एपिसोड IVF टेक्नॉलॉजी की बात तो समझाता है, लेकिन इसके ज़रिए एक प्रेग्नेंट औरत को उसकी प्रेग्नेंसी के चलते कंपनी से बाहर करने वाली प्रॉब्लम का सवाल उठाता है। जिसके खिलाफ़ सख़्त कानून होने के बाद भी, बैड परफॉरमेंस के शॉर्ट कट को सहारा बनाकर कितनी ही वर्किंग वुमेन्स को कंपनियां बाहर का रास्ता दिखा देती है।
पांचवा एपिसोड – आलाप, म्यूज़िक इंडस्ट्री में कॉपीराइट वायलेशन को समझाता है।
छटां एपिसोड -एहनो, आटो पायलट कार के उस कन्सर्न को सामने रखता है, जो टेस्ला जैसी कार्स को लेकर पूरी दुनिया के समझने की कोशिश कर रही है।
सातवां एपिसोड – डीप वॉटर्स, नक्सल प्रभावित इलाकों में प्राइवेट सिक्योरिटी फर्म्स में मजदूरों के डकैट बताकर मारने जैसी सनसनीखेज़ मुद्दा उठाता है।
आठवां एपिसोड – चूज़ योर बेबी, आईवीएफ़ क्लिनिक्स के सेक्स डिर्टमिनेशन की पोल खोलता है।
नौवां एपिसोड – अलोला, डेटिंग एप्स की फेक प्रोफाइल्स की पड़ताल करता है, जिसमें बॉट्स का जाल में फंसकर लोग अपने पैसे और वक्त गंवाते हैं।
दसवां एपिसोड – गिल्ट, गिल्टी माइंड्स के किरदारों के गिल्ट की पड़ताल है, जो इसके पहले नौ एपिसोड के दौरान बाकी कहानी के पैरेलल चल रही है।

गिल्टी माइंट्स की सबसे बड़ी ख़ासियत है इसकी राइटिंग। हर एपिसोड में नए-नए किरदार, नए-नए केस के बीच में भी ये वेब सीरीज़ अपने लीड कैरेक्टर्स को डेवलप होने का मौका देता है। उनकी कहानियां कहता है, उनके गिल्ट्स का आईना बनता है। इतनी शानदार राइटिंग इधर बीच आई किसी वेब सीरीज़ में कम ही देखने को मिली है। राइटिंग की दूसरी खासियत ये है कि मुश्किल से मुश्किल केस को ये बिल्कुल आसान जुबां में समझाती है। ये सारे केस, हमारी ज़िंदगियों का हिस्सा है… बिना टीचर बने, बिना क्लास लगाए ये ऑडियंस को अवेयर करता है।

वेब सीरीज़ की क्रिएटर और डायरेक्टर शेफाली भूषण ने अपने लीगल बैकग्राउंड का गिल्टी माइंड्स में शानदार इस्तेमाल किया है। सीरीज़ के को-डायरेक्टर और को राइटर जयंत दिगंबर, मानव भुषण और दीक्षा गुजराल की रिसर्च-राइटिंग ने गिल्टी माइंड्स को लीगल ड्रामा सेक्सन में इसे मोस्ट वॉचेबल कॉन्टेट बना दिया है। हांलाकि इंडियन ज्यूडियशियल सिस्टम में केसेज़ बहुत लंबे खींचते हैं लेकिन गिल्टी माइंड्स में हर केस को एक एपिसोड से ज़्यादा जगह नहीं दी गई है। ये गनीमत है।

एक सबसे बड़ी खूबी गिल्टी माइंड्स की ये है कि हिमाचल में, ये हिंदी बोलने की कोशिश नहीं करती। महाराष्ट्र में मराठी से भागने की कोशिश नहीं करती। भारत की अलग-अलग भाषा को ये ज़बरदस्ती हिंदी में समझाती भी नहीं है।

इसके किरदारों की डिटेलिंग पर जाएंगे, तो मामला लंबा खिंच जाएगा। आप कलाकारों पर आइए तो कशफ़ काजे के किरदार में श्रिया पिलगांवकर शानदार है, उनका किरदार बिल्कुल रीयल है, ज़ाहिर है उनकी तैयारी भी शानदार है। दीपक राणा के किरदार में वरूण मित्रा शानदार है। हिमाचल में उनका लोकल फील और दिल्ली में उनका तेज़-तर्रार वकील का ट्रांजीशन बिल्कल खटकता नहीं है। कशफ़ की लॉ फर्म में पार्टनर बनी सुगंधा गर्ग इस सीरीज़ की हाईलाइट है। जब सुंगधा अपने किरदार को उड़ान देती है, तो बाकी उनसे नीचे नज़र आते हैं। शुभांगी खन्ना के किरदार में नम्रता सेठ ने अपने किरदार को एक्यूरेट पकड़ा है। कुलभूषण खरबंदा और सतीश कौशिक के तो क्या कहने, दोनो ही पके हुए कलाकार हैं, जो खुद का कमाल तो दिखाते हैं और दूसरे को भी निखरने का मौका देते हैं।

गिल्टी माइंट्स एक शानदार वेब सीरीज़ है। समझ बढ़ानी है और कुछ अच्छा देखना है, तो गिल्ट से निकलिए – गिल्टी माइंड्स देखिए।
गिल्टी माइंड्स को साढ़े तीन स्टार

First published on: Apr 25, 2022 03:03 PM