Sam Bahadur Review: विक्की कौशल को नहीं मिला मेहनत का फल, इन प्वाइंट्स पर कमजोर पड़ी फिल्म
Sam Bahadur Review: बॉलीवुड एक्टर विक्की कौशल की फिल्म 'सैम बहादुर' (Sam Bahadur Review) आज यानी एक दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। बॉक्स ऑफिस पर 'सैम बहादुर' की सीधी टक्कर रणबीर कपूर की फिल्म 'एनिमल' से हो रही है। जहां एक ओर विक्की कौशल की फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। वहीं, इस फिल्म को क्रिटिक्स का मिला-जुला रिस्पॉन्स मिल रहा है। बी-टाउन की जानी-मानी फिल्म मेकर मेघना गुलजार के द्वारा बनाई गई इस बायोपिक में विक्की कौशल ने बेहतरीन एक्टिंग की है। मगर इसके बाद भी फिल्म को अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है।
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'सैम बहादुर' की कहानी (Sam Bahadur Review)
फिल्म की कहानी के शुरुआत फिल्म के किरदार मानेकशॉ के जन्म से होती है। जहां उसके माता-पिता उसका एक अलग नाम रखना चाहते थे। उसके बाद 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पहले दल में शामिल होने से लेकर देश के पहले फील्ड मार्शल के पद तक पहुंचते हुए कहानी कई उतार-चढ़ावों से गुजरती है। मानेकशॉ की जवानी की शरारतों से लेकर युद्ध के मैदान में शूरता का प्रदर्शन करने तक कहानी कई कालखंडों में विभाजित की गई है। सैम और याह्या खान(जीशान अयूब खान) बंटवारे से पहले भारतीय फौज का हिस्सा थे, दोनों के बीच गहरा याराना भी था। विभाजन के बाद याह्या पाकिस्तान की सेना का हिस्सा बने। हालांकि, मोहम्मद अली जिन्ना ने मानेकशॉ के सामने पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बनने की पेशकश भी करते हैं, मगर मानेकशॉ हिंदुस्तान को चुनते हैं।
फर्स्ट हाफ में ऐसा रहा हाल
फिल्म के फर्स्ट हाफ की कहानी में सैम की पर्सनल लाइफ के बारे में भी बताया गया है। फिल्म में उनकी शादी सिल्लू यानी सान्या मल्होत्रा सगं होती है। वहीं, जब वो आर्मी में जाते हैं तब उन्हें राजनीति का शिकार होना पड़ता है। इतना ही नहीं उन पर केस भी होता है। सैम दूसरे विश्वयु का भी हिस्सा रहे। वहीं, सेकेंड हाफ की कहानी में फातिमा सना शेख की एंट्री होती है। फिल्म में फातिमा इंदिरा गांधी के किरदार में नजर आ रही हैं। दोनों के बीच फिल्म में वैचारिक मतभेद दिखाई दे रहे है। मगर थोड़े समय बात इंदिरा सैम के बातों से प्रभाविक होती दिखाई दे रही हैं। वो उनसे पूछती हैं कि कहीं वे हिंदुस्तान में भी ऐसा करने की तो नहीं सोच रहे, तब वे दो टूक जवाब देते हैं कि इंदिरा को डरने की जरूरत नहीं। उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं।
'मैं हमेशा तैयार हूं स्वीटी।'
वे अपनी राजनीति करें और उन्हें उनका काम करने दें। 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद करने की लड़ाई के दौरान इंदिरा चाहती हैं कि मानेकशॉ मार्च में धावा बोल दें, मगर वे बेबाक होकर मना करते हुए कहते हैं कि अभी उनकी सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं है। वे 5 दिसंबर की तारीख देकर युद्ध की तैयारी के लिए वक्त मांगते हैं। समय आने पर इंदिरा जब उनसे पूछती हैं कि क्या वे युद्ध के लिए तैयार हैं? तब उनका जवाब होता है, 'मैं हमेशा तैयार हूं स्वीटी।'
एनिमल से बेहतर है सैम बहादुर?
वहीं, एक्टिंग की बात करें तो विक्की कौशल समेत सभी स्टार्स अभिनय के पैमाने पर खरे उतरे हैं। मगर फिल्म की कहानी पूरे तरीके से साफ नहीं है और न ही फिल्म में कुछ नयापन देखने को मिल रहा है। वहीं, रणबीर कपूर की एनिमल की बात करें तो इस फिल्म को भी ऑडियन्स से भरपूर प्यार मिल रहा है।
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