‘विचारों का सम्मान जरूरी…’ कुणाल-इमरान मामले में सुप्रीम कोर्ट की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बड़ी टिप्पणी
Kunal Kamra & Imran Pratapgarhi
कुणाल कामरा द्वारा की गई महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर टिप्पड़ी के बाद उनके समर्थक भड़के हुए हैं। कॉमेडियन के खिलाफ एक्शन लेने की मांग कर रहे थे। इस मामले में उनको पेश होने के लिए कई बार समन भी भेजा जा चुका है। वहीं दूसरी ओर इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर का मामला सुर्खियों पर चल रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों मामले पर अपना फैसला सुना दिया है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बड़ी टिप्पड़ी दी है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि किसी भी व्यक्ति के विचारों को व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए, चाहे वे कितने भी असहज क्यों न लगें। न्यायालय ने स्पष्ट किया गया कि साहित्य, कविता, नाटक, फिल्म और व्यंग्य जैसे कला रूप समाज को अधिक सार्थक बनाते हैं और इन्हें बिलकुल भी दबाया नहीं जाना चाहिए।
इमरान प्रतापगढ़ी की एफआईआर हुई रद्द
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर दर्ज कराई गई थी जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। उन पर आरोप था कि उन्होंने जामनगर में एक कार्यक्रम के दौरान एक भड़काऊ गीत को शेयर किया था जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती थीं। गुजरात हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है।
कुणाल कामरा के स्टैंड-अप से मचा बवाल
फेमस कॉमेडियन कुणाल कामरा के स्टैंड-अप शो में की गई विवादित टिप्पड़ी से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के समर्थक भड़क गए थे। कामरा ने महाराष्ट्र की राजनीति पर कटाक्ष किया था, जिसमें उन्होंने शिवसेना और एनसीपी के विभाजन को लेकर तंज कसा था। शो के वीडियो वायरल होने के बाद मुंबई में उनके कार्यक्रम स्थल पर तोड़फोड़ की गई थी। इसके बाद खार पुलिस ने शिवसेना के उपनेता राहुल कनाल और विभाग प्रमुख श्रीकांत सरमालकर समेत कई लोगों को हिरासत में लिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई अपनी प्रतिक्रिया
इस पूरे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना जरूरी है। भले ही किसी के विचार कुछ लोगों को पसंद न आएं, लेकिन उन्हें दबाने की बजाय सम्मान दिया जाना चाहिए। कोर्ट के इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करने वाला कदम माना जा रहा है।
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